महाराष्ट्र में हुए विधानसभा चुनाव में महाविकास अघाड़ी की हुई बुरी पराजय और महायुति को मिली प्रचंड जीत ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं.
विपक्ष यानी कि महाविकास अघाड़ी हार स्वीकार करने के बजाय चुनाव आयोग व सरकारी मशीनरी पर सारा दोष मढ़ रहा है. उद्धव ठाकरे और संजय राउत अपनी पार्टी की हार का ठीकरा चुनाव आयोग के साथ ही साथ पूर्व मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ पर फोड़ रहे हैं. महाविकास अघाड़ी में शामिल तीन दलों में कोई भी अपने गिरेबान में झांक कर नहीं चुनाव परिणाम इस प्रकार रहे: एक तरफ भाजपा को 132, शिवसेना शिंदे गुट 57, एनसीपी अजीत पवार गुट 41 सीट और दूसरी तरफ शिवसेना उद्धव गुट 20, कांग्रेस 16 और एनसीपी शरद पवार गुट को 10 सीटें मिलीं.
2014 से मुंबई के बौलीवुड और विपक्षी दलों की कार्यशैली एकजैसी हो गई है. इसी वजह से जैसे बौलीवुड की हर फिल्म व हर दिग्गज कलाकार बौक्स ऑफिस पर डूब रहा है तो वहीं विपक्षी दल इक्कादुक्का जीत के बाद हर चुनाव हारते जा रहे हैं.
2014 के बाद बौलीवुड देश की तरह 2 खेमों में बंट चुका है. एक खेमा वह है जोकि 'द कश्मीर फाइल्स' या 'द साबरमती रिपोर्ट' जैसी सरकारपरस्त व धर्म बेचने वाली प्रोपगंडा सिनेमा बना रहा है, जिसे सरकारी मशीनरी से भरपूर मदद मिल रही है तो दूसरी तरफ वह खेमा है जो कि पैरासाइट्स/परजीवियों की सलाह पर काम करते हुए घटिया फिल्में बनाने के साथ ही फिल्म के प्रमोशन के लिए जनता व पत्रकारों से दूर हो कर कुछ शहरों के कालेज ग्राउंड या मौल्स में जा कर भाड़े की भीड़ बुला कर अपनी फिल्म के सुपरडुपर हो जाने के दावे करता रहता है. पर, फिल्म बौक्स ऑफिस पर धराशायी हो जाती है.
वास्तव में जब से बौलीवुड के दिग्गजों ने अपनी कार्यशैली बदली है तब से उन का आम दर्शकों से संबंधविच्छेद हो गया है और अब उन्हें जनता की नब्ज की पहचान नहीं रही कि जनता किस तरह का सिनेमा देखना चाहती है.
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यह देहाती कहावत थोड़ी पुरानी और फूहड़ है कि मल त्याग करने के बाद पीछे नहीं हटा जाता बल्कि आगे बढ़ा जाता है. आज की भाजपा और अब से कोई सौ सवा सौ साल पहले की कांग्रेस में कोई खास फर्क नहीं है. हिंदुत्व के पैमाने पर कौन से हिंदूवादी आगे बढ़ रहे हैं और कौन से पीछे हट रहे हैं, आइए इस को समझने की कोशिश करते हैं.