महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा के चुनाव नतीजों की घोषणा के एक दिन बाद कोलकाता में यह नवंबर की ताजगी भरी सुबह तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) सांसद कल्याण बनर्जी पूरी दबंगई वाले स्वर में मीडिया से मुखातिब थे. उन्होंने थी. पूछा, " ममता बनर्जी को इंडिया ब्लॉक का नेतृत्व क्यों नहीं करना चाहिए ? उन्होंने बंगाल में भाजपा को लगातार पराजित किया है. कांग्रेस ने हाल के दिनों में चुनाव हारने के सिवा क्या है?" उनके शब्दों में तंज गहरा था.
सहयोगी दल की आलोचना महज इस वजह से नहीं थी कि उनकी पार्टी ने पश्चिम बंगाल के उपचुनावों में सभी छह सीटों को जीतकर बाकियों का सूपड़ा साफ किया था. इंडिया ब्लॉक दूसरे कई सहयोगी दलों के बीच भी ऐसी ही भावना है. भाजपा के चुनावी दबदबे को चुनौती देने के लिए 2022 में तीन दर्जन से ज्यादा दलों ने मिलकर इंडिया ब्लॉक बनाया था. बनर्जी की टिप्पणी भी महाराष्ट्र और हरियाणा में कांग्रेस की पराजय के तुरंत बाद आई. इन दोनों राज्यों के चुनाव को लेकर माना जा रहा था कि कांग्रेस इस साल के शुरू में हुए लोकसभा बेहतर प्रदर्शन के बाद अपने पैर फिर से मजबूत कर सकती है.
यह पहली बार नहीं है जब कांग्रेस को इंडिया ब्लॉक में इस तरह के सार्वजनिक उपहास का सामना करना पड़ा है. हरियाणा में करारी हार के बाद शिवसेना (यूबीटी) सांसद प्रियंका चतुर्वेदी सीधे ही कह दिया था: भाजपा के साथ किसी भी तरह की सीधी लड़ाई में कांग्रेस ने विपक्ष को कमजोर किया है. जून के बाद से इंडिया ब्लॉक दो क्षेत्रों में विजयी हुआ है जहां मजबूत क्षेत्रीय दलों - झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) और जम्मू-कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) - ने अभियान का नेतृत्व किया.
महाराष्ट्र की शिकस्त ने इस बहस को फिर से हवा दे दी है क्योंकि कांग्रेस महा विकास अघाड़ी (एमवीए) गठबंधन के नेतृत्व में 101 सीटों पर चुनाव लड़ी और महज 16 जीत सकी. 288 सदस्यों के सदन में एमवीए की कुल सीटें 49 पर सिमट गईं जिससे घटक दलों के बीच ये सुर उठने लगे हैं कि कांग्रेस इंडिया ब्लॉक का नेतृत्व करने के बजाय उस पर सबसे बड़ी बोझ बन गई है. (देखें बॉक्सः उभार के बाद उतार)
इंडिया में नया समीकरण
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