आयोजन की बिसात पर जाति की सियासत
DASTAKTIMES|December 2023
सबसे पहले बात बीते दिनों प्रदेश में जातिगत जनगणना के आंकड़े जारी करने की करते हैं। इसका सीधा उद्देश्य पिछड़ा, अत्यंत पिछड़ा और अनुसूचित जाति, जनजाति को साधना था। इसमें नीतीश कुमार काफी सफल भी रहे। इसके बाद उन्होंने सरकारी नौकरियों और दाखिले में 75 प्रतिशत आरक्षण को लागू कर दिया। राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर के हस्ताक्षर और गजट अधिसूचना के साथ ही राज्य की सरकारी सेवाओं और सरकारी शिक्षण संस्थानों के दाखिले में आरक्षण की नई व्यवस्था लागू भी हो गई है। नई व्यवस्था में पहले से जारी आरक्षण में 15 प्रतिशत की वृद्धि की गई। इनमें से 13 प्रतिशत पिछड़े एवं दो प्रतिशत अनसूचित जाति-जनजाति के कोटे में जोड़ा गया।
दिलीप कुमार
आयोजन की बिसात पर जाति की सियासत

लोकसभा चुनाव में कुछ ही महीने शेष हैं। बिहार में इसे लेकर राजनीति तेज हो गई है। जातियों की गोलबंदी की जा रही है। हर एक जाति विशेष के आराध्य को लेकर आयोजन किया जा रहा है। इसमें भाजपा, जदयू, राजद और कांग्रेस से लेकर अन्य छोटे दल लगे हैं। इस तरह देखा जाए तो आयोजन की बिसात पर जाति की राजनीति है। सबसे पहले बात बीते दिनों प्रदेश में जातिगत जनगणना के आंकड़े जारी करने की करते हैं। इसका सीधा उद्देश्य पिछड़ा, अत्यंत पिछड़ा और अनुसूचित जाति, जनजाति को साधना था। इसमें नीतीश कुमार काफी सफल भी रहे। इसके बाद उन्होंने सरकारी नौकरियों और दाखिले में 75 प्रतिशत आरक्षण को लागू कर दिया।

राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर के हस्ताक्षर और गजट अधिसूचना के साथ ही राज्य की सरकारी सेवाओं और सरकारी शिक्षण संस्थानों के दाखिले में आरक्षण की नई व्यवस्था लागू भी हो गई है। नई व्यवस्था में पहले से जारी आरक्षण में 15 प्रतिशत की वृद्धि की गई। इनमें से 13 प्रतिशत पिछड़े एवं दो प्रतिशत अनसूचित जाति-जनजाति के कोटे में जोड़ा गया। आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए 10 और अन्य वर्गों के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण पहले से दिया जा रहा था। इसके बाद नीतीश सरकार ने कोर्ट के किसी हस्तक्षेप से बचने के लिए कैबिनेट से पास कर बिहार संशोधित आरक्षण अधिनियम को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए केन्द्र सरकार को अनुशंसा भेज दी। इस तरह उसने गेंद भाजपा के पाले में डाल दी है। आरक्षण बढ़ाने से लेकर नौवीं अनुसूची में शामिल करने के किसी भी प्रस्ताव का भाजपा ने विरोध नहीं किया, क्योंकि वह जानती है कि इसका उसे चुनाव में नुकसान होगा। 

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बहुत जल्द अमेरिका की राष्ट्रीय खुफिया एजेंसियों की कमान नवनियुक्त निदेशक तुलसी गबाई के हाथ में होगी। अमेरिका की पहली हिंदू सांसद तुलसी का आरएसएस और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से पुराना रिश्ता रहा है। संघ परिवार से जुड़े भारतीय मूल के अमेरिकी हिंदू नागरिक उनके लिए हर चुनाव में लाखों डालर का चंदा जुटाते हैं। आरएसएस के इसी दुलार के कारण अमेरिका में तुलसी 'प्रिंसेज ऑफ द आरएसएस' के नाम से चर्चित हैं। पहले तुलसी का डेमोक्रेटिक पार्टी छोड़ना फिर अचानक डोनाल्ड ट्रम्प को समर्थन देना और फिर रिपब्लिकन पार्टी का दामन थामकर इस मुकाम तक पहुंचना हॉलीबुड के किसी हाई प्रोफाइल पॉलिटिकल ड्रामे से कम नहीं। भारतीय मामलों में अमेरिकी खुफिया एजेंसियों की बेवजह 'अति सक्रिय' होने के बाद अचानक खुफिया एजेंसियों की कमान तुलसी गबार्ड को दिए जाने को भारत के कूटनीतिक दांव के रूप में देखा जा रहा है।

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पीके के नाम से मशहूर प्रशांत किशोर ने जनसुराज पार्टी बनाने के करीब 40 दिन बाद अपने प्रत्याशियों को चुनाव लड़ाया। प्रत्याशियों का चयन बहुत सोच-समझ किया गया। पीके की ओर से जीत के दावे भी थे, लेकिन वह परिणाम के रूप में सामने नहीं आ सके। हालांकि, पीके इस बात से थोड़े खुश जरूर होंगे कि तीन सीटों पर जनसुराज के प्रत्याशी तीसरे स्थान पर रहे।

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