सुबह होने वाली थी, तभी जोर से हौर्न बजने की आवाज से उस की नींद टूटी. गिन्नी ने ट्रक से बाहर झांका तो उसे चारों तरफ हरियाली नजर आई. प्राकृतिक नजारे मनमोहक थे. "यह तो मेरा गांव नहीं लगता. मैं कहां पहुंच गई हूं?" उस ने सोचा.
वहां एक साइन बोर्ड लगा था, जिस पर लिखा था, "कुर्ग में आप का स्वागत है." उस ने यह नाम पहले कभी नहीं सुना था. सब से हैरान करने वाली बात तो यह थी कि चारों ओर हवा में एक अलग ही तरह की सुगंध थी. उस के गांव में लोग अगरबत्ती जलाते थे और उस की ऐसी सुगंध आती थी, लेकिन की अगरबत्ती तो महक नहीं थी.
जब ट्रक रुका तो गिन्नी छलांग लगा कर नीचे कूद गई. वह सोच ही रही थी कि क्या करे, तभी उसे एक पेड़ के नीचे गिलहरियों का झुंड नजर आया. वे मजे से खेल रही थीं.
उस ने उन्हें बताया, "नमस्ते, मेरा नाम गिन्नी है. क्या तुम मुझे बता सकती हो कि यह किस चीज की खुशबू है, जो चारों ओर फैली हुई है."
"हाय, मेरा नाम सैली है," गिलहरियों में से एक ने पूंछ हिलाते हुए कहा.
"लगता है, तुम यहां नई हो, तभी इस खुशबू को पहचान नहीं पा रही हो."
"तुम कर्नाटक के कुर्ग में हो और यह कौफी की खुशबू है. इसे चाय की तरह ही पिया जाता है. यहां हरेक इसे पीता है. यह थोड़ी कड़वी होती है, पर बहुत स्वादिष्ट पेय है."
"कौफी?" गिन्नी ने इस से पहले यह नाम नहीं सुना था. "कृपया मुझे इस के बारे में और विस्तार से बताओ."
सैली ने सिर हिला कर कहा, "इस क्षेत्र में कौफी की खेती होती है, इसीलिए तो कुर्ग को 'भारत की कौफी राजधानी' भी कहा जाता है. यहां बहुत सारे कौफी के बागान हैं. मैं तुम्हें डोडो तितली से मिलवाती हूं. वह तुम्हें इन बागानों की सैर करवा देगी और उन के बारे में जानकारी भी दे देगी. वह उड़ती रहती है, इसलिए उस के पास हर तरह की जानकारी रहती है."
जैसे ही सैली ने आवाज लगाई, गिन्नी ने देखा एक सतरंगी तितली उस की पीठ पर आ कर बैठ गई. सैली ने डोडो को गिन्नी से मिलवाया.
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बा और बापू
मोहनदास करमचंद गांधी, जिन्हें लोग 'महात्मा' और कुछ प्यार से 'बापू' कहते थे, मेरे परदादा एक असाधारण व्यक्ति थे.
वादा गलत हो गया
‘मैं थक गई हूं, मैं पढ़ना नहीं चाहती,’ सुनैना ने बड़बड़ाते हुए कहा. उस की मां अंजना परेशान दिखीं, लेकिन उन्होंने शांत स्वर में कहा, “अभी तो सिर्फ तीन परीक्षाएं बाकी हैं. हम तुम्हारी परीक्षाओं के बाद सप्ताहांत में तुम्हारी पसंद की जगह छुट्टियां मनाने चलेंगे, मैं वादा करती हूं.”
तिरंगा पुरस्कार
जैसे ही वैली तितली ने टोटो चींटी को अपनी नई साइकिल पर तिरंगा झंडा लहराते हुए देखा, वह उड़ कर उस के पास आई और पूछा, “टोटो, तुम अपनी साइकिल पर तिरंगा झंडा लगा कर कहां जा रही हो?”
हमारा संविधान
26 जनवरी नजदीक आ रही थी और चंपकवन के निवासी गणतंत्र दिवस मनाने की तैयारियों में व्यस्त थे. सबकुछ ठीक चल रहा था, तभी बैडी सियार के नेतृत्व में वनवासियों के एक ग्रुप ने जंगल के लिए अलग संविधान की मांग शुरू कर दी.
सर्प वर्ष
मिनयू अपने स्कूल परिसर में चारों ओर देख रही थी, वह उत्साह से चक्कर खा रही थी. वह लाइब्रेरी, क्लासरूम, जिम, म्यूजिक रूम और आर्ट रूम की ओर भागी, लेकिन कहीं भी किसी प्रकार की साजसजा नहीं थी. आखिर निराश हो कर वह देवदार के पेड़ के पास एक बेंच पर लेट गई.
दो जासूस
एक सुबह, निखिल और अखिल के पापा पार्क में टहलने के बाद उदास हो कर घर लौटे.
बर्फीला रोमांच
\"अरे, सुन, जल्दी से मुझे दूसरा कंबल दे दे. आज बहुत ठंड है,” मीकू चूहे ने अपने रूममेट चीकू खरगोश से कहा.
अलग सोच
\"वह यहां क्या कर रहा है?\" अक्षरा ने तनुषा कुमारी, जबकि वह आधी अधूरी मुद्रा में खड़ी थी या जैसे उन की भरतनाट्यम टीचर गायत्री कहती थीं, अरामंडी में खुद को संतुलित कर रही थी.
दादाजी के जोरदार खर्राटे
मीशा और उस की छोटी बहन ईशा सर्दियों की छुट्टी में अपने दादादादी से मिलने गए थे. उन्होंने दादी को बगीचे में टमाटरों को देखभाल करते हुए देखा. उन के साथ उन की बूढ़ी बिल्ली की भी थी. टमाटरों के पौधों को तैयार करना था ताकि वे अगली गर्मियों में खिलें और फल दें.
कौन कर रहा था, मिस्टर चिल्स से खिलवाड़
वीर और उस के दोस्त अपनी सर्दियों की यात्रा के लिए दिन गिन रहे थे. वे नैनीताल जा रहे थे और बर्फ में खेलने और उस के बाद अंगीठी के पास बैठने का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे. आखिरकार जब वे नैनीताल पहुंचे, तो पहाड़ी शहर उन की कल्पना से भी ज्यादा मनमोहक था. बर्फ से जमीन ढक रखी थी. झील बर्फ की पतली परत से चमक रही थी और हवा में ताजे पाइन की खुशबू आ रही थी. यह एक बर्फीली दुनिया का दृश्य था, जो जीवंत हो उठा था.