गुमनाम मौतों के सूबे में
Outlook Hindi|January 08, 2024
धनबाद के दर्जनों गांवों के बाशिंदों के लिए रोजगार का संकट उन्हें अवैध खनन की ओर ले जाता है
मो. असगर खान
गुमनाम मौतों के सूबे में

हले कागज, फिर कर्ज माफी ! पिछले एक साल में ऐसा कोई हफ्ता नहीं बीता जब महिला मंडल ने रमेश (36 साल, बदला हुआ नाम) से कर्ज माफी के लिए उसकी पत्नी सीता का मृत्यु प्रमाण-पत्र न मांगा हो। पिछले साल 1 फरवरी को धनबाद के निरसा में ओपन कास्ट खदान के एक हिस्से के धंसने से कथित अवैध खनन करने वाले 16 मजदूरों की मौत हो गई थी, जिसमें सीता (32 साल, बदला हुआ नाम) भी शामिल थी। कानूनी पचड़े से बचने के लिए आनन-फानन रमेश ने पत्नी के शव को खदान से जैसे-तैसे बाहर निकाला और कुछ ही घंटों में उसका दाह संस्कार कर दिया। रमेश के मुताबिक सीता की मौत का कारण खनन के दौरान मिट्टी में दबकर दम घुटना थी, लेकिन आधिकारिक तौर पर यह मौत दर्ज ही नहीं की गई।

रमेश आउटलुक से बताते हैं, “पुलिसिया कार्रवाई के डर से हम लोगों को जल्दीबाजी में अंतिम संस्कार करना पड़ा। मुझे नहीं पता था मेरा यह फैसला बड़ी समस्या बन जाएगा। अब ऐसा लगता है कि मेरी पत्नी की मौत गुमनाम है, जिसका सत्यापन शायद कभी नहीं हो पाएगा। डेथ सर्टिफिकेट बन जाता, तो महिला मंडल वाले लोग उसका कर्जा माफ कर देते। चालीस हजार रुपये कर्ज का हर महीने ब्याज बढ़ रहा है। मेरी उतनी कमाई ही नहीं है कि कर्ज की रकम या ब्याज भर पाऊं।"

धनबाद जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर की दूरी पर बसा रमेश का गांव उन दर्जनों गांवों में शामिल है जिनकी जमीनें कोयले के खदानों से बंजर हो चुकी हैं। इसलिए लोगों के जीवनयापन का सहारा दूसरे शहरों में जाकर मजदूरी करना या आसपास बंद पड़ी कोयला खदानों से अवैध ढंग से कोयला निकाल कर बेचना है। यहां के लोग राशन, पानी, बिजली और घर जैसी समस्याएं तो गिनाते ही नहीं हैं। यहां के लोगों को अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए जान जोखिम में डालकर बंद पड़ी खदानों में छोटे-छोटे कुएं या गड्डे खोदकर कोयला निकालना पड़ता है। इसी प्रक्रिया को अंग्रेजी में रैटहोल माइनिंग कहते हैं।

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