झारखंड मुक्ति मोर्चा की अगुआई वाला गठबंधन विधानसभा चुनाव में जोरदार जीत का जश्न मना रहा है. ऐसे में पिछले कुछ महीनों में इसके मुख्य वास्तुकार - झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के सफर का -जायजा लेना दिलचस्प होगा. सोरेन की दुनिया इस साल रांची के कांके रोड पर मुख्यमंत्री के बंगले से प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के दफ्तर के तहखाने के कमरे और अंततः बिरसा मुंडा केंद्रीय जेल तक नाटकीय ढंग से सिमट गई थी. एक कथित जमीन के मामले में 31 जनवरी को ईडी के हाथों गिरफ्तारी के बाद झारखंड के इस 49 वर्षीय नेता की राजनैतिक महत्वाकांक्षा लोकसभा चुनाव से महज दो महीने पहले अहम मोड़ पर बेड़ियों में जकड़ दी गई थी.
सोरेन को चुनाव प्रचार करने तक की मोहलत नहीं मिली. उनके राजनैतिक प्रतिद्वंद्वियों भाजपा की अगुआई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक मोर्चे (एनडीए) ने झारखंड में लोकसभा की 14 सीटों में से नौ बुहारकर संसदीय चुनाव में जीत के झंडे गाड़ दिए. अलबत्ता निराशा के बादलों के बीच उम्मीद की किरण भी थी. सोरेन झारखंड मुक्ति मोर्चा ( झामुमो) जिस इंडिया ब्लॉक का अहम हिस्सा है, उसने राज्य के आदिवासी अंचल में अपनी पकड़ बनाए रखी और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित पांचों सीटें जीतीं. सोरेन की पार्टी उनकी गिरफ्तारी को भाजपा की अगुआई वाले केंद्र की आदिवासी-विरोधी चाल के तौर पर पेश करने में कामयाब रही. मगर विधानसभा चुनाव के लिए अहम चुनौतियां कायम थीं. भाजपा की अगुआई वाले एनडीए ने झारखंड के 81 विधानसभा क्षेत्रों में से 50 में बढ़त जो हासिल की थी.
झारखंड हाइकोर्ट से जमानत मिलने के बाद 28 जून को जब हेमंत सोरेन बढ़ी हुई दाढ़ी और लंबे बालों के साथ जेल से बाहर आए, तो विधानसभा चुनाव कुछ ही महीने दूर थे. उनकी गैर मौजूदगी में पत्नी कल्पना सोरेन ने आत्मविश्वास से उनकी खाली जगह भरी और जून में गांडेय का विधानसभा उपचुनाव जीतकर राजनैतिक ताकत बनकर उभरीं. सोरेन ने जल्द ही भांप लिया कि उनके उत्तराधिकारी 68 वर्षीय चंपाई सोरेन में भाजपा को मात देने और पार्टी कार्यकर्ताओं में जोश जगाने का सयानापन नहीं है. सोरेन ने 4 जुलाई को मुख्यमंत्री का पद फिर संभाल लिया. मायूस चंपाई महीने भर बाद भाजपा के पाले में चले गए.
This story is from the 11th December, 2024 edition of India Today Hindi.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber ? Sign In
This story is from the 11th December, 2024 edition of India Today Hindi.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber? Sign In
मिले सुर मेरा तुम्हारा
राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता संगीतकार अमित त्रिवेदी अपने ताजा गैर फिल्मी और विधा विशेष से मुक्त एल्बम आजाद कोलैब के बारे में, जिसमें 22 कलाकार शामिल
इंसानों की सोहबत में आलसी और बीमार
पालतू जानवर अपने इंसानी मालिकों की तरह ही लाइफस्टाइल से जुड़ी बीमारियों का शिकार हो रहे हैं और उन्हें वही मेडिकल केयर मिल रही है. इसने पालतू जानवरों के लिए सुपर स्पेशलाइज्ड सर्जरी और इलाज के इर्द-गिर्द एक पूरी इंडस्ट्री को जन्म दिया
शहरी छाप स लौटी रंगत
गुजराती सिनेमा दर्शक और प्रशंसा बटोर रहा है क्योंकि इसके कथानक और दृश्य ग्रामीण परिवेश के बजाए अब शहरी जीवन के इर्द-गिर्द गूंथे जा रहे हैं. हालांकि सीमित संसाधन और बंटे हुए दर्शक अब भी चुनौती बने हुए हैं
चट ऑर्डर, पट डिलिवरी का दौर
भारत का खुदरा बाजार तेजी से बदल रहा है क्योंकि क्विक कॉमर्स ने तुरंत डिलिवरी के साथ पारंपरिक खरीदारी में उथल-पुथल मचा दी है. रिलायंस जियो, फ्लिपकार्ट और अमेजन जैसे कॉर्पोरेट दिग्गजों के इस क्षेत्र में उतरने से स्पर्धा तेज हो गई है जिससे अंत में ताकत ग्राहक के हाथ में ही दिख रही
'एटम बम खुद फैसले नहीं ले सकता था, एआइ ले सकता है”
इतिहास के प्रोफेसर और मशहूर पब्लिक इंटेलेक्चुअल युवाल नोआ हरारी एक बार फिर चर्चा में हैं. एआइ के रूप में मानव जाति के सामने आ खड़े हुए भीषण खतरे के प्रति आगाह करती उनकी ताजा किताब नेक्सस ने दुनिया भर के बुद्धिजीवियों का ध्यान खींचा है.
सरकार ने रफ्ता-रफ्ता पकड़ी रफ्तार
मुख्यमंत्री सिद्धरामैया उपचुनाव में कांग्रेस के शानदार प्रदर्शन की बदौलत राजनैतिक चुनौतियों से निबटने लोगों का विश्वास बहाल करने और विकास तथा कल्याण की महत्वाकांक्षी योजनाओं पर दे रहे जोर
हम दो हमारे तीन!
जनसंख्या में गिरावट की आशंकाओं ने परिवार नियोजन पर बहस को सिर के बल खड़ा कर दिया है, क्या परिवार बड़ा बनाने के पैरोकारों के पास इसकी वाजिब वजहें और दलीलें हैं ?
उमरता कट्टरपंथ
बांग्लादेश में हिंदुओं का उत्पीड़न जारी है, दूसरी ओर इस्लामी कट्टरपंथ तेजी से उभार पर है. परा घटनाक्रम भारत के लिए चिंता का सबब
'इससे अच्छा तो झाइदारिन ही थे हम'
गया शहर के माड़रपुर में गांधी चौक के पास एक बैटरी रिक्शे पर बैठी चिंता देवी मिलती हैं. वे बताती हैं कि वे कचहरी जा रही हैं. उनके पास अपनी कोई सवारी नहीं है, सरकार की तरफ से भी कोई वाहन नहीं मिला है.
डीएपी की किल्लत का जिम्मेदार कौन?
3त्तर प्रदेश में आजमगढ़ के किसान वैसे तो कई दिनों से परेशान थे लेकिन 11 दिसंबर को उन्होंने डीएपी यानी डाइअमोनियम फॉस्फेट खाद उपलब्ध कराने की गुहार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक पहुंचा दी.