"मनुष्य स्वर्ग में तभी सुखी रह सकता है, जब संसार में उसकी स्मृति हरी-भरी हो. (इसलिए) पहाड़ों पर स्मारक बनाया जाना चाहिए, जो तब तक कायम रहे जब तक सूरज-चांद रहे." - भिक्षु बुद्धभद्र, अजंता की गुफा 26 में शिलालेख, लगभग ईस्वी सन् 478.
एक मायने में अजंता के मूल में मनुष्य की नश्वरता के खिलाफ लड़ाई ही अंकित है. 5वीं शताब्दी के बौद्ध भिक्षु के शब्दों में नष्टप्राय अतीत का डर और एक ही समय में बिना किसी विडंबना के दो दुनियाओं में शाश्वत बने रहने की आकांक्षा प्रवाहित है. महाराष्ट्र के औरंगाबाद के पास उत्तरी दक्कन के इस छोटे-से जंगली नुक्कड़ पर तकरीबन 1,500 वर्ष बाद भी वही डर अदृश्य काले बादल की तरह मंडराने लगा है. संभव है, ऐसी जगह दुनिया में और कहीं न हो. यहां वाघोरा नदी की धारा घोड़े की नाल जैसी आकृति बनाती है, जिसके चारों ओर ज्वालामुखी के लावे से बनी चट्टानों में 30 गुफाएं हैं, जो अपनी रहस्यमय श्रेणीबद्ध जटिलता और सौंदर्य से चमत्कृत कर देती हैं. मानो कोई सौंदर्यशास्त्र का ब्रह्मांड है, जो अभी भी अपने स्तूपों की डिजाइन, विकसित होती फर्श योजनाओं, महीन नक्काशी और चट्टान से मुक्त होने को तत्पर दिखते भव्य मूर्तिशिल्प, उत्कृष्ट अग्रभाग और अधूरे कक्षों के बीच बिखरे रहस्यों का खुलासा कर रहा है. इसके सुराग इसकी मंद रोशनी में छिपे हुए हैं, जो भारतीय इतिहास के बारे में हमारे विचारों को काफी बदल सकते हैं, यानी शक्ति, धर्म और कला की गतिशीलता का रहस्य, जो इसके प्राचीन युग के परदे में कैद है.
This story is from the April 19, 2023 edition of India Today Hindi.
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