रात को जब भी आंख खुलती है...
Panchjanya|September 25, 2022
दीनदयाल जी के मामाजी बीमार थे और वे भुवाली (उत्तराखंड) के एक अस्पताल में भर्ती थे। दीनदयाल जी उनकी देखरेख के लिए उनके साथ थे। वहीं से उन्होंने अपने ममेरे भाई श्री बनवारीलाल शुक्ल को 10 मार्च, 1944 को एक पत्र लिखा था। जिससे समाज के प्रति उत्तरदायित्व का उनका बोध प्रदर्शित होता है।
रात को जब भी आंख खुलती है...

'स्वदेशी' के विचार से पुरातनपंथी कहा जाता है और हम गर्व से विचार, पूंजी से लेकर हर चीज विदेशी प्रयोग करते हैं। इससे हम फिर गुलाम बन जाएंगे। - पं. दीनदयाल उपाध्याय

प्रिय बनवारी,

आज शायद जितने विक्षुब्ध हृदय से पत्र लिख रहा हूं, इस प्रकार शायद अपने जीवन में मैंने कभी नहीं किया होगा। मैं चाहता तो था कि अपने हृदय के इस क्षोभ को अपने ही तक सीमित रखूं, परन्तु अब तक अनुभव बताता है कि यह क्रिया अत्यंत वेदनोत्पादक एवं व्यथाकारी है। तुम विचारवान हो एवं संवेदनात्मक रूप से सोचने की तुममें शक्ति है, इसलिए तुमको लिख रहा हूं।

8 तारीख से ही मैं तुम्हारी सतत् बाट देख रहा था, वैसे तो मैं जानता था कि तुम नहीं आओगे, परंतु एक यों ही आशा लगी हुई थी कि शायद तुम मेरे कार्य की महत्ता का अनुभव कर सको और आ जाओ, परंतु तुम शायद न समझ पाए कि मेरा जाना भी मेरी दृष्टि से कितना आवश्यक है। एक स्वयंसेवक के जीवन में संघ कार्य का कितना महत्व है, काश! तुम इसको समझते होते! तुम जानते हो कि साधारण रूप से जीवन यापन के अनुकूल योग्यता और साधन होते हुए भी, उस मार्ग को छोड़कर भिन्न मार्ग ही मैंने स्वीकार किया है। मैं भी सुख-चैन से रहने की इच्छा करता हूं। मैं यह भी जानता हूं से मैं कि इस प्रकार कार्य करने में कुटुम्ब का कोई व्यक्ति और विशेषकर मामा जी प्रसन्न नहीं हैं।

This story is from the September 25, 2022 edition of Panchjanya.

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