तुरंत गड्ढा खोद कर पौध लगाने से एक तो पौध की सही से बढ़वार नहीं हो पाती और जड़ें नीचे तक नहीं जा पाती हैं. वहीं पौधे को पोषक तत्त्वों की खुराक नहीं मिल पाती और पत्तियां जलने लगती हैं.
इस के अलावा पौधा गोमोसिस बीमारी की चपेट में आ जाता है, जो धीरेधीरे सूख जाता है. बाग लगाने के पहले खोदे गए गड्ढे में पौध रोपण से पौधे को भरपूर पोषक तत्त्व मिलते हैं और फल भी जल्दी प्राप्त होने लगता है.
एक बात का खास खयाल रखें कि बाग लगाने की तैयारी कर रहे हैं, तो मिट्टी जांच जरूर कराएं, इसलिए बगीचों की स्थापना के लिए जगह के चयन, रेखांकन के बाद गड्ढे बनाने का काम जल्द पूरा किया जाना चाहिए. समय पर इस में डाले जाने वाले उर्वरक और खाद को मिट्टी में मिला कर इन का उचित रोपण करें.
ये काम पौध रोपित करने के बाद नहीं किए जा सकते हैं, इसलिए खेत की तैयारी और गड्ढा बनाने का काम शीघ्र पूरा करना चाहिए. पौधा लगाते समय अगर किसी प्रकार की कोई कमी रह जाती है, तो बगीचों के संपूर्ण जीवनकाल में इस कमी को पूरा नहीं किया जा सकता है.
जो किसान मानसून सीजन में पौध रोपण की तैयारी कर रहे हैं, वे जिस खेत का चुनाव बाग लगाने के लिए कर रहे हैं, उस खेत के खाली होने की दशा में अप्रैल महीने में सिंचाई करने के बाद उचित नमी रहते जुताई कर मिट्टी को भुरभुरी बना कर समतल कर लेना जरूरी हो जाता है. इस दौरान यह सुनिश्चित कर लें कि खेत में खरपतवार न हों. खरपतवार होने की दशा में खेत से खरपतवार हटा दें.
पौध रोपने लिए खेत की तैयारी और दूरी का निर्धारण
बाग लगाने के लिए जब आप रेखांकन यानी पौध से पौध और लाइन से लाइन की दूरी का निर्धारण कर रहे हों, तो यह सुनिश्चित कर लें कि जब बाग सघन हो जाएं, तब भी सूरज की सही रोशनी पेड़ों को मिलती रहे. इस के लिए किसान पौधों की बढ़वार के हिसाब से दूरी तय कर सकते हैं.
वर्गाकार विधि दूसरी सभी विधियों में सब से अच्छी और सफल मानी जाती है, क्योंकि इस में पौधों से पौधों की दूरी और पंक्ति से पंक्ति की दूरी समान होती है. पौधों के रोपने के लिए सीधी लाइनों का निर्धारण करने के लिए आप रस्सियों या बड़े इंचटेप का सहारा ले सकते हैं.
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कचरे के पहाड़ों पर खेती कमाई की तकनीक
वर्तमान में कचरा एक गंभीर वैश्विक समस्या बन कर उभरा है. भारत की बात करें, तो साल 2023 में पर्यावरण की स्थिति पर जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में प्रतिदिन तकरीबन डेढ़ करोड़ टन ठोस कचरा पैदा हो रहा है, जिस में से केवल एकतिहाई से भी कम कचरे का ठीक से निष्पादन हो पाता है. बचे कचरे को खुली जगहों पर ढेर लगाते हैं, जिसे कचरे की लैंडफिलिंग कहते हैं.
सर्दी की फसल शलजम
कम समय में तैयार होने वाली फसल शलजम है. इसे खास देखभाल की जरूरत नहीं होती है और किसान को क मुनाफा भी ज्यादा मिलता है. शलजम जड़ वाली हरी फसल है. इसे ठंडे मौसम में हरी सब्जी के रूप उगाया व इस्तेमाल किया जाता है. शलजम का बड़ा साइज होने पर इस का अचार भी बनाया जाता है.
राममूर्ति मिश्र : वकालत का पेशा छोड़ जैविक खेती से तरक्की करता किसान
हाल के सालों में किसानों ने अंधाधुंध रासायनिक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग कर धरती का खूब दोहन किया है. जमीन से अत्यधिक उत्पादन लेने की होड़ के चलते खेतों की उत्पादन कूवत लगातार घट रही है, क्योंकि रसायनों के अंधाधुंध प्रयोग के चलते मिट्टी में कार्बांश की मात्र बेहद कम हो गई है, वहीं सेहत के नजरिए से भी रासायनिक उर्वरकों से पैदा किए जाने वाले अनाज और फलसब्जियां नुकसानदेह साबित हो रहे हैं.
करें पपीते की वैज्ञानिक खेती
पपीता एक महत्त्वपूर्ण फल है. हमारे देश में इस का उत्पादन पूरे साल किया जा सकता है. पपीते की खेती के लिए मुख्य रूप से जाना जाने वाला प्रदेश झारखंड है. यहां उचित जलवायु मिलने के कारण पपीते की अनेक किस्में तैयार की गई हैं.
दिसंबर महीने के जरुरी काम
आमतौर पर किसान नवंबर महीने में ही गेहूं की बोआई का काम खत्म कर देते हैं, मगर किसी वजह से गेहूं की बोआई न हो पाई हो, तो उसे दिसंबर महीने के दूसरे हफ्ते तक जरूर निबटा दें.
चने की खेती और उपज बढाने के तरीके
भारत में बड़े पैमाने पर चने की खेती होती है. चना दलहनी फसल है. यह फसल प्रोटीन, फाइबर और विभिन्न विटामिनों के साथसाथ मिनरलों का स्त्रोत होती है, जो इसे एक पौष्टिक आहार बनाती है.
रोटावेटर से जुताई
आजकल खेती में नएनए यंत्र आ रहे हैं. रोटावेटर ट्रैक्टर से चलने वाला जुताई का एक खास यंत्र है, जो दूसरे यंत्रों की 4-5 जुताई के बराबर अपनी एक ही जुताई से खेत को भुरभरा बना कर खेती योग्य बना देता है.
आलू खुदाई करने वाला खालसा पोटैटो डिगर
खालसा डिगर आवश्यक जनशक्ति और समय बचाता है. इस डिगर को जड़ वाली फसलों की खुदाई के लिए डिजाइन किया गया है. इस का गियर बौक्स में गुणवत्तापूर्ण पुरजों का इस्तेमाल किया गया है, जो लंबे समय तक साथ देने का वादा करते हैं.
कृषि एवं कौशल विकास से ही आत्मनिर्भर भारत बन सकेगा
बातचीत : गौतम टेंटवाल, कौशल विकास एवं रोजगार मंत्री, मध्य प्रदेश
गेहूं में खरपतवार नियंत्रण के प्रभावी उपाय
खरपतवार ऐसे पौधों को कहते हैं, जो बिना बोआई के ही खेतों में उग आते हैं और बोई गई फसलों को कई तरह से नुकसान पहुंचाते हैं. मुख्यतः खरपतवार फसलीय पौधों से पोषक तत्त्व, नमी, स्थान यानी जगह और रोशनी के लिए होड़ करते हैं. इस से फसल के उत्पादन में कमी होती है.