Kadambini Magazine - November 2019
Kadambini Magazine - November 2019
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In this issue
Kadambini, HT Media’s monthly socio-cultural literary magazine has a legacy of more than 51 years old. Its first editor was Late Shri Balkrishna Rao, a prominent Hindi writer. Following him many well known literary figures like Late Shri Ramanand Doshi, Shri Rajendra Awasthy, Ajenya, Mahadevi Verma & Kunwar Narayan have contributed immensely to the magazine taking it to unscalableheights.Known for its quality content, Kadamini has becomeindispensible with evolved and discerning reader who yearns forsomething ‘intelligent’ to read. It covers a wide range of subjects including literature, art, culture, science, history,sociology, films and health giving fresh perspectives on them to its readers.
यादगार 60 साल
इस अंक के साथ 'कादग्बिनी' अपने प्रकाशन के 60वें साल में प्रवेश कर रही है। इलाहाबाद से शुरू हुई इसकी यह यात्रा आज भी जारी है। इन वर्षों में मिले आपके प्यार और स्नेह की अनगिनत यादें हमारी धरोहर हैं। इन्हीं 'यादों' की याद में “कादम्बिनी' के प्रवेशांक नवंबर, 1960 का संपादकीय
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उस रोशनी की तलाश में
रोशनी का असली महत्व "कादम्बिनी" के जरिए
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यादों की बारात
अब अपने हिसाब से यादों को मिटाया जा सकेगा
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यादें और यादें...
स्मृतियों की दुनिया इतनी बड़ी है कि उपकी थाह मापना मुश्किल है। उचके तमाम रूप-एंग हैं। कुछ चीजें हमेशा याद रह जाती हैं, कुछ अचानक कित्ली रचनात्मक थण में किसी कौंध की तरह याद आती हैं। तमाम साहित्य, कलाएं स्मृतियों की ही तो देन हैं। पंच कहा जाए तो बिना स्मृति के जीवन नहीं और बिना सचेत जीवन के स्मृति नहीं
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अटपटी यादें
बचपन की अटपटी स्मृतिया याद रह जाती है। यह एक जटिल प्रक्रिया है जिन्हे याद कर बाद में हँसते है। बचपन की कुछ ऐसी ही अटपटी यादें
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अजब दुनिया है यह...
यादो की दुनिया का रहस्य
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ये दोहराना भी कमाल है
संगीत की दुनिया में अभ्यास यानी दोहराना और याद करना सबसे अहम होता है। यह मौखिक परंपर है, जिसमें गुरु सबसे अहम होते हैं, हालांकि तकनीक ने अब यहां भी दखल देना शुरू कर दिया है। अब संगीत के छात्र भी कई बार नोटेशन लिखकर और रिकॉर्ड करके याद करने लगे हैं, लेकिन इससे स्तृतियों का महत्त्व कम नहीं हुआ है
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इंटरनेट के दौर में याद
ताजा शोध बताते हैं कि आज तकनीकी और इंटरनेट के दौर में हम भीषण स्मृतिलोप का शिकार हो रहे हैं। हमारी एकाग्रता भंग हो रही है और हम बिना तथ्यों को जांचे पूरी तरह इंटरनेट पर निर्भर होते जा रहे हैं जहां सच को झूठ और झूठ को सच बनाने का कारोबार बड़े पैमाने पर चल रहा है
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कहीं एक हारमोनियम बजता है
स्मृतियां सिर्फ व्यक्तियों की ही नहीं होतीं उनसे जुड़ी चीजों की भी होती हैं। जैसे लेखक के बचपन में पिता द्वारा बजाया जानेवाला हारमोनियम और उसके राग उनकी स्मृति के साथ ऐसे एकाकार हो गए कि भूलते नहीं
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ये सिलसिला रुकता नहीं
कुछ यादे सुखद होती है तो कुछ दुखद ,जो जीवन भर आपका पीछा नहीं छोड़ती। वैसे यह भी सच है कि दुःख भी आपका निर्माण करता है। अब एहि देखिये की लेखक ने अपने बचपन में कैसे -कैसे दुःखद पल सहे, लेकिन सहारे के लिए कोई-न-कोई मिल ही गया। उन्हें भूलना आसान है क्या
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फिल्म तो नॉस्टेल्जिया है
फिल्म एक कला माध्यम है और सीधे - सीधे यादो से ही जुड़ा है। यादगार फिल्मे वही है जो इंसानियत से,अपने समय से जुडी होती है।
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जीवन की स्मृति है कर्म
जीवन का मूलमंत्र है कर्म जो अध्यातम की दुनिया में स्मृति का अपना महत्व है।
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अपनी वाचिक परंपरा वाह।
हमारे तमाम महान ग्रंथ श्रुति और स्मृति परंपरा से ही जनमे। आमतौर पर स्मृति बीती हुई चीज़े की होती है लकिन जब स्मृति के साथ प्रज्ञा भी जुड़ जाती है तब भबिस्य ज्ञान होता है।
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दुनिया को चलाते ईंधन
सभ्यताओं का इतिहाथ स्मृतियों का भी इतिहास है। जब हम किसी व्यक्ति, चीज या जगह को याद करते हैं तो उसके साथ उसका पूरा इतिहास याद आने लगता है। साहित्य, फिल्म और अन्य कला माध्यमों में इसे शिद्दत से उकेरा गया है और हर नई पीढ़ी उसे अपने ढंग से याद करने की कोशिश करती है
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मेरी आंखों में मेरी यादें
एक कलाकार के लिए यादो का महत्व बहुत होता है। खासकर नृत्य और स्मृतियो के सहारे ही आगे बढ़ता है। इसलिए यहाँ गुरु - शिष्य परम्परा का बहुत महत्व है।
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कौन ले गया आपकी 'मेमरी'
आज तकनीक के जमाने में हम अपने दिमाग की मेमरी का इस्तेमाल करने की जगह कंप्यूटर और मोबाइल की मेमरी पर निर्भर रहने लगे हैं, जबकि हमारा दिमाग इतना बड़ा है कि उसमें 250 करोड़ मेगाबाइट मेमरी को सहेजा जा सकता है। कंप्यूटर और मोबाइल की मेमरी का खतरा इतना बड़ा है कि यह हमारे दिमाग की स्मृति क्षमता को ही नष्ट करने लगी है
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कुछ खटटी कुछ मीठी
जिंदगी जैसे यादों की बारात ही है। छोटी-छोटी घटनाएं जब जुडती हैं तो जाने कितनी कहानियां जीवंत हो उठती हैं। यादें ही हैं जो मुश्किल दिनों में बीते खूबसूरत लम्हों को ताजा करके ऊर्जा से भर देती हैं। लेखक याद कर रहे हैं गीत-संगीत की दुनिया के अपने पुराने दिन
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उस शहर की परछाइयां
शहरों की भी अपनी स्मृति होती है और उससे जुड़े लोगों की भी अपनी। कुछ शहर आपको इतने अपने लगने लगते हैं कि आपके जेहन में बस जाते हैं। चाहे आप उन्हें छोड़कर कहीं और ही बस जाएं वे आपकी यादों से नहीं जाते। तुर्की के इस्तांबुल शहर की यह स्मृति भी कुछ ऐसी ही है
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यादें हैं या कब्रिस्तान
स्मृति और बुद्धिमत्ता दो अलग चीजें हैं। जरूरी नहीं कि बुद्धिमान व्यक्ति स्मृतिवान भी हो, बल्कि अक्सर इसका उल्टा होता है। क्योंकि स्मृति हमें हमारी जानी हुई चीजों के बार में ही बताती है और बोझ बन जाती है जबकि बुद्धिमत्ता हमें हमेशा नया करने को प्रेर्ति करती है
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पत्थर और बहता पानी
पुरानी इमारतें जहां हमें बीते वक्त की स्ततियों में ले जाती हैं वहीं नदियों का बहता पानी हमें उस शाश्वत समय का बोध कराता है जहां कुछ भी नहीं बीतता। मनुष्य हमेशा वर्तमान में नहीं रह सकता। उसके भीतर स्तृतियों का संसार ही उसे जीवित बनाए रखता है
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शुक्र तारे वाली एक शाम
समय के परिवर्तन-प्रवाह में स्मृति का एक ऐसा क्षण होता है जो स्थिर रह जाता है। यह वही क्षण होता है जहां रचना संभव हो पाती है। यह शुक्र तारे की तरह है। कलाकार इस क्षण को पाने के लिए जीवन भर संघर्ष करता है। योगियों के लिए यह आसान है, क्योंकि वे मायामोह से परे हो चुके होते हैं
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गोधूलि
नार्मन गोर्ट्स्बी पार्क की बेंच पर बैठा गोधूलि के समय के दृश्यों का आनंद ले रहा था। उसके बगल में एक बुजुर्ग बैठे थे। वे उठे तो एक नवगुवक आकर बैठ गया। बातचीत में उसने बताया आज ही वह शहर में आया है और साबुन की एक टिकिया लेने निकला और कुछ देर घूमने-टहलने के बाद उसे याद आया कि उसने न तो अपने होटल के नाम पर ध्यान दिया था और नही सड़क का नाम उसे मालूम है। गोर्ट्स्बी ने उसकी कहानी के अविश्वस्नीय पक्ष को सामने रखा, लेकिन उसके बाद...
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सुरक्षा कवच
इरा को कभी पिता का स्नेह नहीं मिला था। भाई के रूप में पिता का संबल तलाशना चाहा ते वहां भी निराशा हाथ लगी। वह दो साल की रही होगी जब पिता मां और उसके छह साल के भाई को छोडकर चले गए थे। विदेश में उन्होंने एक अंग्रेज लडकी से शादी कर ली थी और लौटकर कभी वापस नहीं आए। अब पति ब्रजेश के रूप में जो वह देख रही है वह कुछ ऐसा है कि...
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छाया मत छूना
गिरिजाकुमार माथुर की महान कविता छाया मत छूना मनहोता है दुख दूना मन
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पहला कदम - महात्मा के सपनों का भारत
महात्मा गांधी के 150वीं जयंती वर्ष की समारोह श्रृंखला में कादम्बिनी क्लब के तत्त्वावधान में पिछले दिनों लखनऊ के गांधी संस्थान में गांधी साहित्य पर चर्चा आयोजित की गई।
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शिकागो और इंडियानापोलिस
अमेरिका का शिकागो सुनियोजित ढंग से बसाया हुआ शहर है। ऊंची इमारतों के पास से गुजरना भी खुलेपन का एहसास देता है। प्रदूषण का वह अठर नहीं है, जो हमारे देश में दिखाई देता है। खुले मैदान, साफ़-सुथरी झीलों, पर्यटन स्थलों को देखने के बाद का अनुभव बयान कर रहे हैं लेखक
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व्यंग्य - मास्टरजी ! आप झूठे हो
अध्यापकों का कहने को तो बहुत सम्मान होता है, लेकिन हकीकत में उनका कोई सम्मान नहीं होता। एक नेता जीवन भर सेवा कर सकता है, लेकिन एक अध्यापक एक निश्चित उम्र के बाद सेवानिवृत्त हो जाता है। उसकी गरीबी भी झूठी मानी जाती है क्योंकि बहुत से अध्यापकों ने अध्यापकी को भी एक धंधा बना लिया है
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...कहीं फेल न हो जाए किडनी - एलोपैथी
किडनी की बीमारी की समस्याएँ और उसके उपाय
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एलोपैथी - ये गुर्दे हैं संभालकर रखिए
गुर्दो की बीमारी आजकल आम समस्या बन चुकी है और इसका बड़ा कारण हमारी जीवनशैली है। शुरुआत में इसके लक्षण स्पष्ट नहीं होते। आयुर्वेद में उवित आहार-विहार के साथ इसका सटीक इलाज है
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भविष्य - व्यवसाय कब ठीक चलेगा
बेटियों के विवाह अभी तक नहीं हो पा रहे हैं। कब योग बनेगा ?
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Kadambini Magazine Description:
Publisher: HT Digital Streams Ltd.
Category: Culture
Language: Hindi
Frequency: Monthly
Kadambini, HT Media’s monthly socio-cultural literary magazine has a legacy of more than 51 years old. Its first editor was Late Shri Balkrishna Rao, a prominent Hindi writer. Following him many well known literary figures like Late Shri Ramanand Doshi, Shri Rajendra Awasthy, Ajenya, Mahadevi Verma & Kunwar Narayan have contributed immensely to the magazine taking it to unscalableheights.Known for its quality content, Kadamini has becomeindispensible with evolved and discerning reader who yearns forsomething ‘intelligent’ to read. It covers a wide range of subjects including literature, art, culture, science, history,sociology, films and health giving fresh perspectives on them to its readers.
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