नूतन
उसकी साड़ी के घूंघट से नमूदार वह नाजुक चेहरा, मुड़कर जाते प्रेमी के साथ-साथ मुड़ पड़ता - सुजाता (1959) में जाति व्यवस्था की क्रूरताओं के बीच अपने आप को तलाशती औरत को रुपहले पर्दे पर जीवंत करते हुए नूतन अमर हो गईं. इस भूमिका ने उन्हें अभिनेत्री के तौर पर स्थापित किया. उनमें हमने एक औरत के भीतर का कोलाहल, स्वीकार्यता चाहती एक लड़की की बेबसी देखी. इसी बेबसी को हमने सीमा (1955) और बंदिनी (1963) में भी देखा. पर तेरे घर के सामने (1863) में देवानंद के साथ कुतुबमीनार की सीढ़ियों पर गुनगुनाते हुए उछलती हुई लड़की में हमने उनका चुलबुलापन भी महसूस किया. नाजुकी और मजबूती का यही मेल चार लंबे दशक तक उनके तमाम अलग-अलग किरदारों में नजर आता रहा. जीवन के मटमैले रास्तों के बावजूद बार-बार लौट आने वाली उनकी वह भूली न जा सकने वाली दिलफरेब मुस्कान आज भी याद की जाती है.
वहीदा रहमान
वहीदा रहमान के नृत्य में कुछ अलग ही बात थी. यह बात खुद एक बेहतरीन डांसर गुरुदत्त ने भांप ली और उन्होंने वहीदा को भरोसा दिलाया कि वे अभिनय कर सकती थीं. प्यासा (1957) में उन्होंने वहीदा को एक युवा वेश्या की भूमिका दी, जिसे एक कवि से प्रेम था. गुलाबो की भूमिका में वहीदा विजय की पूर्व प्रेमिका से उसके काम को छापने की गुजारिश करती हैं. इस सवाल पर कि विजय से उनका क्या रिश्ता है, आधे चेहरे पर पड़ती रौशनी में छलके उनके आंसू उस दृश्य को उनके अभिनय से अमर कर देते हैं. कागज के फूल (1959) में बॉलीवुड की अपनी यात्रा को किरदार में ढालना हो, गाइड (1965) में बंधन तोड़ती स्त्री को जीना हो या नमकीन (1982) में तेज जुबान बुढ़िया को, हर भूमिका में वे लाजवाब रहीं. हाल ही में 84 की उम्र में स्केटर गर्ल (नेटफ्लिक्स, 2021) में गरिमापूर्ण मौजूदगी तक उनकी अदाकारी बेमिसाल है.
स्मिता पाटील
This story is from the January 04, 2023 edition of India Today Hindi.
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