मोदी के सफल धामी प्रयोग ने दिलाया नए चेहरों को अवसर
DASTAKTIMES|January 2024
भाजपा से जुड़े सूत्रों का कहना है कि हाल ही में संपन्न हुए पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव पीएम नरेंद्र मोदी के चेहरे पर लड़े गये थे। इसलिए राज्यों में नेतृत्व का फैसला पीएम मोदी व पार्टी नेतृत्व ने लिया है। पार्टी नेतृत्व अब राज्यों के क्षत्रपों का दबाव बर्दाश्त करने के मूड में कतई नहीं है। वहीं, पार्टी में सामान्य विधायकों को सूबे की कमान सौंपकर राज्यों में चल रही गुटबाजी को थामने की कोशिश की गई है।
गौरव ममगाई
मोदी के सफल धामी प्रयोग ने दिलाया नए चेहरों को अवसर

भारतीय जनता पार्टी ने हाल ही में विधानसभा चुनावों में जीते हुए राजस्थान, मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ में कद्दावर नेताओं के बजाय नये चेहरों को सूबे की कमान क्या सौंपी, देशभर में भाजपा के नये प्रयोग की खूब चर्चाएं हो रही हैं। तीनों राज्यों में ऐसे नामों को चुना गया, जिनकी कोई चर्चा तक नहीं थी। समान्य विधायकों को सीएम बनाकर पार्टी ने एक तीर से कई निशाने साधे हैं। इस फैसले से कार्यकर्ताओं में उत्साह व उमंग का संचार हुआ है। आज इसे भाजपा के नये प्रयोग के रूप में देखा जा रहा है लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि इस प्रयोग की शुरुआत 2001 में ही हो गयी थी, जब गुजरात में भाजपा के एक सामान्य से कार्यकर्ता को इस बड़े राज्य की कमान सौंप दी गयी थी। उस कार्यकर्ता का नाम था- नरेन्द्र मोदी। तब तो नरेन्द्र मोदी के पास विधायक बनने का अनुभव तक नहीं था। मगर, मेहनत एवं दूरदर्शिता का ही परिणाम रहा कि वह सामान्य सा कार्यकर्ता आज देश का प्रधानमंत्री ही नहीं, बल्कि विश्व का सबसे लोकप्रिय नेता बन गया है।

वैसे तो भाजपा नेतृत्व के लिए तीनों राज्यों में करीब दो दशकों से काबिज क्षत्रपों को नजरंदाज करना बिल्कुल भी आसान नहीं था। मध्य प्रदेश में सरकार बरकरार रखने के बावजूद शिवराज सिंह चौहान को हटाया और मोहन यादव जैसे नये चेहरे को सीएम बनाया। राजस्थान में पार्टी का सबसे बड़ा चेहरा एवं पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के तेवर भी जगजाहिर थे, उनके सांसद बेटे पर तो कई विधायकों की बाड़ेबंदी के आरोप भी लगे थे। यहां भजनलाल शर्मा के रूप में नये चेहरे को सीएम बनाकर वसुंधरा राजे को बड़ा झटका दिया। छत्तीसगढ़ में भी कद्दावर नेता एवं पूर्व सीएम रमन सिंह को नजरंदाज कर आदिवासी नेता विष्णुदेव साय को सीएम बनाया। तीनों राज्यों में बड़े क्षत्रपों को हटाकर पार्टी ने स्पष्ट संदेश दिया कि अब पार्टी राज्यों में नया नेतृत्व के साथ आगे बढ़ेगी। इस फैसले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विशेष भूमिका रही है।

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बहुत जल्द अमेरिका की राष्ट्रीय खुफिया एजेंसियों की कमान नवनियुक्त निदेशक तुलसी गबाई के हाथ में होगी। अमेरिका की पहली हिंदू सांसद तुलसी का आरएसएस और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से पुराना रिश्ता रहा है। संघ परिवार से जुड़े भारतीय मूल के अमेरिकी हिंदू नागरिक उनके लिए हर चुनाव में लाखों डालर का चंदा जुटाते हैं। आरएसएस के इसी दुलार के कारण अमेरिका में तुलसी 'प्रिंसेज ऑफ द आरएसएस' के नाम से चर्चित हैं। पहले तुलसी का डेमोक्रेटिक पार्टी छोड़ना फिर अचानक डोनाल्ड ट्रम्प को समर्थन देना और फिर रिपब्लिकन पार्टी का दामन थामकर इस मुकाम तक पहुंचना हॉलीबुड के किसी हाई प्रोफाइल पॉलिटिकल ड्रामे से कम नहीं। भारतीय मामलों में अमेरिकी खुफिया एजेंसियों की बेवजह 'अति सक्रिय' होने के बाद अचानक खुफिया एजेंसियों की कमान तुलसी गबार्ड को दिए जाने को भारत के कूटनीतिक दांव के रूप में देखा जा रहा है।

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