क्या भतीजे से अदावत ने खत्म कर दिया है
DASTAKTIMES|July 2022
अब किसी मोर्चे व गठजोड़ की उम्मीद छोड़ते हुए शिवपाल यादव ने खुलेआम कहना शुरू कर दिया है कि सपा ने उनके साथ विश्वासघात किया। दिलचस्प यह कि हर तरफ से ठोकर खाने के बाद सपा विधायक शिवपाल यादव अब 2024 का लोकसभा चुनाव अकेले लड़ने व अपनी पार्टी को मजबूती देने की बात करने लगे हैं, लेकिन उनके लिए आगे की सियासी डगर आसान नहीं दिखाई दे रही है।
संजय सक्सेना
क्या भतीजे से अदावत ने खत्म कर दिया है

शिवपाल का सियासी सफर

समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक शिवपाल यादव किसी पहचान को मोहताज नहीं हैं । भले ही आज शिवपाल यादव के सितारे गर्दिश में हों, उनके साथ कोई चलने को तैयार न हो, कदम-कदम पर उनके साथ छल हो रहा हो, उन लोगों ने भी उनसे किनारा कर लिया जो 24 घंटे उनकी वंदना किया करते थे, जेल में बंद जिस दिग्गज सपा नेता का शिवपाल ने लगातार साथ दिया, वह भी जेल से बाहर आने के बाद अपने फायदे के लिए उनके (शिवपाल) खिलाफ 'रंग' बदल लें तो इसे समय का खेल ही कहा जाएगा। इसकी शुरुआत तब हुई थी, जब समाजवादी पार्टी पर अपना वर्चस्व जमाने के बाद उनके भतीजे अखिलेश यादव ने चचा शिवपाल को अपमानित करना शुरू कर दिया। हालत यहां तक पहुंच गई कि वह अखिलेश ही उनके सबसे बड़े दुश्मन बन गए हों जिनको शिवपाल ने न केवल अपनी गोद में खिलाया था, बल्कि एक संरक्षक की तरह 'उनका' लालन-पालन भी किया था। क्योंकि मुलायम सिंह राजनैतिक व्यस्तता के कारण अखिलेश को ज्यादा समय नहीं दे पाते थे, लेकिन अब चचा-भतीजे के बीच 'दूरियां' इतनी बढ़ गई हैं कि आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव के प्रचार से भी शिवपाल यादव को दूर रखा गया। यही सब विधानसभा चनाव के समय भी हुआ था।

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बहुत जल्द अमेरिका की राष्ट्रीय खुफिया एजेंसियों की कमान नवनियुक्त निदेशक तुलसी गबाई के हाथ में होगी। अमेरिका की पहली हिंदू सांसद तुलसी का आरएसएस और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से पुराना रिश्ता रहा है। संघ परिवार से जुड़े भारतीय मूल के अमेरिकी हिंदू नागरिक उनके लिए हर चुनाव में लाखों डालर का चंदा जुटाते हैं। आरएसएस के इसी दुलार के कारण अमेरिका में तुलसी 'प्रिंसेज ऑफ द आरएसएस' के नाम से चर्चित हैं। पहले तुलसी का डेमोक्रेटिक पार्टी छोड़ना फिर अचानक डोनाल्ड ट्रम्प को समर्थन देना और फिर रिपब्लिकन पार्टी का दामन थामकर इस मुकाम तक पहुंचना हॉलीबुड के किसी हाई प्रोफाइल पॉलिटिकल ड्रामे से कम नहीं। भारतीय मामलों में अमेरिकी खुफिया एजेंसियों की बेवजह 'अति सक्रिय' होने के बाद अचानक खुफिया एजेंसियों की कमान तुलसी गबार्ड को दिए जाने को भारत के कूटनीतिक दांव के रूप में देखा जा रहा है।

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प्रदूषण से सांसत में जान
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पीके अपनी पार्टी की रणनीति में हुए फेल
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पीके के नाम से मशहूर प्रशांत किशोर ने जनसुराज पार्टी बनाने के करीब 40 दिन बाद अपने प्रत्याशियों को चुनाव लड़ाया। प्रत्याशियों का चयन बहुत सोच-समझ किया गया। पीके की ओर से जीत के दावे भी थे, लेकिन वह परिणाम के रूप में सामने नहीं आ सके। हालांकि, पीके इस बात से थोड़े खुश जरूर होंगे कि तीन सीटों पर जनसुराज के प्रत्याशी तीसरे स्थान पर रहे।

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