साधारण व्यक्तित्व के असाधारण प्रयासों से बुंदेलखंड के पानीदार होने की कहानी
Farm and Food|April First 2024
जिस अनजान नायक ने बुदेलखंड को पानीदार बनाया, वे यह सब सामुदायिक सहयोग के बूते बगैर सरकार की सहायता के करते हैं. उमाशंकर पांडेय के पास न कोई एनजीओ है, न संस्था है, न कोई कार्यालय और न ही वाहन.
भानु प्रकाश राणा
साधारण व्यक्तित्व के असाधारण प्रयासों से बुंदेलखंड के पानीदार होने की कहानी

हाल ही में एक कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश के जल शक्ति मंत्री स्वतंत्र देव सिंह ने पानी के ऊपर आयोजित एक कार्यक्रम में यह दावा किया था कि उत्तर प्रदेश में तेजी से भूजल स्तर बढ़ा है, जो आने वाले दिनों में बुंदेलखंड के तरक्की की कहानी में अहम किरदार होगा.

यह दावा केवल उत्तर प्रदेश के जल शक्ति मंत्री का ही नहीं है, बल्कि इसे उत्तर प्रदेश सरकार, भारत सरकार, नीति आयोग, जल शक्ति मंत्रालय सहित तमाम शोध संस्थाओं और देशीविदेशी मीडिया ने भी माना.

माइनर इरीगेशन डिपार्टमैंट अपने एक रिपोर्ट जारी की, जिस में बुंदेलखंड में भूजल स्तर के बढ़ने से बासमती चावल के रकबे में आज तक के इतिहास में न केवल सब से ज्यादा बढ़ोतरी हुई, बल्कि उत्पादन भी कई गुना बढ़ने से लोगों के पलायन में भी कमी आई.

अब सवाल यह उठता है कि जिस बुंदेलखंड में कभी दिल्ली से मालगाड़ी के जरीए पानी आता था. बांदा से चित्रकूट, मानिकपुर पाठा ट्रेन के टैंकर से कभी पानी जाता था, आज उसी चित्रकूट के पाठा, मऊ और राजापुर जैसे सूखे क्षेत्र में सरकारी धान खरीदारी के लिए सरकारी क्रय केंद्र स्थापित कर हजारों मीट्रिक टन बासमती चावल की खेती कैसे संभव हुई? क्योंकि देश में धान ही एक ऐसी फसल है, जिसे सब से ज्यादा पानी की जरूरत होती है.

कभी भीषण सूखे की मार झेलने वाले चित्रकूट के राजापुर में न्यूनतम समर्थन मूल्य में 4,000 मीट्रिक टन की खरीदारी की गई, जबकि बुंदेलखंड के 75,270 मीट्रिक टन गेहूं खरीदा गया. अकेले चित्रकूट मंडल के किसानों ने 41,076 मेट्रिक टन गेहूं उत्तर प्रदेश सरकार को बेचा, जबकि बुंदेलखंड मंडल का ही झांसी, जिस में 34,194 मीट्रिक टन गेहूं सरकार ने खरीदा. सूखे, प्यास, पलायन और बेरोजगारी के लिए विख्यात उत्तर प्रदेश सरकार को पिछले 5 वर्षों में करीब 700 करोड़ का धान बेचा है. आखिर इस बदलाव और बुंदेलखंड के पानीदार होने के पीछे किस का हाथ रहा, जो इतना बड़ा बदलाव आया. आइए, जानते हैं.

This story is from the April First 2024 edition of Farm and Food.

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