निगलें कि उगलें
India Today Hindi|October 23, 2024
पतझड़ की शुरुआत पंजाब में हो चुकी है और भाजपा चिरपरिचित परेशानी का सामना कर रही है. वह आंतरिक कलह में उलझी हुई है जबकि एक अन्य अहम चुनाव होने जा रहा है. 15 अक्तूबर को पंचायत चुनाव होने हैं, उसके बाद चार विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होंगे, इसलिए पार्टी का ध्यान अपने ग्रामीण आधार को मजबूत करने पर होना चाहिए. मगर नेतृत्व संकट के कारण उसके प्रयास बेपटरी हुए जा रहे हैं.
अनिलेश एस. महाजन
निगलें कि उगलें

हाल में राज्य के तीन दिवसीय दौरे पर आए पंजाब में भाजपा मामलों के प्रभारी विजय रूपाणी ने अहम बैठकों से स्थानीय इकाई के प्रमुख सुनील जाखड़ के साफ तौर पर गैरहाजिर रहने का बचाव करने की पुरजोर कोशिश की. गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री ने उस वक्त खुद को असुविधाजनक स्थिति में पाया जब उन्होंने सवालिया नजर से उनकी ओर ताक रहे पत्रकारों को बताया कि जाखड़ 'व्यक्तिगत 'कार्य' से दिल्ली गए हुए हैं. लेकिन इतनी आसान मालूम पड़ने वाली इस बात के पीछे असंतोष और रणनीतिक रूप से गलत कदमों का जाल बिछा हुआ है.

कांग्रेस से 2022 में भाजपा में आए जाखड़ को एक साल के भीतर ही भाजपा की पंजाब इकाई का मुखिया बना दिया गया. पार्टी में नए आने वालों को लेकर अपने सतर्क रवैए के लिए जानी जाने वाली भाजपा के लिए यह दुर्लभ कदम था. केंद्रीय नेतृत्व को बड़ी उम्मीद थी कि दिग्गज किसान नेता बलराम जाखड़ का यह बेटा ग्रामीण वोट बैंक, खासकर जट सिखों के बीच के वोट बैंक को साधने में अहम भूमिका निभाएगा. मगर यह दांव एकदम से उलटा पड़ चुका है. पार्टी के अंदरूनी सूत्र अब दुख के साथ स्वीकार करते हैं कि नई समझ की बजाए जाखड़ अपने साथ 'पक्षपात की कांग्रेसी संस्कृति' लेकर आए हैं.

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