इसलिए कृषि से जुड़े लोगों का अधिक उपज एवं गुणवत्तायुक्त उत्पादन और समृद्धि खेती की ओर आकर्षित करना आवश्यक है। समृद्ध खेती भूमि की दशा, कृषि निवेशों, समय पर सभी सस्य क्रियाएं, कृषि यंत्रों की उपलब्धता एंव जलवायु आदि पर निर्भर करती है। कृषक की आय बढ़ाने हेतु दो ही मुख्य बिंदु हैं जिसमें पहला गुणवत्तायुक्त उत्पादन में वृद्धि और दूसरा लागत कम करके कृषक की आमदनी बढ़ाई जा सकती है। कृषि की लागत मुख्यतयः बीज, उर्वरक, पौध संरक्षण, रसायन, सिंचाई तंत्र एवं जैविक खादों का प्रयोग एवं खेती की आधुनिक विधियों का प्रयोग सरकार द्वारा कृषकों के हित में आवश्यक कदम उठाने चाहिएं जैसे भण्डारण की व्यवस्था, आवागमन के साधन, मूल्य संवर्धन संयंत्र आदि लगवाकर, उत्पादन की गुणवत्ता बढ़ाकर लागत कम की जा सकती है। कृषि की प्रति इकाई सही समय पर सही तरह से उपयोग करके एवं इनका फिजूलखर्ची रोक कर इसके विकल्प ढूंढकर खेती को लाभदायक बनाया जा सकता है। नीचे दिए गए कुछ विकल्पों को अपनाकर किसान अपना गुणवत्तायुक्त एवं बेहतर उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। जो आज के हिसाब से नितांत आवश्यक है।
1. मृदा का परीक्षण के बाद ही संतुति के आधार पर उर्वरकों का प्रयोग करें
खेती की लागत कम करने तथा उच्च गुणवत्तायुक्त उत्पादन लेने हेतु सबसे जरुरी है कि किसी भी फसल की बुवाई करने से पूर्व अपने खेत की मिट्टी से भली भांति परिचित हो लें। इसके लिए अपने खेत की मिट्टी का प्रतिनिधि नमूना लेकर सभी पोषक तत्वों की जांच अपनी नजदीकी मृदा परीक्षण प्रयोगशाला से कराएं। रिपोर्ट में दी गई संस्तुतियों के आधार पर ही फसल के हिसाब से पोषक तत्वों का देना सुनिश्चित करें, जिससे सही उर्वरक, सही मात्रा, सही समय, सही जगह पर दिया जा सके, जिससे अंधाधुंध उर्वरकों के प्रयोग पर पाबंदी लग सके तथा आवश्यक उर्वरकों को ही खेत में पूर्ति करके करीब 10 से 15 प्रतिशत लागत को घटाया जा सकता है।
2. फसल बीमा करवाकर जोखिम से बचें
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शीत ऋतु में ऐसे करें डेयरी पशुओं का प्रबंधन
शीत ऋतु में डेयरी पशुओं का उचित प्रबंधन करके हम उनके स्वास्थ्य और उत्पादकता को बनाए रख सकते हैं। पौष्टिक आहार, उचित आश्रय और स्वास्थ्य देखभाल के माध्यम से पशुओं को ठंड के तनाव से बचाया जा सकता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाकर हम पशुओं के लिए एक स्वस्थ और सुरक्षित वातावरण प्रदान कर सकते हैं।
खाद्यय फसलों की रानी-मक्का उपज बढ़ाने के वैज्ञानिक तरीके
मक्का विश्व की एक प्रमुख खाद्यान्न फसल है। मक्का में विद्यमान अधिक उपज क्षमता और विविध उपयोग के कारण इसे खाद्यय फसलों की रानी कहा जाता है। पहले मक्का को विशेष रुप से गरीबों का मुख्य भोजन माना जाता था परन्तु अब ऐसा नहीं है।
कृषि आय बढ़ाने और महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण में डेयरी सैक्टर की भूमिका
आठ करोड़ डेयरी किसानों के साथ भारत का डेयरी सैक्टर सामूहिक प्रयास और रणनीतिक विकास की ताकत का बेहतरीन सबूत है। 50 साल पहले दूध की कमी वाले देश से दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक बनने तक भारत ने असाधारण यात्रा तय की है।
सूरजमुखी की खेती की उत्तम पैदावार कैसे लें?
सूरजमुखी की खेती खरीफ, रबी एवं जायद तीनों ही मौसमों में की जा सकती है। परन्तु खरीफ में सूरजमुखी पर अनेक रोग कीटों का प्रकोप होता है। फूल छोटे होते हैं तथा उनमें दाना भी कम है।
असामान्य तापमान, डीएपी संकट और रिजर्व बैंक की मुश्किलें
पिछले सप्ताह जीडीपी के सात तिमाही के निचले स्तर पर पहुंचने के आंकड़ों ने पहले से ही परेशान भारतीय रिजर्व बैंक और सरकार की मुश्किलें बढ़ी दी हैं।
अपनी खेती अपने बीज
पंजाब कृषि यूनिवर्सिटी लुधियाना की ओर से सिफारिश अधिकतर बीज देसी किस्मों से संशोधित बीज हैं, विशेष तौर पर सब्जियों के। अनाज वाली फसलों के अधिकतर बीज हरित क्रांति की तकनीकों के द्वारा विकसित किये अधिक उत्पादन देने वाले हैं। पीएयू की ओर से अब तक गेहूं एवं धान की किसी भी हाईब्रिड किस्म की सिफारिश नहीं की गई है परन्तु मक्का की अधिकतर किस्में हाईब्रिड हैं।
सरसों में कीटों की पहचान व रोकथाम
सरसों रबी में उगाई जाने वाली फसलों में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। सरसों वर्गीय फसलों के तहत तोरिया, राया, तारामीरा, भूरी व पीली सरसों आती है। हरियाणा में सरसों मुख्य रुप से रेवाड़ी, महेन्द्रगढ़, हिसार, सिरसा, भिवानी व मेवात जिलों में बोई जाती है।
गन्ना कटाई मशीन आवश्यकता, लाभ व अनिवार्य शर्ते
यमुनानगर जिले की फसल विविधता में गन्ने का अहम् योगदान है। हरियाणा सांख्यिकी सारांश के अनुसार यमुनानगर जिले में वर्ष 2013-2014 में गन्ने का उत्पादन क्षेत्रफल 27000 हैक्टेयर से घटकर वर्ष 2021-2022 में लगभग 20000 हैक्टेयर रह गया है जिसमें इस प्रकार क्षेत्रफल में लगभग 25 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है।
समन्वित कृषि अपशिष्ट प्रबंधन
भारत एक कृषि प्रधान देश है जिसकी अधिकतर जनसंख्या गांवों में निवास करती है। यहां पर अनेक प्रकार के खाद्यान्नों का उत्पादन होता है। वास्तव में खाद्य पदार्थो का सीधा सम्बन्ध जनसंख्या पर आधारित होता है।
गेहूं का पीला रतुआ रोग एवं रोग से बचाव के उपाय
गेहूं का पीला रतुआ रोग, गेहूं के उत्पादन में विश्व स्तर पर भारत का दूसरा स्थान है और वर्ष 2014 में हमारा गेहूं उत्पादन 95.91 मिलियन टन रहा जो एक ऐतिहासिक रिकार्ड उत्पादन है। भारत की गेहूं उत्पादन में यह उपलब्धि दुनिया के विकास के इतिहास में शायद सबसे महत्वपूर्ण तथा अद्वितीय रही है। गेहूं उत्पादन में काफी वृद्धि के बावजूद भी हमारा देश विभिन्न प्रकार की चुनौतियों का सामना कर रहा है।