पार्टी को उम्मीद है कि मुंबई के बौद्ध दलितों, मुसलमानों और हिंदीभाषियों के साथ मेलजोल की यह कोशिश देर-सबेर 'अल्पसंख्यकों के बहुसंख्यक' वोट हासिल करने में मदद करेगी. खासकर ऐसे वक्त जब पार्टी भारत के सबसे अमीर नगर निकाय बृहन्मुंबई महानगर पालिका (बीएमसी) पर कब्जा कायम रखने के लिए जूझ रही है. और, यह पार्टी की बेदम कर देने वाली टूट के बाद खुद को मौजूं बनाए रखने के लिए बेहद जरूरी है. पार्टी की विधायी तथा संसदीय शाखाओं में दोफाड़ टूट को अंजाम देने वाले मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और भाजपा बीएमसी को सेना से छीनने के लिए कमर कस रहे हैं. चुनाव आयोग ने शिंदे धड़े को आधिकारिक शिवसेना की मान्यता देकर पार्टी का नाम और चुनाव चिन्ह तीरधनुष उसे सौंप दिया है.
साल 2003 में शिवसेना के तब नवनियुक्त कार्यकारी अध्यक्ष उद्धव ने दो बड़ी मुहिम छेड़ी थीं. एक थी 'शिवशक्तिभीमशक्ति' पहल, जिसका मकसद बौद्ध दलितों में पैठ बनाना था जिनसे कभी सेना का उत्साह भरा रिश्ता था. दूसरी थी 'मी मुंबईकर', जिसके जरिए वे अन्य भाषाई समुदायों और खासकर मुंबई में बढ़ते हिंदी भाषियों के बीच जड़ें जमाना चाहते थे. दोनों के पीछे उनकी नजर अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों पर थी.
‘शिवशक्ति- भीमशक्ति' को सीमित सफलता मिली, तो 'मी मुंबईकर' मुहिम उस वक्त मुश्किल में पड़ गई जब उद्धव के रंजिशजदा चचेरे भाई राज ठाकरे की अगुआई में सेना की छात्र शाखा भारतीय विद्यार्थी सेना ने रेलवे की नौकरियों के लिए आए उत्तर भारतीयों पर मुंबई के नजदीक हमला बोल दिया. इसकी 2004 के विधानसभा चुनाव में उत्तर भारतीय मतदाताओं के बीच जबरदस्त प्रतिक्रिया हुई और शिवसेना-भाजपा गठबंधन की हार में इसका भी योगदान रहा. अब उद्धव ने डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के पौत्र और वंचित बहुजन अघाड़ी (वीबीए) के अध्यक्ष प्रकाश आंबेडकर के साथ हाथ मिलाया है. वीबीए का बौद्ध और हिंदू दलितों, छोटे-छोटे ओबीसी (अन्य पिछड़े वर्गों) और मुसलमानों के बीच आधार है.
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