इसी नवंबर महीने का तीसरा बुधवार बिहार के खेल इतिहास का सुनहरा पन्ना था. एस्ट्रो टर्फ मैदान और अत्याधुनिक स्टेडियम में महिला हॉकी की एशियन चैंपियंस ट्रॉफी का सफल आयोजन हुआ. फाइनल इ में जब भारतीय टीम ने चीन को 1:0 से मात दी तो बिहारी दर्शक झूम उठे. भारतीय हॉकी टीम की कप्तान सलीमा टेटे ने इस आयोजन के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का विशेष आभार जताया. सबसे ज्यादा खुश भारतीय महिला हॉकी टीम के कोच हरेंद्र कुमार थे, जो बिहार के सारण जिले के रहने वाले हैं. उनके शब्द थे, "बिहार में खेल का माहौल बदल चुका है. 28 साल के कोचिंग करियर में मैंने हर दरवाजा खटखटाया कि बिहार में खेल का माहौल बदले. अच्छा आयोजन हो. मुझे नेशनल टूर्नामेंट की भी उम्मीद नहीं थी, आज इंटरनेशनल टूर्नामेंट हुआ. हर कोच का सपना होता है कि उसकी जन्मभूमि पर उसे कोई जीत मिले. आज मेरा सपना पूरा हो गया. "
इसी साल जनवरी में पटना के मोईनुल हक स्टेडियम में हुए रणजी मुकाबले में टूटे स्टेडियम और स्टैंड पर उगी घास की वायरल तस्वीरों से बिहार की खेल व्यवस्था का खूब मजाक उड़ा था. मगर राजगीर के इस भव्य आयोजन ने उस छवि को बदल दिया है. हरेंद्र कहते हैं, "बिहार सरकार ने खिलाड़ियों को जितनी सुविधाएं देनी थी, दे दीं. अब खिलाड़ियों के हाथ में है कि वे इन सुविधाओं को अपने हक में कैसे इस्तेमाल करते हैं. " राजगीर हॉकी स्टेडियम में ही जीत के बाद बिहार के ही पूर्व हॉकी खिलाड़ी और अभी पटना में हॉकी इंडिया से मान्यता प्राप्त हॉकी कोचिंग एकेडमी का संचालन कर रहे अजितेश राय कहते हैं, "इस बदलाव के बाद मेरे जैसे कई और खिलाड़ी बिहार से निकलेंगे. कुछ साल में आपको बदलाव दिखने लगेगा, "
मगर क्या सचमुच बिहार में खेल का माहौल बदल रहा है ? क्या सचमुच बिहार सरकार ने राज्य के खिलाड़ियों के लिए हर तरह के इंतजाम कर दिए हैं? क्या सचमुच कुछ साल में बिहार भी देश को राष्ट्रीयअंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी दे पाएगा, जो मेडलों का टोटा खत्म कर देंगे ?
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