वुडी कठफोड़वा अपनी पत्नी लोनी के साथ घोंसला बनाने के लिए जगह खोज रहा था. लोनी अंडे देने वाली थी.
“मुझे एकांत और शांत जगह चाहिए, जहां मैं आराम से अंडे दे सकूं और अपने बच्चों को बिना किसी चिंता के पाल सकूं,” लोनी ने कहा.
तभी वे जंगल में एक सुनसान जगह पर पहुंचे, जहां काफी हरियाली थी.
"देखो, इस जगह पर कितने सारे पेड़ हैं और उन पर फल भी लगे हैं,” वुडी बोला.
“हां और पास ही एक झील भी है. चारों ओर घास है. यह जगह बहुत अच्छी है, यहां न खानेपीने की दिक्कत है न शोरगुल, हम अपना घर यहीं बनाएंगे,” लोनी खुशी से चहकती हुई बोली.
“अरे, यह देखो, इस पेड़ में तो एक कोटर भी बना हुआ है,” वुडी ने बताया. “अरे वाह, वैसे भी अब हमारे पास इतना समय नहीं है. मैं किसी भी समय अंडे दे सकती हूं. हम इस कोटर को अपनी पसंद के हिसाब से सजा लेंगे,” लोनी वहां रहने का पक्का मन बना चुकी थी.
“तभी सामने के पेड़ पर फल खाता हुआ एक तोता बोला, मेरा नाम पेप्पी है और मेरी तुम को यह सलाह है कि यहां रहने की गलती न करना."
लेकिन वह जगह वुडी व लोनी को इतनी अच्छी लग चुकी थी कि उन्हें ऐसी सलाह सुनना अच्छा नहीं लगा.
"क्या हम ने तुम से राय मांगी? क्यों बीच में बोल रहे हो? हम दोनों समझदार हैं और यह खुद तय कर सकते हैं कि हमें कहां रहना है?” लोनी चिढ़ कर बोली.
“पर मेरी बात तो सुनो. यह जो कुछ दूरी पर नीचे लोहे की पट्टियां दिखाई दे रही हैं न..."
पेप्पी कुछ बताना चाहता था कि वुडी ने उसे बीच में ही टोक दिया, “तुम से कहा न हमारे बीच दखलअंदाजी मत करो, हम अपना भलाबुरा समझते हैं."
अब पेप्पी वहां से चुपचाप चला गया..
वुडी व लोनी अपना नया घर सजाने में लग गए. वे दोनों जोश में थे. उन्होंने इधरउधर घूम कर रंगबिरंगे पंख, तिनके व घास जमा की और कई घंटे की मेहनत के बाद अपना प्यारा सा घर सजा लिया. उसे देख कर वे बहुत खुश थे.
अब दिन ढलने ही वाला था. दोनों बहुत थके हुए व भूखे थे. पास के पेड़ पर जा कर उन्होंने फल खाए और आपस में बातें करने लगे.
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