हाराष्ट्र के जालना जिले का अंतरवाली सराठी गांव. एक लंबा, दुबला-पतला आदमी चेहरे पर बकर- दाढ़ी के साथ बंगले से निकलकर बाहर आता है. यह उसके करीबी सहयोगी और गांव के सरपंच पांडुरंग तारख का बंगला है. बाहर इंतजार कर रही भीड़ में खामोशी छा जाती है. लोग उसके पैर छूने और सेल्फी लेने के लिए बरामदे में टूट पड़ते हैं. महाराष्ट्र के इस विधानसभा चुनाव में मराठा पहचान के उठते उफान का श्रेय इसी शख्स मनोज जरांगे-पाटील को दिया जाता है. उसे अब इस समुदाय के सामूहिक अंत:करण की तरह देखा जा रहा है.
बयालीस वर्षीय जरांगे-पाटील हमेशा 'आंदोलनजीवी' रहे. उनके मुरीद प्यार से उन्हें यहीं कहते हैं. मगर सितंबर 2023 में हालात सरगर्म हो उठे. तब कम मशहूर यह कर्मठ कार्यकर्ता अंतरवाली सराठी में मराठों के लिए आरक्षण की मांग को लेकर आमरण अनशन पर बैठा था. उन्हें अस्पताल ले जाने से रोक रही भीड़ पर पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया. घटना ने तूल पकड़ लिया. देखते ही देखते सुप्त और शिथिल पड़े आरक्षण समर्थक आंदोलन में फिर उबाल आ गया. तमाम रंग-रूप के सियासतदां मुंबई से 400 किमी दूर अंतरवाली सराठी की ओर दौड़ पड़े. जरांगे-पाटील ने उनके सामने बस एक मांग रखी - राज्य की प्रमुख जाति मराठों (क्षत्रिय) को कुनबी (काश्तकार या बटाईदार) की श्रेणी में रखा जाए और ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) की श्रेणी के तहत आरक्षण दिया जाए. सरकार ने नौकरियों और शिक्षा में 10 फीसद अलग और सुरक्षित आरक्षण को मंजूरी दे दी. इसके बावजूद वे अपनी मांग पर अड़े हैं. (देखें इंटरव्यू: 'हम मराठों का दमन करने वालों को हराने के लिए वोट देंगे').
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