ये आकाशवाणी है, अब आप देवकीनंदन पांडे से समाचार सुनिए... दिस इज ऑल इंडिया रेडियो, द न्यूज रेड बाय बरून हालदर...
अस्सी के दशक में ये आवाजें तकरीबन हर घर में सुनायी पड़ती थीं। खबरों के अलावा विविध भारती का हवा महल हो या सैनिकों के लिए गीतों का कार्यक्रम, इन्हें कोई मिस नहीं करना चाहता था। समाचार पत्रों-पत्रिकाओं के बाद रेडियो ही एकमात्र जरिया था दुनिया में हो रहे बदलाव को जानने का।
वो पहली धुन वायलिन की: वर्ष 1906, दिसंबर की किसी शाम कनाडा के साइंटिस्ट फेसेंडेन ने वायलिन बजाया, तो अटलांटिक महासागर में तैर रहे जहाजों के रेडियो ऑपरेटर्स ने उसे अपने रेडियो सेट पर सुना। यह थी दुनिया में रेडियो की शुरुआत। हालांकि कहा जाता है कि इससे पहले भी भारत में जगदीश चंद्र बसु ने व्यक्तिगत तौर पर बेतार संदेश भेज कर रेडियो संदेश भेजा था। भारत में रेडियो का प्रसारण मुंबई - कोलकाता में 1927 में हुआ। 1930 में इसका राष्ट्रीयकरण हुआ और इसे नाम दिया गया इंडियन ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन।
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