दादाजी का चश्मा
Champak - Hindi|July First 2022
बच्चों की कहानी
देवीप्रसाद गौड़
दादाजी का चश्मा

जकल बंदर हर शहर, कसबे और गांव तक पहुंच गए हैं, लेकिन बाटी गांव में अभी तक कोई बंदर नहीं था.

एक दिन एक अकेला बंदर कहीं से भटकता हुआ गांव में आ गया. बंदर क्या आया, गांव के बच्चों के लिए तमाशा हो गया.

बंदर उछलकूद करता हुआ जहां कहीं भी जाता, उस गलीमहल्ले के बच्चे इकट्ठे हो जाते. कोई उस की तरफ पत्थर फेंकता तो कोई उसे मुंह चिढ़ाता है. कोई तो उसे रोटी का टुकड़ा भी दिखाता तो कभीकभी बच्चों को देख कर बंदर खोंखों करता.

बंदर जिधर जाता, बच्चों की टोली उस के पीछेपीछे उधर ही चल देती, आज रविवार के दिन तो बच्चे खानापीना सब भूल गए. घर वाले आवाज लगाते ही रह जाते, लेकिन वह पीछे मुड़ कर ही नहीं देखते.

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