दोपहर का वक्त था. रेनू नहा कर बाथरूम से निकली तभी 'भाभी... भाभी' कहता हुआ मोहित उस के घर आ पहुंचा. उस समय रेनू के शरीर पर मात्र पेटीकोट और ब्लाउज था. उस की जुल्फों से पानी की बूंदें टपक रही थीं. मोहित की निगाहें रेनू के मखमली बदन पर जैसे पानी की बूंदों की तरह चिपक कर रह गई थीं.
मोहित की इस हरकत को रेनू समझ रही थी. वह न तो शरमाई और न ही वहां से भाग कर दूसरे कमरे में गई. बल्कि वह नजाकत से चलते हुए उस के और करीब आ गई. मोहित रिश्ते में उस का चचेरा देवर लगता था. उन के बीच अकसर मजाक भी होता रहता था. रेनू उस के एकदम करीब आ कर बोली, "मोहित, खड़े क्यों हो, बैठ जाओ न."
रेनू के कहने के बावजूद मोहित के चारपाई पर नहीं बैठा, बल्कि खड़े खड़े उसे अपलक निहारता रहा. उस के मन में कोई तूफान मचल रहा था. रेनू मादक मुसकान बिखेरती हुई मुड़ी और अंदर वाले कमरे में चली गई. मोहित तब भी अपनी जगह जमा रहा.
रेनू कुछ देर बाद बाहर आई तो मोहित की आंखें फिर उस के चेहरे पर टिक गईं. आखिर रेनू से रहा नहीं गया तो उस ने पूछ ही लिया, "मोहित, तुम मुझे आज इस तरह से क्यों देख रहे हो?"
"बता दूं?" मोहित ने रेनू की आंखों में झांकते हुए कहा, “भाभी, तुम मुझे बहुत खूबसूरत लगती हो. तुम्हारी अदाएं मेरे अंदर बेचैनी पैदा कर रही हैं."
मोहित की बात सुन कर रेनू के मन में भी हलचल मच गई. वह आगे बढ़ी और मोहित का हाथ थाम कर बोली, "सच कहूं मोहित, तुम भी मुझे बहुत अच्छे लगते हो. मैं तो तुम्हारे लिए ही सजतीसंवरती हूं. तुम्हारे भैया को तो मेरी कद्र ही नहीं."
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