![मटर के रोग और प्रबंधन](https://cdn.magzter.com/1400326928/1701069900/articles/yApBkgWmu1701075892031/1701076388708.jpg)
मटर का उकठा
मटर के पौधे में लगभग एक ही प्रकार के 2 उकठा रोगों का प्रकोप होता है. पहले प्रकार के उकठा को 'रूट विल्ट' नाम से जाना जाता है, जो फ्यूजेरियम औक्सीस्पोरम फा. स्प. पाइसाइ रेस-1 नामक कवक द्वारा उत्पन्न किया जाता है. वहीं दूसरे प्रकार के उकठा को 'नियर विल्ट' के नाम से जाना जाता है, जो इसी कवक के रेस-2 से 11 तक द्वारा उत्पन्न किया जाता है.
रूट विल्ट
लक्षण : रोगकारक कवक फसल को वृद्धिकाल की किसी भी अवस्था में ग्रसित कर सकता है. ग्रसित पौधों की वृद्धि का रुक जाना, पौधों की निचली पत्तियों का नीला पड़ जाना, नई पत्तियों के किनारे ऊपर और नीचे की ओर मुड़ जाना, भूमि सतह के पास तने का हलका मोटा एवं भंगुर हो जाना आदि शुरुआती लक्षण पाए जाते हैं. प्रभावित पौधों की फीडर रूट के नष्ट हो जाने के कारण पौधे धीरेधीरे मरने लगते हैं. अकसर यह देखा गया है कि नम मिट्टियों की अपेक्षा अत्यंत सूखी मिट्टियों में ये जल्दी मरते हैं.
यदि पौधा वृद्धि की अवस्था में शीघ्र रोग से ग्रसित हो जाता है, तो बिना फली उत्पादन के ही मर जाता है. रोग का आक्रमण यदि फसल की बाद की अवस्था में होता है, तो पौधा बिना दाने की चपटी व टेढ़ीमेढ़ी फलियां उत्पादित करता है. रोगग्रस्त खेतों में यह रोग गोलगोल चकत्तों में दिखाई देता है.
नियर विल्ट
लक्षण : रूट विल्ट की तरह ही पौधा वृद्धिकाल की किसी भी अवस्था में रोग से ग्रसित हो सकता है. रोग के शुरुआती लक्षण जैसे रोगी पौधों का जमाव तो होता है, पर जमाव होते ही पौधों का मरना एवं कमरतोड़ हो जाना आदि लक्षण पाए जाते हैं.
यदि रोग का आक्रमण पौधों पर बाद की अवस्था में होता है, तो बीजपत्र जुड़े होने वाले स्थान के पास काले रंग का विकास हो जाता है, जिस से जड़ के बाहरी भागों को हानि पहुंचती है. रोग के अन्य लक्षण रूट विल्ट की भांति होते हैं, लेकिन नियर विल्ट से ग्रसित पौधे अपेक्षाकृत धीरेधीरे मरते हैं.
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![स्वाद का खजाना आम कलाकंद](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/6498/1736096/ftjdpDP-u1718696255527/1718696374094.jpg)
स्वाद का खजाना आम कलाकंद
आम को यों ही फलों का राजा नहीं कहा जाता है, बल्कि इस की खूबियां और अलगअलग तरह के रंग, रूप और लाजवाब जायका इसे फलों के राजा का खिताब दिलाता है.
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राजस्थान की रेत में बागबानी से लखपति बनी महिला किसान संतोष देवी
हमारे देश में महिला किसानों और खेत में काम करने वाली महिलाओं की संख्या पर अगर गौर करें, तो इन की कुल संख्या 84 फीसदी है. लेकिन मुख्य धारा की मीडिया में इन महिला किसानों की चर्चा बहुत कम होती है या कह लिया जाए कि न के बराबर होती है, जबकि देश में मुट्ठीभर बिजनैस वुमन की खबरें अकसर मीडिया के जरीए हम लोगों के सामने आती रहती हैं.
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जून महीने में खेतीकिसानी के काम
जून का महीना खेती के लिहाज से खासा अहम है. खरीफ फसलों को बोने के साथसाथ जानवरों का खास खयाल रखना जरूरी हो जाता है.
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ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई खेती के लिए लाभकारी
ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई से खेतों की उर्वराशक्ति, जल संवर्धन में वृद्धि एवं कीटों व रोगों के आक्रमण में भी कमी आती है.
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'नवोन्मेषी किसान सम्मेलन' का आयोजन
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![धान की खेती में महिलाओं के लिए सस्ते सुलभ कृषि यंत्र](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/6498/1736096/2wzy0EhyV1718694927530/1718695087369.jpg)
धान की खेती में महिलाओं के लिए सस्ते सुलभ कृषि यंत्र
जिन किसानों के पास खेती की कम जमीन है और वे उस पर धान की खेती करना चाहते हैं, उन के लिए धान की बोआई व रोपाई के ये दोनों यंत्र खासा मददगार हो सकते हैं, खासकर महिलाओं को ध्यान में रख कर इन यंत्रों को संस्थान ने बनाया है.
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खेती के विकास में स्मार्ट तकनीक
स्मार्ट खेती, वैज्ञानिक भाषा में परिशुद्ध या सटीक कृषि या प्रिसिजन फार्मिंग कहलाती है, जिस में उत्पादन क्षमता और कृषि उत्पादों की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए मौजूद कृषि पद्धतियों में उन्नत प्रौद्योगिकियों का एकीकरण किया जाता है. अतिरिक्त लाभ के रूप में किसानों के भारी श्रम और ज्यादा मेहनत वाले कामों को कम कर के उन के जीवन की गुणवत्ता में सुधार होता है.
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बांस एक फायदे अनेक
बांस की बांसुरी से तो हम सब ही परिचित हैं. बांस को लोग आमतौर पर लकड़ी मान लेते हैं. बांस एक तरह की विशेष घास है. आज यह मनुष्य के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध हो रही है.
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मूंगफली की खेती
भारत में मूंगफली के उत्पादन का तकरीबन 75 से 85 फीसदी हिस्सा तेल के रूप में इस्तेमाल होता है. खरीफ और जायद दोनों मौसमों में इस की खेती की जाती है. जायद के समय जहां पर ज्यादा बारिश होती है, वहां पर भी मूंगफली की खेती की जा सकती है. इस के लिए शुष्क जलवायु की जरूरत होती है.
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पावर टिलर: खेती के करे कई काम
समय के साथ-साथ खेती करने के तरीकों में बदलाव आया है. अब ज्यादातर छोटेबड़े सभी किसान अपनी जरूरत के मुताबिक कृषि यंत्रों का इस्तेमाल करने लगे हैं.