मौजूदा वित्त वर्ष की अप्रैल-जून तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था की ग्रोथ या वृद्धि के आंकड़ों से हैरानी की कोई उम्मीद नहीं थी. पिछले वित्त वर्ष की इसी अवधि में कोविड- 19 महामारी की दूसरी लहर के कारण आर्थिक गतिविधियों में भारी ठहराव देखा गया था, इसके मद्देनजर 2022-23 की पहली तिमाही में वृद्धि दर के 15 फीसद या ज्यादा रहने की उम्मीद थी; भारतीय रिजर्व बैंक ने 16.2 फीसद वृद्धि का अनुमान जाहिर किया था. लिहाजा जब इसके 13.5 फीसद पर रहने के आंकड़े आए और अर्थशास्त्री ऊंचे स्तर पर आयात, लगातार कायम महंगाई, सुस्त ग्रामीण मांग और कम सरकारी खर्च को लेकर फिक्र जाहिर करते रहे, तो यह देश की सालाना वृद्धि के लिए अच्छा संकेत नहीं था. इसके तो बहुप्रचारित 7 फीसद से भी नीचे रह जाने का अंदेशा है. पूर्व वित्त सचिव सुभाष चंद्र गर्ग कहते हैं, 'भारत सरीखे देश के लिए यह बहुत कम वृद्धि दर है. " अर्थशास्त्री कहते हैं कि यह रोजगार पैदा करने के लिहाज से पर्याप्त नहीं है. भारत को 8-10 फीसद की दर से बढ़ने की जरूरत है.
इससे भी ज्यादा परेशान करने वाली बात यह है कि हासिल की गई बहाली भी एकसमान नहीं - अर्थव्यवस्था के कुछ हलकों ने तो अच्छा प्रदर्शन किया लेकिन दूसरे क्षेत्र खासे पिछड़ गए. मसलन, प्रीमियम श्रेणी के वाहनों की तरह काम्पैक्ट एसयूवी श्रेणी की 10 लाख रुपए से अधिक कीमत वाली कारों की बिक्री में जोरदार तेजी आई, लेकिन निम्न आय समूहों के बीच मांग का पैमाना समझे जाने वाले दोपहिया वाहनों की बिक्री सुस्त रही. आमदनी घटने से ज्यादातर उपभोक्ता सस्ते टिकाऊ उपभोक्ता सामानों और एफएमसीजी उत्पादों के छोटे पैकेज को तरजीह दे रहे हैं. एमएसएमई या सूक्ष्म, लघु और मध्यम क्षेत्र के उद्योग अब भी कम मांग और पूंजी के संकट से जूझ रहे हैं, जिससे फर्म अपनी आधी क्षमता से काम करने को मजबूर हैं. उधर निजी निवेश भी अभी महामारी से पहले के स्तर पर नहीं लौटा.
This story is from the September 28, 2022 edition of India Today Hindi.
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