भारतीय मूर्तिशिल्प में भगवान् सूर्य
Jyotish Sagar|January 2023
मानव समाज में था। सूर्य के साक्षात् देव होने पर ही उनके मन्दिर देश के विभिन्न स्थानों पर निर्मित प्राप्त होते हैं। सूर्य नारायण प्रत्यक्ष भगवान् हैं और हमें उनके प्रत्यक्ष दर्शन प्राप्त होता है।
पुष्पा शर्मा
भारतीय मूर्तिशिल्प में भगवान् सूर्य

दिकाल से ही आकाशस्थ ज्योतिष्पिण्ड की प्रत्यक्ष उपासना की जाती रही है। भारत में अति प्राचीनकाल से ही सूर्य पूजा के प्रमाण प्राप्त होते हैं। सैन्धव सभ्यता में सूर्य पूजा का उल्लेख मिलता है। वैदिक काल में सूर्य की सात अश्व के रथ पर आरूढ़ परिक्रमा करने की धारणा विकसित हुई। वैदिक काल में प्रथम सदी ई. तक भारत में सूर्य पूजा वैदिक आधार पर रही, लेकिन प्रथम सदी ई. से सूर्य पूजा में ईरानी परम्परा का दर्शन होने लगा।

वराहमिहिर की बृहत्संहिता में उल्लेख मिलता है कि सूर्य की उत्तरीय वेशभूषा ( उदीच्य वेश) होनी चाहिए। इस वेश के अनुसार वक्षस्थल से के तक उनका शरीर ढँका रहता है। वे शीश पर मुकुट और कर में सनाल कमल धारण किए रहते हैं। उनके कर्ण में कुण्डल, ग्रीवा में हार रहता है। यह ग्रन्थ उनके रथ, उपानह, अश्वों और परिचारकों का उल्लेख नहीं करता है। सूर्य मूर्ति के निर्माण में उसे दो स्वरूपों में निर्मित करने का विधान है। : (1) उदीच्य वेश में और (2) दक्षिणी वेशभषा में।

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