यह क्षेत्र मुख्यतः उत्तर-पश्चिमी राज्यों राजस्थान, गुजरात व हरियाणा में फैला हुआ है और इसका कुछ भाग आंध्रप्रदेश में भी है। वर्षा की कमी के साथ-साथ वर्षा की अनिश्चितता व तापमान की विस्तृत श्रृंखला अर्थात ग्रीष्मकाल में 48 से 49 डिग्री सैंटीग्रेड तक व शरदकाल में 0 डिग्री सेंटीग्रेड तक होने के कारण यह क्षेत्र कृषि के लिये बहुत चुनौतीपूर्ण है।
इन परिस्थितियों के अनुरूप सामंजस्य रखते हुए पारंपरिक कृषि विधियां विकसित हुई जिसमें वृक्ष, फसलें व पशुओं की सम्मिलित उत्पादन पद्धति मुख्य थी। यह पद्धति शुष्क क्षेत्र की परिस्थितियों में उत्पादन में स्थायित्व किन्तु सीमित उत्पादक क्षमता वाली है। आधुनिक विज्ञान के आधार पर रसायनिक आदानों के प्रयोग से उत्पादकता बढ़ाने के अनेक प्रयोग किये गये किन्तु वर्षा की अनिश्चितता में इनका प्रयोग लाभकारी सिद्ध नहीं हुआ है।
इन परिस्थितियों में पशु व कृषि अवशेष से बनी जैविक खाद का प्रयोग जल संरक्षण व फसल को संतुलित पोषण देने में सहायक होता है, साथ ही अन्य कई पर्यावरण मित्र तकनीकों के समन्वित प्रयोग से न केवल वर्षा की अनिश्चिता में भी उत्पादन में स्थायित्व रखना संभव हो सकता है, वरन् इससे खेती की लागत कम होने व बाजार में जैविक उत्पाद की माँग होने से यह खेती लाभप्रद भी हो सकती है। चूंकि यह क्षेत्र पशुपालन आधारित व्यवस्था पर निर्भर है, जिससे जैविक खाद की उपलब्धता पर्याप्त है।
This story is from the November 01, 2023 edition of Modern Kheti - Hindi.
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मृदा में नमी की जांच और फायदे
नरेंद्र कुमार, संदीप कुमार आंतिल2, सुनील कुमार। और हरदीप कलकल 1 1 कृषि विज्ञान केंद्र सिरसा, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय 2 कृषि विज्ञान केंद्र, सोनीपत, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय
निस्तारण की व्यावहारिक योजना पर हो अमल
पराली जलाने से हुए प्रदूषण से निपटने के दावे हर साल किए जाते हैं, लेकिन आज तक इस समस्या का स्थायी समाधान नहीं निकल सका है। यह समस्या हर साल और विकराल होती चली जा रही है।
खाद्य और पोषण सुरक्षा के लिए कारगर है कृषि वानिकी
जैसे-जैसे विश्व की आबादी बढ़ती जा रही है, लोगों की खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने की चुनौती भी बढ़ रही है।
बढ़ा बजट उबारेगा कृषि को संकट से
साल था 1996 चुनाव परिणाम घोषित हो चुके थे और अटल बिहारी वाजपेयी को निर्वाचित प्रधानमंत्री के रुप में घोषित किया जा चुका था।
घट नहीं रही है भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि की 'प्रधानता'
भारतीय अर्थव्यवस्था में एक विरोधाभास पैदा हो गया है। तेज आर्थिक विकास दर के फायदे कुछ लोगों तक सीमित हो गए हैं जबकि देश की आबादी का बड़ा हिस्सा कृषि पर निर्भर है।
कृषि विकास का राह सहकारिता
भारत को 2028 तक पांच खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का इरादा है और इसमें जिन तत्वों और सैक्टर के योगदान की जरुरत पड़ेगी, उनमें एक है सहकारिता क्षेत्र।
मधुमक्खियां भी हो रही हैं प्रभावित हवा प्रदूषण से
सर्दियों का मौसम आते ही देश के कई हिस्से प्रदूषण की आगोश में समा गए हैं, खासकर देश की राजधानी दिल्ली जहां सांसों का आपातकाल लगा हुआ है।
ज्वार की रोग एवं कीट प्रतिरोधी नई किस्म विकसित
भारत श्री अन्न या मोटे अनाज का प्रमुख उत्पादक है और निर्यात के मामले में भी हमारा देश दूसरे पायदान पर है।
खरपतवारों के कारण होता है फसली नुकसान
खरपतवार प्रबंधन पर एक संयुक्त अध्ययन में खुलासा हुआ है कि हर साल भारत में फसल उत्पादन में करीब 192,202 करोड़ रुपये का नुकसान खरपतवारों के कारण होता है।
जलवायु परिवर्तन बनाम कृषि विकास...
कृषि और प्राकृतिक स्रोतों पर आधारित उद्यम न केवल भारत बल्कि ज्यादातर विकासशील देशों की आर्थिक उन्नति का आधार हैं। कृषि क्षेत्र और इसमें शामिल खेत फसल, बागवानी, पशुपालन, मत्स्य पालन, पॉल्ट्री संयुक्त राष्ट्र के दीर्घकालिक विकास लक्ष्यों खासकर शून्य भूखमरी, पोषण और जलवायु कार्रवाई तथा अन्य से जुड़े हुए हैं।