फरवरी की 22 तारीख को पंजाब की प्रदर्शनकारी किसान यूनियनों ने अपने 'दिल्ली चलो' कूच के दौरान जब एक बार फिर खनौरी में हरियाणा की सीमा लांघने की कोशिश की, झड़पों में एक युवा किसान की मौत हो गई. यूनियनों ने 22 वर्षीय शुभ करण सिंह की मौत के गम में अपना विरोध प्रदर्शन दो दिनों के लिए टाल जरूर दिया, लेकिन यह साफ था कि उनका रुख और सख्त हो गया है. उनकी मनोदशा में 18 फरवरी की शाम से नाटकीय बदलाव देखा गया जब किसान यूनियनों के नेता पांच फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर केंद्र के प्रस्ताव को लेकर उत्साहित दिखाई दिए.
यह प्रस्ताव केंद्रीय मंत्रियों पीयूष गोयल, अर्जुन मुंडा और नित्यानंद राय के साथ चार दौर की बातचीत के बाद आया, जिसमें पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने मध्यस्थ की भूमिका अदा की. मक्का और कपास के साथ मसूर, उड़द और अरहर की फसलें एमएसपी पर खरीदने की पेशकश किसानों और राज्य के लिए गेमचेंजर की तरह लग रही थी. आंदोलनकारी किसान नेता - भारतीय किसान यूनियन एकता सिंधूपुर (बीकेयू एकता सिंधूपुर) के जगजीत सिंह डल्लेवाल, और किसान मजदूर संघर्ष कमेटी (केएमएससी) के सरवन सिंह पंढेर - भी ऐसे सवालों का उत्साह से जवाब दे रहे थे कि किस तरह यह पंजाब को गेंहू और धान के चक्र से उबार सकता है.
यह उत्साह ज्यादा देर टिका नहीं, क्योंकि यूनियनें जल्द पीछे हट गईं. पंढेर ने दावा किया कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि केंद्र ने इस प्रस्ताव के साथ 'पांच साल, अनुबंध के आधार पर' की शर्त लगा दी, जो यूनियनों को मंजूर करने लायक नहीं लगी. पंजाब के विशेषज्ञों का कहना है कि इस समझौते को वैसे भी भविष्य में टूटना ही था क्योंकि फसलों में विविधता लाने के लिए उपज का निश्चित एमएसपी देने से कहीं ज्यादा कोशिश की दरकार थी. पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) के एक प्रोफेसर कहते हैं, "उगाने के लिहाज से गेहूं और धान, मसलन, कपास के मुकाबले, कहीं ज्यादा आसान फसलें हैं. बुआई और कटाई के अलावा इनमें किसान के बहुत ज्यादा खटने की जरूरत नहीं होती."
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