कुछ ही देर में विधानसभा परिसर में पार्टी के कार्यालय से मनोज पांडे को सपा के 'मुख्य सचेतक' के रूप में बताने वाली नेम प्लेट हटा दी गई. फिर सपा विधायक राकेश प्रताप सिंह और अभय सिंह ने घोषणा की कि वे मतदान में अपनी 'अंतरात्मा की आवाज' के साथ जाएंगे. चार अन्य सपा विधायकों ने अपने साथी 'बागियों' की तरह भाजपा उम्मीदवारों, उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष चौधरी भूपेंद्र सिंह के साथ विधानसभा परिसर में पहुंचकर अपनी मतदान प्राथमिकता का संकेत दिया.
उत्तर प्रदेश की 10 राज्यसभा सीटों के लिए 27 फरवरी को हुआ चुनाव आगामी लोकसभा चुनाव से पहले सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और विपक्षी इंडिया गठबंधन ताजा सहयोगी बने समाजवादी पार्टी (सपा) और कांग्रेस की चुनावी रणनीतिक कुशलता का भी इम्तिहान था. भाजपा को यूपी विधानसभा में अपनी संख्या के अनुसार सात सीटें जीतने की उम्मीद थी, जबकि सपा को 3 सीटें मिलनी चाहिए थीं. भाजपा ने आश्चर्यजनक रूप से आठवां उम्मीदवार खड़ा किया, जिससे मुकाबला मजबूरन हुआ. 7 फरवरी की देर शाम जब नतीजे आए तो पता चला कि भाजपा के सभी आठ उम्मीदवार जीत गए, सपा के केवल दो उम्मीदवार ही जीत पाए. सेवानिवृत्त नौकरशाह और यूपी के पूर्व मुख्य सचिव आलोक रंजन अपने जीवन का पहला चुनाव हार गए.
विधायकों की इस पालाबदली से परेशान सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने भाजपा पर विधायकों को 'प्रलोभन' देने और जीतने के लिए किसी भी हद तक न रुकने का आरोप लगाया. अखिलेश ने इन बागी विधायकों पर कार्रवाई की बात भी कही. राजनैतिक विश्लेषक मानते हैं कि जिस तरह इन विधायकों ने पाला बदलने के बाद 'श्रीराम' का जिक्र किया, उससे इन्होंने सपा को हिंदू विरोधी साबित करने की कोशिश भी की है. यह अखिलेश यादव की पीडीए की रणनीति का काउंटर भी है. बाद में मनोज पांडेय और अभय सिंह ने अयोध्या में रामलला के दर्शन कर यह साबित करने की कोशिश की कि वे सपा की राम मंदिर से दूरी बनाने की रणनीति से खुद को असहज महसूस कर रहे थे.
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