ज्ञानवापी विवाद: अदालत से पहले योगी का 'फैसला'
DASTAKTIMES|August 2023
मुख्यमंत्री ने साफ शब्दों में कहा कि मुझे लगता है कि भगवान ने जिसे दृष्टि दी है वो देखे ना। त्रिशूल मस्जिद के अंदर क्या कर रहा है, हमने तो नहीं रखे न। ज्योतिर्लिंग हैं, देव प्रतमायें हैं। पूरी दीवारें चिल्ला-चिल्ला के क्या कह रही हैं? इतना ही नहीं मुख्यमंत्री ने यहां तक कहा कि उन्हें (योगी) लगता है यह प्रस्ताव मुस्लिम समाज की ओर से आना चाहिए कि साहब ऐतिहासिक गलती हुई है। उसके लिए हम चाहते हैं कि समाधान हो।
विजय सिंह
ज्ञानवापी विवाद: अदालत से पहले योगी का 'फैसला'

वाराणसी में ज्ञानवापी परिसर के एएसआई सर्वे में आ रही सभी बाधाएं सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद दूर होते ही ज्ञानवापी परिसर में सर्वे शुरू हो गया है। इसे हिंदू पक्ष की बड़ी कामयाबी माना जा रहा है। मुस्लिम पक्ष भले ही लगातार सर्वे की मुखालफत कर रहा था, लेकिन अब दोनों पक्ष सर्वे में हिस्सा ले रहे हैं। लगभग 350 साल पुरानी मस्जिद का सर्वे कराने के पीछे यह जानना है कि क्या यह किसी मंदिर को तोड़कर उसके ऊपर बनाई गई है? अब चार महीने में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की 61 सदस्यों की टीम सर्वे पूरा करके अपनी रिपोर्ट बिना किसी रोक-टोक दे सकती है, लेकिन यह नहीं समझना चाहिए कि सर्वे मात्र से ज्ञानवापी परिसर हिंदू पक्ष को उनका हक मिल जाएगा या मुस्लिम पक्ष की दावेदारी खत्म हो जाएगी? इसके लिए अभी दोनों पक्षों को लंबी लड़ाई लड़नी होगी, इसलिए दोनों पक्षों को ज्ञानवापी पर बयानबाजी करते समय थोड़ी सजगता बरतना चाहिए। लेकिन ऐसा होता दिख नहीं रहा है, कम से कम राजनेता तो यही संदेश दे रहे हैं। ज्ञानवापी विवाद को लेकर मोदी-योगी सरकार भी ऐक्टिव मोड में नजर आ रही है, उसे लगता है कि ज्ञानवापी का मामला 2024 के आम चुनाव में बड़ा गुल खिला सकता है। संभवतः इसीलिए ज्ञानवापी मंदिर-मस्जिद विवाद का अंतिम निर्णय आने से पूर्व भारतीय जनता पार्टी ने माइंड गेम शुरू कर दिया है। बीजेपी इस विवाद के निपटारे का श्रेय अदालत की जगह अपने आप को देने के लिए तो उतावली नहीं है, ऐसा इसलिए लग रहा है क्योंकि जब ज्ञानवापी विवाद निपटारे के लिए अदालतें लगातार सुनवाई कर रही हों और कोई नतीजा आने से पूर्व उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ यदि यह कहें कि ज्ञानवापी प्रकरण में ऐतिहासिक गलती को सुधारने के लिए मुसलमान आगे आएं तो, साफ है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ एक तीर से कई निशाने साधना चाहते हैं। कुछ लोगों को लगता है योगी ने यदि यह बयान व्यक्तिगत तौर पर दिया होता तो कोई बात नहीं थी, लेकिन उन्हें सीएम की कुर्सी पर ऐसे बयान देने से बचना चाहिए। 

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कैसे अमेरिकी जासूसों की चीफ बनी - प्रिंसेज ऑफ द आरएसएस
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बहुत जल्द अमेरिका की राष्ट्रीय खुफिया एजेंसियों की कमान नवनियुक्त निदेशक तुलसी गबाई के हाथ में होगी। अमेरिका की पहली हिंदू सांसद तुलसी का आरएसएस और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से पुराना रिश्ता रहा है। संघ परिवार से जुड़े भारतीय मूल के अमेरिकी हिंदू नागरिक उनके लिए हर चुनाव में लाखों डालर का चंदा जुटाते हैं। आरएसएस के इसी दुलार के कारण अमेरिका में तुलसी 'प्रिंसेज ऑफ द आरएसएस' के नाम से चर्चित हैं। पहले तुलसी का डेमोक्रेटिक पार्टी छोड़ना फिर अचानक डोनाल्ड ट्रम्प को समर्थन देना और फिर रिपब्लिकन पार्टी का दामन थामकर इस मुकाम तक पहुंचना हॉलीबुड के किसी हाई प्रोफाइल पॉलिटिकल ड्रामे से कम नहीं। भारतीय मामलों में अमेरिकी खुफिया एजेंसियों की बेवजह 'अति सक्रिय' होने के बाद अचानक खुफिया एजेंसियों की कमान तुलसी गबार्ड को दिए जाने को भारत के कूटनीतिक दांव के रूप में देखा जा रहा है।

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