उत्सुकतावश तन्मय ने दादाजी से पूछा, "दादाजी, यदि दृष्टिहीन लोगों को सड़क पार करने में इ परेशानी होती है तो फिर वे पढ़ने और अपनी दैनिक गतिविधियों को कैसे करते हैं? उन के लिए यह कितना चुनौतीपूर्ण है."
दादाजी ने उत्तर दिया, "इस बारे में हम घर पर बात करेंगे, तन्मय."
थोड़ी देर बाद दादाजी और तन्मय घर पहुंचे. दादाजी ने कौफी का कप उठाया और कहा, "प्रकृति की तरफ से इंसान को आंखें सब से अनमोल उपहार हैं. हालांकि कुछ लोग या तो इस उपहार के बिना ही पैदा होते हैं या फिर उन से यह उपहार छिन जाता है. उन्हें अपनी दैनिक गतिविधियों में इन के बिना कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, लेकिन विज्ञान में हुई प्रगति से वे अब आम लोगों की तरह अपने सारे काम कर सकते हैं. वे ब्रेल लिपि के माध्यम से पढ़ सकते हैं और शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं."
"दादाजी, मुझे ब्रेल लिपि के बारे में विस्तार से बताएं," तन्मय ने उत्सुकता से पूछा.
दादाजी ने बताना शुरू किया, "लुई ब्रेल, जिन्होंने ब्रेल लिपि की खोज की, वे जन्म से अंधे नहीं थे बल्कि एक दुर्घटना में उन्होंने अपनी आंखें खोई थीं. पढ़ाई के दौरान उन्होंने एहसास किया कि दृष्टिहीनों के पढ़ने के लिए पर्याप्त साधन नहीं हैं. उन्हें सीखने का जनून था. उन्होंने सोचा कि क्यों न मैं दृष्टिहीनों के लिए कोई ऐसा कार्य करूं, जिस से उन्हें पढ़ने में मुश्किल न आए."
उत्साहित हो कर तन्मय ने दादाजी से लुई ब्रेल के बारे में और ज्यादा जानने का आग्रह किया.
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