अयोध्या. नाम भर से विचारों का वह क्षितिज जगमगा उठता है जहां आकाश धरती से मिलता है-समृद्ध, झिलमिल, मिली-जुली भावनाओं से भरा क्षेत्र विशेष. यह इस धरती पर है, या इससे परे? भारत की तर्कातीत कल्पना में यह धरती पर भी है और उससे परे भी. जब उसे स्वर्गिक शहर के उच्चतम आदर्श का दर्जा दिया गया, तब भी उसकी अलौकिक रोशनी इस्पात की चौंध से खाली नहीं थी. संस्कृत में आम पैटर्न के हिसाब से उसके नाम में नकारात्मक 'अ' उपसर्ग का अर्थ है 'वह जगह जिसे युद्ध में नहीं जीता जा सकता', यानी वह जगह जो योद्धा की तलवार की पहुंच से परे है. यही वह भाव है जिसमें इसका पहला उल्लेख करीब 1200 वर्ष ईसा पूर्व के आसपास अथर्ववेद में मिलता है. यहां अयोध्या मानव देह है. यही रूपक कुछ सदियों बाद ईसा पूर्व 600 वर्ष में तैत्तिरीय आरण्यक में फिर मिलता है-आठ चक्रों और नौ द्वारों वाली यह देह देवानाम पुरायोध्या यानी देवताओं का अभेद्य किला हो जाती है. अब तक भी यह नाम नहीं, विशेषण ज्यादा है. इस पड़ाव तक भी सरयू पर स्थित इस शहर, राम दशरथ के वासस्थान को रहस्यों की धुंध से अभी उबरना है. मगर अयोध्या पहले ही पारलौकिक और बहुत बहुत सांसारिक के बीच के कगार पर अपने द्वैत में जी रही है.
अब जनवरी 2024 में आइए. उत्तर प्रदेश में आज का नगर अयोध्या, जो पूर्व महाजनपद कौसल का उत्तराधिकारी है, सहस्राब्दी के कैलेंडर पर अपनी छाप छोड़ रहा है. कायापलट के इस जाल का केंद्रबिंदु 70 एकड़ में फैला एक मंदिर परिसर है. सरयू किनारे मिट्टी से उठकर एक सजा-धजा तिमंजिला प्रासाद या महल आसमान छू रहा है, जो उत्तर भारत के मैदानों में मंदिर निर्माण के लिए गढ़ी गई भव्य नागर शैली में बनाया गया है. पूर्व से पश्चिम 380 फुट और उत्तर से दक्षिण 250 फुट में फैला और शिखर तक 161 फुट ऊंचा मुख्य मंदिर और उसके 12 पूरक मंदिरों में कुल मिलाकर वे सभी खूबियां हैं जो हर किस्म के तीर्थयात्रियों के लिए यहां आना एकाधिक तरीकों से सुखदायक बनाती हैं. इसके चारों तरफ पूरी उदारता और दानशीलता से अयोध्या पर हर वह उपहार न्योछावर किया जा रहा है जो कृपालु माता-पिता अपने दुलारे बच्चे पर अर्पित कर सकते हैं. नतीजा क्या है? भौतिक कायापलट जो महाकाव्य से कम नहीं है.
This story is from the February 07, 2024 edition of India Today Hindi.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber ? Sign In
This story is from the February 07, 2024 edition of India Today Hindi.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber? Sign In
लीक से हटकर
मध्य प्रदेश में जंगली सैर से लेकर लद्दाख में पश्मीना के इतिहास को जानने तक, हमने कुछ खास यात्रा अनुभवों की सूची तैयार की है जो आपको एक अनदेखे भारत के करीब ले जाएंगे
खूबसूरत काया का जलवा
भारत की खूबसूरत बालाएं और वैश्विक सौंदर्य प्रतियोगिताएं, लगता है नब्बे के दशक से एक-दूसरे के लिए ही बनी हैं. और यह सिर्फ किस्मत की बात नहीं. खिताब जीतने वाली कई सुंदरियों ने बाद में इसके सहारे अपने करियर को बुलंदियों पर पहुंचाया
खरीदारी का मॉडर्न ठिकाना
शॉपिंग मॉल भारत में '90 के दशक की ऐसी अनूठी घटना है जिसने भारतीय मध्य वर्ग की खरीद के तौर-तरीकों को बदल दिया. 'खरीदारी के साथ-साथ मनोरंजन' केंद्र होने की वजह से वे अब कामयाब हैं. वहां हर किसी के लिए कुछ न कुछ है
छलकने लगे मस्ती भरे दिन
यूबी की किंगफिशर ने 1990 के दशक में बीयर को कूल बना दिया. तब से घरेलू अल्कोहल उद्योग के जोशीले दिन कभी थमे नहीं
डिस्को का देसी अंदाज
घर हो या कोई भी नुक्कड़-चौराहा, हर तरफ फिल्मी गानों की बादशाहत कायम थी. उसके अलावा जैसे कुछ सुनाई ही नहीं पड़ता था. तभी भारतीय ब्रिटिश गायकसंगीतकार बिट्टू ने हमें नाजिया से रू-ब-रू कराया, जिनकी आवाज ने भारतीयों को दीवाना बना दिया. सच में लोग डिस्को के दीवाने हो गए. इसके साथ एक पूरी शैली ने जन्म लिया
जिस लीग ने बनाई नई लीक
लगातार पड़ते छक्के, स्टैंड में बॉलीवुड सितारों और नामी कॉर्पोरेट हस्तियों और सत्ता- रसूखदारों की चकाचौंध, खूबसूरत बालाओं के दुमके - आइपीएल ने भद्रलोक के इस खेल को रेव पार्टी सरीखा बना डाला, जहां हर किसी की चांदी ही चांदी है
आनंद की विरासत
विश्वनाथन आनंद अचानक ही सामने आए और दुनिया फतह कर ली. गुकेश के साथ 2024 में भारत को मिली उपलब्धि उसी विरासत का हिस्सा है
जब स्वच्छता बन गया एक आंदोलन
सामूहिक शर्म से लेकर राष्ट्रीय गौरव तक, खुले में शौच का चलन खत्म करने के देश के सफर में मजबूत सियासी इच्छाशक्ति और नेतृत्व के साथ-साथ समुदाय, कॉर्पोरेट और सेलेब्रिटी के मिलकर काम करने की दास्तान शामिल
जब मौन बन गया उद्घोष
एक पनबिजली परियोजना के विरोध में पर्यावरणविदों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, कवियों और पत्रकारों ने मिलकर जन जागरुकता अभियान चलाया और भारत के अब बचीखुची उष्णकटिबंधीय वर्षावनों में से एक, केरल की साइलेंट वैली को बचाने में कामयाब रहे।
बताने को मजबूर हुए बाबू
जमीनी स्तर पर संघर्ष से जन्मे इस ऐतिहासिक कानून ने भारत में लाखों लोगों के हाथों में सूचना का हथियार थमाकर गवर्नेस को न सिर्फ बदल दिया, बल्कि अधिकारों की जवाबदेही भी तय करने में बड़ी भूमिका निभाई