पंजाब में लगभग 41 लाख हैक्टेयर (102.5 लाख एकड़) क्षेत्रफल में खेती की जाती है और खेती घनत्व 200% से अधिक है, जिसमें से बड़ा हिस्सा गेहूँ (85%) - धान (70% से अधिक) के फसली चक्र अधीन है, जिसका मुख्य कारण कम से कम समर्थन मूल्य (एमएसपी) एवं निश्चित सरकारी खरीद है। दो कु दशक पहले तक यह फसली चक्र किसानों के लिए काफी लाभदायक रहा, परन्तु जैसे-जैसे जिंदगी जीने के ढंग बदलते गए और पारिवारिक वृद्धि से भूमियों की मालकी घटती गई, खेती का यह मॉडल किसानों के लिए उतना लाभदायक नहीं रहा। हरित क्रांति की तकनीकों से उत्पादन भी कई वर्षों से लगभग स्थिर है और खेती खर्च लगातार बढ़ते ही जा रहे हैं। नई मशीनों एवं यंत्रों की खरीद के कारण किसानों पर और अधिक आर्थिक बोझ पड़ रहा है। इस एक फसली चक्र एवं मौजूदा हालात में किसान को खेती के इस मॉडल का भविष्य अंधेरे में ही दिख रहा है और वह इसको छोड़ भी नहीं सकता क्योंकि पहले निर्धारित मूल्य एवं निश्चित खरीद किसान के लिए आमदनी का एक निश्चित जरिया है। यही कारण है कि पंजाब में सरकारों एवं विभागों के प्रयत्नों के बावजूद पंजाब में फसली विभिन्नता के सभी प्रयास लगभग नाकामयाब सिद्ध हो रहे हैं - सिवाये कुछ मेहनती किसानों के।
उचित मंडीकरण - हरित क्रांति की कामयाबी का मुख्य कारण: पंजाब में हरित क्रांति की कामयाबी का मुख्य कारण मोटे तौर पर पंजाब कृषि विश्वविद्यालय की ओर से तैयार बीजों, सिफारिश किये रसायनों, खेती मशीनों एवं यंत्रों और सिंचाई को ही बताया जाता है, जबकि मंडीकरण इसकी कामयाबी का एक बहुत अहम एवं बड़ा कारण बना है। मंडी बोर्ड की ओर से हर 5-10 गाँवों के पीछे निश्चित मंडियों एवं इन मंडियों को गाँवों से जोड़ने के लिए ग्रामीण एवं लिंक सड़कें बना कर फसलों की खरीद को आसान किया गया। मंडी आम किसान की पहुँच में आ गई और किसानी के साथ-साथ इस तरह बने सड़की ढांचों का गाँवों के विकास को भी नई दिशा मिली और हजारों को रोजगार भी।
This story is from the 15th February 2024 edition of Modern Kheti - Hindi.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber ? Sign In
This story is from the 15th February 2024 edition of Modern Kheti - Hindi.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber? Sign In
मृदा में नमी की जांच और फायदे
नरेंद्र कुमार, संदीप कुमार आंतिल2, सुनील कुमार। और हरदीप कलकल 1 1 कृषि विज्ञान केंद्र सिरसा, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय 2 कृषि विज्ञान केंद्र, सोनीपत, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय
निस्तारण की व्यावहारिक योजना पर हो अमल
पराली जलाने से हुए प्रदूषण से निपटने के दावे हर साल किए जाते हैं, लेकिन आज तक इस समस्या का स्थायी समाधान नहीं निकल सका है। यह समस्या हर साल और विकराल होती चली जा रही है।
खाद्य और पोषण सुरक्षा के लिए कारगर है कृषि वानिकी
जैसे-जैसे विश्व की आबादी बढ़ती जा रही है, लोगों की खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने की चुनौती भी बढ़ रही है।
बढ़ा बजट उबारेगा कृषि को संकट से
साल था 1996 चुनाव परिणाम घोषित हो चुके थे और अटल बिहारी वाजपेयी को निर्वाचित प्रधानमंत्री के रुप में घोषित किया जा चुका था।
घट नहीं रही है भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि की 'प्रधानता'
भारतीय अर्थव्यवस्था में एक विरोधाभास पैदा हो गया है। तेज आर्थिक विकास दर के फायदे कुछ लोगों तक सीमित हो गए हैं जबकि देश की आबादी का बड़ा हिस्सा कृषि पर निर्भर है।
कृषि विकास का राह सहकारिता
भारत को 2028 तक पांच खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का इरादा है और इसमें जिन तत्वों और सैक्टर के योगदान की जरुरत पड़ेगी, उनमें एक है सहकारिता क्षेत्र।
मधुमक्खियां भी हो रही हैं प्रभावित हवा प्रदूषण से
सर्दियों का मौसम आते ही देश के कई हिस्से प्रदूषण की आगोश में समा गए हैं, खासकर देश की राजधानी दिल्ली जहां सांसों का आपातकाल लगा हुआ है।
ज्वार की रोग एवं कीट प्रतिरोधी नई किस्म विकसित
भारत श्री अन्न या मोटे अनाज का प्रमुख उत्पादक है और निर्यात के मामले में भी हमारा देश दूसरे पायदान पर है।
खरपतवारों के कारण होता है फसली नुकसान
खरपतवार प्रबंधन पर एक संयुक्त अध्ययन में खुलासा हुआ है कि हर साल भारत में फसल उत्पादन में करीब 192,202 करोड़ रुपये का नुकसान खरपतवारों के कारण होता है।
जलवायु परिवर्तन बनाम कृषि विकास...
कृषि और प्राकृतिक स्रोतों पर आधारित उद्यम न केवल भारत बल्कि ज्यादातर विकासशील देशों की आर्थिक उन्नति का आधार हैं। कृषि क्षेत्र और इसमें शामिल खेत फसल, बागवानी, पशुपालन, मत्स्य पालन, पॉल्ट्री संयुक्त राष्ट्र के दीर्घकालिक विकास लक्ष्यों खासकर शून्य भूखमरी, पोषण और जलवायु कार्रवाई तथा अन्य से जुड़े हुए हैं।