जामताड़ा
पहली नजर में जामताड़ा में भी उत्तर भारत के दूसरे कस्बों जैसा ही पिछड़ापन और अराजकता पसरी दिखाई देती है. पश्चिम बंगाल की सीमा पर बसे झारखंड के इस कस्बे में इसी अराजकता और पिछड़ेपन के बीच कहीं-कहीं संपन्नता की चमक कौंध जाती है. कुछ मेगामार्ट और चमकदार शोरूम्स या फिर गरीब मोहल्लों के बीच सफेद रंग की आलीशान कोठियां. ये अपराध की उस अंधेरी दुनिया से निकली चमक है जिसकी वजह से जामताड़ा बदनाम हो चुका है.
खासतौर पर जामताड़ा नामक नेटफ्लिक्स की सीरीज आने के बाद इस कस्बे और साइबर फ्रॉड को एक दूसरे का पर्याय माना जाने लगा है. रांची के रहने वाले 21 साल के बंटी से बेहतर इसे कौन जानेगा? वह अपने पिता के पास बैठा था और उसका फोन स्विच ऑफ था. फिर भी उसके पिता के फोन पर उसकी ओर से एक व्हाट्सऐप मैसेज गया, "पापा, मेरा एक्सीडेंट हो गया है. अस्पताल जा रहा हूं. 20 हजार रुपए पेटीएम के जरिए नंबर 9834...पर भेज दीजिए."
बंटी की इस कहानी को जामताड़ा के साइबर सेल के अफसर सुनाते हैं. बंटी को किसी अनजान नंबर से फोन आया और फोन करने वाले ने बताया कि मोबाइल नेटवर्क में आ रही दिक्कत एक नंबर पर मिस्ड कॉल करने से ठीक हो सकती है. मिस्ड कॉल करने के बाद आधे घंटे तक फोन को बंद करने को कहा गया. बंटी ने ठीक वैसा ही किया. करीब 15 मिनट बाद बंटी के बगल में बैठे उसके पिता भोला मंडल के पास एक व्हाट्सऐप मैसेज आया जिसे पढ़कर भोला हक्का-बक्का रह गए. बेटा पास बैठा था और उसके मोबाइल फोन से उसके ही एक्सीडेंट की खबर आई थी. बेटा बगल में बैठा था इसलिए पिता ने राहत की सांस ली. बंटी ने तुरंत अपना फोन ऑन किया, पर उसका व्हाट्सऐप काम नहीं कर रहा था. बंटी का व्हाट्सऐप हैक हो चुका था. सैकड़ों रिश्तेदारों को एक्सीडेंट वाला मैसेज जा चुका था. बंटी ने तुरंत सभी को फोन कर सतर्क किया और थाने में रिपोर्ट दर्ज करवाई.
बंटी तो बच गया मगर उसके जैसे सैकड़ों लोग साइबर फ्रॉड के इस जाल में फंस चुके हैं. और, जामताड़ा इसका प्रमुख अड्डा बन चुका है. जामताड़ा के साइबर थाने में रोजाना ऐसे नए-नए मामले दर्ज होते हैं. बात जामताड़ा या झारखंड तक ही सीमित नहीं हैं. देश के अलग-अलग इलाकों के लोग मोबाइल फोन के जरिए ठगी करने वालों की नई-नई तरकीबों के शिकार हो रहे हैं.
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