जम्मू-कश्मीर में उमर अब्दुल्ला की निर्वाचित सरकार और उप-राज्यपाल मनोज सिन्हा के बीच शीतयुद्ध 31 अक्टूबर को केंद्र शासित प्रदेश के स्थापना दिवस से ठीक एक दिन पहले चरम पर पहुंच गया। उमर अब्दुल्ला ने मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के बाद से शांत रवैया अपनाया हुआ है और उप-राज्यपाल से सीधे टकराव से परहेज कर रहे हैं। अब्दुल्ला अपने फैसलों में सतर्क रह रहे हैं और ऐसे कामों से दूर हैं, जो दिल्ली से राजनैतिक तनाव पैदा कर राज्य के राजकाज में अड़चन पैदा कर सकते हैं।
उमर अब्दुल्ला सरकार के शपथ लेने के बाद जम्मू-कश्मीर के महाधिवक्ता डी.सी. रैना ने इस्तीफा दे दिया जबकि अतिरिक्त महाधिवक्ता और अन्य सरकारी वकील पद पर बने रहे। वक्फ बोर्ड की अध्यक्ष और भारतीय जनता पार्टी की वरिष्ठ नेता डॉ. दरखशां अंद्राबी ने भी पद नहीं छोड़ा। वे भाजपा प्रवक्ता बनी हुई हैं और सरकार में राज्यमंत्री का दर्जा लिए हुई हैं। एक और भाजपा नेता डॉ. हिना भट खादी ग्रामोद्योग बोर्ड (जम्मू-कश्मीर) की अध्यक्ष बनी हुई हैं, जो कुछ कैबिनेट मंत्रियों के मुकाबले बड़ी बैठकों की अध्यक्षता करती हैं। नाम न बताने की शर्त पर अतिरिक्त महाधिवक्ता में से एक ने आउटलुक को बताया कि महाधिवक्ता ने खुद ही इस्तीफा दिया, किसी ने उनसे ऐसा करने को नहीं कहा होगा। उन्होंने कहा कि उन्हें उप-राज्यपाल ने नियुक्त किया है और वे पद पर बने रहेंगे।
रैना के इस्तीफे के बाद उमर सरकार ने किसी को एडवोकेट जनरल नहीं बनाया है। जम्मू-कश्मीर के पूर्व एडवोकेट जनरल इशाक कादरी कहते हैं कि एडवोकेट जनरल को टीम का नेता माना जाता है और उनके इस्तीफे को उनकी पूरी टीम का इस्तीफा माना जाता है, भले ही नियुक्ति के आदेश अलग से जारी किए गए हों। वे कहते हैं, ‘‘मौजूदा सरकार के गठन से पहले की गई सभी राजनैतिक नियुक्तियों को छोड़ देना चाहिए और अगर वे काम जारी रखते हैं, तो उन्हें हटाए जाने तक कोई बड़ा फैसला नहीं करना चाहिए। यही कायदा है।’’
This story is from the November 25, 2024 edition of Outlook Hindi.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber ? Sign In
This story is from the November 25, 2024 edition of Outlook Hindi.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber? Sign In
गांधी पर आरोपों के बहाने
गांधी की हत्या के 76 साल बाद भी जिस तरह उन पर गोली दागने का जुनून जारी है, उस वक्त में इस किताब की बहुत जरूरत है। कुछ लोगों के लिए गांधी कितने असहनीय हैं कि वे उनकी तस्वीर पर ही गोली दागते रहते हैं?
जिंदगी संजोने की अकथ कथा
पायल कपाड़िया की फिल्म ऑल वी इमेजिन ऐज लाइट परदे पर नुमाया एक संवेदनशील कविता
अश्विन की 'कैरम' बॉल
लगन और मेहनत से महान बना खिलाड़ी, जो भारतीय क्रिकेट में अलग मुकाम बनाने में सफल हुआ
जिसने प्रतिभाओं के बैराज खोल दिए
बेनेगल ने अंकुर के साथ समानांतर सिनेमा और शबाना, स्मिता पाटील, नसीरुद्दीन शाह, ओम पुरी, गिरीश कार्नाड, कुलभूषण खरबंदा और अनंतनाग जैसे कलाकारों और गोविंद निहलाणी जैसे फिल्मकारों की आमद हिंदी सिनेमा की परिभाषा और दुनिया ही बदल दी
सुविधा पचीसी
नई सदी के पहले 25 बरस में 25 नई चीजें, जिन्होंने हमारी रोजमर्रा की जिंदगी पूरी तरह से बदल डाली
पहली चौथाई के अंधेरे
सांस्कृतिक रूप से ठहरे रूप से ठहरे हुए भारतीय समाज को ढाई दशक में राजनीति और पूंजी ने कैसे बदल डाला
लोकतंत्र में घटता लोक
कल्याणकारी राज्य के अधिकार केंद्रित राजनीति से होते हुए अब डिलिवरी या लाभार्थी राजनीति तक ढाई दशक का सियासी सफर
नई लीक के सूत्रधार
इतिहास मेरे काम का मूल्यांकन उदारता से करेगा। बतौर प्रधानमंत्री अपनी आखिरी सालाना प्रेस कॉन्फ्रेंस (3 जनवरी, 2014) में मनमोहन सिंह का वह एकदम शांत-सा जवाब बेहद मुखर था।
दो न्यायिक खानदानों की नजीर
खन्ना और चंद्रचूड़ खानदान के विरोधाभासी योगदान से फिसलनों और प्रतिबद्धताओं का अंदाजा
एमएसपी के लिए मौत से जंग
किसान नेता दल्लेवाल का आमरण अनशन जारी लेकिन केंद्र सरकार पर असर नहीं