हमारे अस्तित्व का यह बहुत निराला गुण है कि हम ऐसे ग्रह से आते हैं, जो जीवन को बढ़ावा देने के मामले में बहुत अच्छा है और उस जीवन को मिटा देने के मामले में उससे भी बेहतर है।
अगर शुरुआत से बात करें, तो आपके यहाँ तक पहुँचने में इधर -उधर यूँ ही घूमते अरबों-खरबों अणुओं को बहुत जटिल और दिलचस्प तरीक़े से एक साथ आना पड़ा, ताकि आपकी रचना हो सके। यह व्यवस्था इतनी विशिष्ट और असाधारण है कि पहले कभी इसकी आज़माइश नहीं हुई और फिर कभी होगी भी नहीं। अगले कई वर्षों तक (हमें उम्मीद है) ये अत्यंत सूक्ष्म अणु बिना किसी शिकायत के उन अरबोंखरबों कुशलता से भरी आपसी सहयोग की कोशिशों में लगे रहेंगे, ताकि आप बिलकुल ठीक रहें और अत्यधिक स्वीकार्य, लेकिन अक्सर आवश्यकता से कम महत्त्व दिए जाने वाली स्थिति यानी अस्तित्व का अनुभव कर सकें। अणु इतनी ज़हमत आख़िर क्यों उठाते हैं, यह अब तक एक पहेली ही है। आपका होना आणविक स्तर पर बहुत सुखद अनुभव नहीं है। ये अणु आपके प्रति पूरी तरह समर्पित तो हैं, लेकिन दरअसल इन्हें आपकी बिलकुल भी नहीं है या यूँ कहें कि इन्हें पता भी नहीं होता कि आप मौजूद हैं। उन्हें अपने होने तक की भी जानकारी नहीं होती। उनमें समझ नहीं होती और यहाँ तक कि जान भी नहीं होती। (यह अवधारणा थोड़ी आकर्षक है कि अगर आपको चिमटी से अपने एक-एक अणु को अलग करना हो, तो आपके पास अणुओं की महीन धूल का एक ढेर जमा हो जाएगा, जिसमें से कुछ भी सजीव नहीं रहा होगा, लेकिन वह वही सब है, जो कभी आप थे।) इसके बावजूद आपके जीवनकाल के दौरान उनका एकमात्र प्रयोजन यही होगा कि आपको आप बनाकर रखें।
बुरी ख़बर यह है कि ये अणु अस्थिर होते हैं और उनका आपके प्रति समर्पण अस्थायी होता है - वाक़ई ऐसा ही है। एक लंबे मानवीय जीवन में लगभग केवल 6,50,000 घंटे होते हैं। जब यह समय अचानक सामने आ जाएगा या फिर उसके आस-पास कहीं होगा, तो यही अणु आपकी प्रणाली को बंद कर देंगे और चुपचाप अलग होकर कुछ और बन जाएँगे। तो यही है आपका सच!
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