सुलगती शमा
अमिताभ उस दीवार (1975) फिल्म में विजय के किरदार में जिसने ऐंग्री यंग मैन की उनकी इमेज ढाली
उनकी धीमी लेकिन लंबे-लंबे डग भरती चाल को बयान कर पाने के लिए कोई सटीक शब्द खोज पाना बड़ा मुश्किल है. न अकड़, न स्वैगर... गुरूर से अकड़ी हुई तो बिल्कुल नहीं मानो जिगर में सुलगते अंगारों की कोई आंच उसे आगे बढ़ाए ले जा रही हो. इस चाल ने भारतीय सिनेमा में आधी सदी से भी ज्यादा का सफर नाप डाला है. और 80 की उम्र में पहुंचकर वे अब भी उसी चाल से चलते आ रहे हैं. मुमकिन है कि अदाकार अमिताभ बच्चन इनसान अमिताभ बच्चन से अलहदा हो लेकिन बिना रुके लगातार आगे बढ़ते जाने की जिद दोनों में उतनी ही मौजूद है. हम उस जीवनगाथा का सफर सीन-दर-सीन बता रहे हैं. भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उनके जन्म से लेकर, उनकी शुरुआती जिंदगी, कुछ छोटी-मोटी नौकरियां और संघर्ष के वे दिन जब लेखक-निर्देशक उनके ऊपर दांव लगाने का जोखिम नहीं ले पा रहे थे. और फिर सत्तर का वह दौर जब एक सुलगती बीड़ी से हिंदी सिनेमा को जैसे उन्होंने डायनामाइट की तरह रौशन कर दिया. सियासत और बिजनेस के हलके में की गईं उनकी गुस्ताखियां. 2000 में उनका पुनर्जन्म और इस बदल चुकी दुनिया में बीतते 2022 में अब तक देखने पर हम पाते हैं कि अमिताभ बच्चन अब भी हमारे साथ चलते चले आ रहे हैं.
पढ़ने-बढ़ने के वे दिन
11 अक्तूबर 1942: भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी के हाथों शुरू आंदोलनकारी गतिविधियों से प्रेरित होकर कवि-लेखक हरिवंश राय बच्चन (1907-2003) और पत्नी तेजी ने अपनी पहली संतान का नाम शुरू में 'इंकलाब' रखा, पर फिर 'अमिताभ' (या चिरस्थायी रोशनी) चुना. एक भविष्यदर्शी नाम.
पहचाना!
अमिताभ बचपन में अपने पिता हरिवंश राय बच्चन की गोद में
चलो नैनीताल
पढ़ाई के लिए शेरवुड प्रस्थान करने से पहले अमिताभ अपनी मां तेजी बच्चन के साथ
अरे रे रे...
This story is from the October 19, 2022 edition of India Today Hindi.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber ? Sign In
This story is from the October 19, 2022 edition of India Today Hindi.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber? Sign In
सबसे अहम शांति
देवदत्त पटनायक अपनी नई किताब अहिंसाः 100 रिफ्लेक्शन्स ऑन द सिविलाइजेशन में हड़प्पा सभ्यता का वैकल्पिक नजरिया पेश कर रहे हैं
एक गुलदस्ता 2025 का
अ ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ ह्यूमनकाइंड जैसी चर्चित किताब के लेखक युवाल नोआ हरारी की यह नई किताब बताती है कि सूचना प्रौद्योगिकी ने हमारी दुनिया को कैसे बनाया और कैसे बिगाड़ा है.
मौन सुधारक
आर्थिक उदारीकरण के देश में सूत्रधार, 2004 से 2014 तक प्रधानमंत्री रहे मनमोहन सिंह का 26 दिसंबर को 92 वर्ष की आयु में निधन हो गया.
हिंदुस्तानी किस्सागोई का यह सुनहरा दौर
भारतीय मनोरंजन उद्योग जैसे-जैसे विकसित हो रहा है उसमें अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी आने, वैश्विक स्तर पर साझेदारियां बनने और एकदम स्थानीय स्तर के कंटेंट के कारण नए अवसर पैदा हो रहे. साथ ही दुनियाभर के दर्शकों को विविधतापूर्ण कहानियां मिल रहीं
स्वस्थ और सेहतमंद मुल्क के लिए एक रोडमैप
स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में हमारी चुनौतियों का पैमाना विशाल है. 'स्वस्थ और विकसित भारत' के लिए मुल्क को टेक्नोलॉजी के रचनात्मक उपयोग, प्रिडिक्टिव प्रिसीजन मेडिसिन, बिग डेटा और पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप पर कहीं ज्यादा ध्यान केंद्रित करना होगा
ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था की ओर
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2025 में भारत की शिक्षा प्रणाली में बदलाव लाने, नवाचार, उद्यमिता और सामाजिक प्रगति को बढ़ावा देने के लिए उत्प्रेरक का काम कर रही
ईवी में ऊंची छलांग के लिए भारत क्या करे
स्थानीयकरण से नवाचार तक... चार्जिंग की दुश्वारियां दूर करना, बैटरी तकनीक बेहतर करना और बिक्री के बाद की सेवाएं बेहतर करना ही इलेक्ट्रिक वाहन क्रांति को मजबूत करने का मूल मंत्र है
अब ग्रीन भारत अभियान की बारी
देशों को वैश्विक सफलता का इंतजार करने के बजाए जलवायु को बर्दाश्त बनने के लिए खुद पर भरोसा करना चाहिए
टकराव की नई राहें
हिंदू-मुस्लिम दोफाड़ अब भी जबरदस्त राजनैतिक संदर्भ बिंदु है. अपने दम पर बहुमत पाने में भाजपा की नाकामी से भी सांप्रदायिक लफ्फाजी शांत नहीं हुई, मगर हिंदुत्व के कट्टरपंथी तत्वों के खिलाफ आरएसएस की प्रतिक्रिया अच्छा संकेत
महिलाओं को मुहैया कराएं काम के लिए उचित माहौल
यह पहल अगर इस साल शुरु कर दें तो हम देख पाएंगे कि एक महिला किस तरह से देश की आर्थिक किस्मत बदल सकती है