भारत वर्ष में इसकी खेती लगभग पूरे साल की जा सकती है, यानि रबी, खरीफ और ग्रीष्मकालीन। चीन के बाद भारत दूसरा सबसे अधिक बैंगन उत्पादन वाला देश है। हमारे देश में बैंगन उगाने वाले मुख्य राज्य पश्चिमी बंगाल, उड़ीसा, कर्नाटक, बिहार, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान हैं। बैंगन में विटामिन ए तथा बी के अलावा कैल्शियम, फास्फोरस और लोहे जैसे खनिज भी होते हैं।
यदि इसकी उन्नत वैज्ञानिक कृषि सस्य क्रियाओं के साथ उन्नत या संकर किस्में उगाई जायें तो इसकी फसल से काफी अधिक उपज प्राप्त की जा सकती है। इस लेख में बैंगन की उन्नत खेती कैसे करें और उसकी वैज्ञानिक प्रक्रिया का उल्लेख किया गया है।
बैंगन की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु
बैंगन की खेती से अधिकतम उत्पादन लेने के लिए लम्बे तथा गर्म मौसम की आवश्यकता होती है। इसके बीजों के अच्छे अंकुरण के लिए 25 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त माना गया है और पौधों की अच्छी बढ़वार के लिए 13 से 21 डिग्री सेल्सियस औसत तापमान सर्वोत्तम रहता है।
जब तापमान 18 डिग्री सेल्सियस से कम हो तो ऐसे समय में पौधों की रोपाई नहीं करनी चाहिए। लम्बे फल वाली किस्मों की अपेक्षा गोल फल वाली किस्में पाले के लिए सहनशील होती हैं तथा अधिक पाले के कारण पौधे मर या झाड़ीनुमा हो जाते हैं।
बैंगन की खेती के लिए भूमि का चयन
बैंगन का पौधा कठोर होने के कारण विभिन्न प्रकार की भूमि में उगाया जा सकता है। इसकी फसल से इच्छित उत्पादन के लिए उचित जल निकास और उपजाऊ भूमि की आवश्यकता होती है। अगेती फसल के लिए रेतीली दोमट भूमि तथा अधिक उपज के लिए मटियार दोमट भूमि अच्छी रहती है। मृदा का पीएचमान 5.5 से 6.5 के मध्य होना चाहिए।
बैंगन की खेती के लिए खेत की तैयारी
पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए। उसके बाद 3 से 4 बार हैरो या देशी हल चलाकर पाटा लगायें। भूमि की प्रथम जुताई से पूर्व गोबर की खाद समान रूप से बिखेरनी चाहिए। यदि गोबर की खाद उपलब्ध न हो तो खेत में पहले हरी खाद का उपयोग करना चाहिए। रोपाई करने से पूर्व सिंचाई सुविधा के अनुसार क्यारियों तथा सिंचाई नालियों में विभाजित कर लेते हैं।
बैंगन की खेती के लिए बीज की मात्रा
This story is from the 15th July 2024 edition of Modern Kheti - Hindi.
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बागवानी पौधशाला की स्थापना एवं प्रबंधन
बागवानी पौधशाला किसान बन्धुओं (नर्सरी) शब्द अंग्रेजी के नर्स या नर्सिंग से लिया गया है, जिसका अर्थ है- पौधों की देखभाल, पालन-पोषण और संरक्षण प्रदान करना।
सूचना संचार एवं कृषि विकास
यदि भारत को खुशहाल बनाना है, तो गांवों को भी विकसित करना होगा। आज सरकार ग्रामीण विकास, कृषि एवं भूमिहीन किसानों के कल्याण पर ज्यादा जोर दे रही है। इसलिये यह क्षेत्र बेहतरी की दिशा में परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है। प्रौद्योगिकी और पारदर्शिता वर्तमान सरकार की पहचान बन गए हैं। सरकार ने अगले पांच वर्षों में किसानों की आमदनी दोगुनी करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिये परम्परागत तरीकों से हटकर 'आउट-ऑफ-बॉक्स' पहल की गई है।
जैविक उत्पादों और स्थायी सामग्रियों में मशरुम माइसीलियम का योगदान
मशरूम की दुनिया में 'माइसीलियम' एक ऐसा तत्व है जो कई खाद्य, पोषण और औद्योगिक क्रांतियों का आधार बन रहा है। यह मशरूम के जीवन चक्र का वह हिस्सा है जो अदृश्य होते हुए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
उत्तम बीज की पहचान तथा विशेषताएं
भारत एक कृषि प्रधान देश है। जहां लगभग 70 प्रतिशत लोग खेती करते हैं। जो लोग खेती करते हैं, उन्हें हम अन्नदाता कहते हैं और हर एक किसान की यह इच्छा होती है कि उसकी फसल बहुत अच्छी हो और उसे लाभ की प्राप्ति हो जिससे वह अपनी पूरी लागत निकाल सकें।
बीज कानून अथॉर्टी लैटर
“Study of Seed Laws is not a problem but an opportunity to understand how legally we are soung”
लोगों के स्वास्थ्य पर दूध में मौजूद एंटीबायोटिक अवशेषों का प्रभाव
दूध की बढ़ती मांग ने उत्पादकों को व्यापक पशुपालन प्रथाओं को अपनाने के लिए मजबूर किया है। डेयरी पशुओं में विभिन्न रोग स्थितियों के उपचार के लिए पशु चिकित्सा दवाओं का उपयोग इस तरह के व्यापक पशुपालन प्रथाओं का अभिन्न अंग बन गया है।
फल-सब्जियों के स्टोर के लिए एलईडी आधारित तकनीक
आईआईटी इंदौर के शोधकर्ताओं ने मिलकर किसानों के लिए अपनी उपज अधिक समय तक स्टोर करने के लिए एक तकनीक का विकास किया है। यह एलईडी लाईट-आधारित भंडारण तकनीक है। दावा किया जा रहा है कि यह तकनीक फल और सब्जियों को सड़ने से लंबे समय तक बचाए रखती है, जिससे किसान अपनी उपज की शेल्फ लाइफ बढ़ा सकते हैं।
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