"सांप और सीढ़ी," मनन मुसकराया और उस ने बोर्ड गेम दिखाया. वह इसे अपने बैकपैक में डाल कर पार्क में लाया था.
अदिति कराह उठी, क्योंकि उसे एक जगह बैठने से नफरत थी. स्कूल में भी हर पीरियड में वह नहीं बैठने के बहाने ढूंढ़ती थी, नोटबुक लौटाना, शौचालय जाना, टीचर्स के लिए काम करना, स्वेच्छा से अतिरिक्त काम करना. कुछ भी करते रहना जो उसे गतिशील बनाए रखे. वह इस के मौके ढूंढ़ती थी. मनन उस का सब से अच्छा दोस्त था. वह कैसे नहीं यह बात जान सका? इस से पहले कि वह अपना डर व्यक्त कर पाती, उस ने इसे एक ट्विस्ट से दूर कर दिया.
पासा फेंकने की प्रत्येक चाल के साथ प्रतिद्वंद्वी कोई सभी एक गतिविधि सुझाएगा.
अब यह खेल उस के लिए दिलचस्प हो गया था.
"बूहू...यह बहुत मजेदार होने वाला है. अब मेरे पास मौका है, तुम्हें बंदर की तरह चेहरे बनाने और कलाबाजी दिखाने योग्य बनाने का कोई समर्थन नहीं मिलेगा, प्यारे दोस्त," अदिति ने घोषणा की. उसकी आंखें शरारत से चमक रही थीं.
मनन का स्वभाव घर के अंदर रहने वाले बच्चे जैसा था. अगर उसे अनुमति दी जाती तो वह साइकिल की सवारी करने के बजाय किताब पढ़ना पसंद करेगा, जबकि अदिति इस के विपरीत थी.
हालांकि दोनों एकदूसरे से एकदम अलग थे, फिर भी वे सब से अच्छे दोस्त हैं. अपनी पसंद को एक तरफ रखते हुए उन्होंने एकदूसरे के लिए समय निकाला. अपने सब से अच्छे दोस्त मनन को घर पर एक स्थान पर रखना उस का सर्वकालिक पसंदीदा शौक था. इस के विपरीत उस के लिए मनन के पास एक छिपा हुआ एजेंडा था, जिस से अदिति खेल छोड़ना चाहेगी.
"एक शर्त है," उस ने कहा, "हम तब तक खेलेंगे, जब तक दोनों थक नहीं जाते. हम रुक सकते हैं और खेल अगले दिन तक जारी रख सकते हैं, लेकिन तब तक न रुकें जब तक दोनों पक्ष राजी न हो जाएं," वह सुरक्षित रहना चाहता था. वह चाहता था कि अदिति उस के नियमों के अनुसार ही खेले.
"मनन, क्या तुम ने कभी हाथियों को अपनी पीठ व सिर पर मिट्टी और रेत उठाते देखा है?"
"हां, डिस्कवरी चैनल पर देखा."
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बा और बापू
मोहनदास करमचंद गांधी, जिन्हें लोग 'महात्मा' और कुछ प्यार से 'बापू' कहते थे, मेरे परदादा एक असाधारण व्यक्ति थे.
वादा गलत हो गया
‘मैं थक गई हूं, मैं पढ़ना नहीं चाहती,’ सुनैना ने बड़बड़ाते हुए कहा. उस की मां अंजना परेशान दिखीं, लेकिन उन्होंने शांत स्वर में कहा, “अभी तो सिर्फ तीन परीक्षाएं बाकी हैं. हम तुम्हारी परीक्षाओं के बाद सप्ताहांत में तुम्हारी पसंद की जगह छुट्टियां मनाने चलेंगे, मैं वादा करती हूं.”
तिरंगा पुरस्कार
जैसे ही वैली तितली ने टोटो चींटी को अपनी नई साइकिल पर तिरंगा झंडा लहराते हुए देखा, वह उड़ कर उस के पास आई और पूछा, “टोटो, तुम अपनी साइकिल पर तिरंगा झंडा लगा कर कहां जा रही हो?”
हमारा संविधान
26 जनवरी नजदीक आ रही थी और चंपकवन के निवासी गणतंत्र दिवस मनाने की तैयारियों में व्यस्त थे. सबकुछ ठीक चल रहा था, तभी बैडी सियार के नेतृत्व में वनवासियों के एक ग्रुप ने जंगल के लिए अलग संविधान की मांग शुरू कर दी.
सर्प वर्ष
मिनयू अपने स्कूल परिसर में चारों ओर देख रही थी, वह उत्साह से चक्कर खा रही थी. वह लाइब्रेरी, क्लासरूम, जिम, म्यूजिक रूम और आर्ट रूम की ओर भागी, लेकिन कहीं भी किसी प्रकार की साजसजा नहीं थी. आखिर निराश हो कर वह देवदार के पेड़ के पास एक बेंच पर लेट गई.
दो जासूस
एक सुबह, निखिल और अखिल के पापा पार्क में टहलने के बाद उदास हो कर घर लौटे.
बर्फीला रोमांच
\"अरे, सुन, जल्दी से मुझे दूसरा कंबल दे दे. आज बहुत ठंड है,” मीकू चूहे ने अपने रूममेट चीकू खरगोश से कहा.
अलग सोच
\"वह यहां क्या कर रहा है?\" अक्षरा ने तनुषा कुमारी, जबकि वह आधी अधूरी मुद्रा में खड़ी थी या जैसे उन की भरतनाट्यम टीचर गायत्री कहती थीं, अरामंडी में खुद को संतुलित कर रही थी.
दादाजी के जोरदार खर्राटे
मीशा और उस की छोटी बहन ईशा सर्दियों की छुट्टी में अपने दादादादी से मिलने गए थे. उन्होंने दादी को बगीचे में टमाटरों को देखभाल करते हुए देखा. उन के साथ उन की बूढ़ी बिल्ली की भी थी. टमाटरों के पौधों को तैयार करना था ताकि वे अगली गर्मियों में खिलें और फल दें.
कौन कर रहा था, मिस्टर चिल्स से खिलवाड़
वीर और उस के दोस्त अपनी सर्दियों की यात्रा के लिए दिन गिन रहे थे. वे नैनीताल जा रहे थे और बर्फ में खेलने और उस के बाद अंगीठी के पास बैठने का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे. आखिरकार जब वे नैनीताल पहुंचे, तो पहाड़ी शहर उन की कल्पना से भी ज्यादा मनमोहक था. बर्फ से जमीन ढक रखी थी. झील बर्फ की पतली परत से चमक रही थी और हवा में ताजे पाइन की खुशबू आ रही थी. यह एक बर्फीली दुनिया का दृश्य था, जो जीवंत हो उठा था.