राहु-केतु छाया ग्रह हैं, जो ग्रह पिण्ड नहीं हैं, क्योंकि ये आकाशीय मण्डल में दिखाई नहीं देते हैं। सूर्य ग्रहों के राजा हैं, तो मंगल सेनापति, शनि न्यायाधीश हैं, शुक्र दानवों और गुरु देवताओं के गुरु हैं। ये सभी ग्रह कभी उच्च-नीच नहीं होते। केवल ग्रहों की युतियों के कारण शुभाशुभ फल प्रदान करते हैं। प्रत्येक ग्रह अपनी उच्च राशि में तीव्रता से परिणाम देता है और नीच राशि में मन्दता के साथ परिणाम देता है। अगर वह ग्रह आपकी जन्मपत्रिका में अकारक है, तो कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह उच्च का है अथवा नीच का।
उच्च ग्रह
नवग्रहों में से प्रत्येक ग्रह को किसी एक राशि विशेष में स्थित होने से अतिरिक्त बल प्राप्त होता है, जिसे इस ग्रह की उच्च की राशि कहा जाता है।
नीच ग्रह
इसी तरह अपनी उच्च की राशि से ठीक सातवीं राशि में स्थित होने पर प्रत्येक ग्रह के बल में कमी आ जाती है तथा इस राशि को इस ग्रह की नीच राशि कहा जाता है। ग्रह कोई भी हो, वह नीच नहीं होता। बस उनका फल शुभाशुभ होता है। नीच ग्रह से मतलब शब्द के अर्थ में नहीं होता, अपितु उस ग्रह में ताकत कम होती है और वह कमजोर होता है। उच्च और नीच ग्रह दो ग्रहों की युतियाँ होने पर विभिन्न तत्त्वों की प्रधानता होने से उनके फल शुभ अथवा अशुभ हो जाते हैं। जब दो ग्रहों की युति हो जाती है और दोनों ग्रहों में विपरीत तत्त्वों की प्रधानता हो, तो उसे 'नीच' कहा जाता है।
इस सम्पूर्ण चराचर जगत् में दो तत्त्वों की प्रधानता है: पहला अग्नि और दूसरा वायु।
यदि इन दोनों तत्त्वों के ग्रह एक ही घर अथवा भाव में उपस्थित हो जाते हैं, तो वे नीच ग्रह के और जब समान तत्त्व वाले ग्रह एक ही घर अथवा भाव में आ जाएँ, तो वे 'उच्च ग्रह' कहलाते हैं। जो ग्रह जिस राशि में उच्च का होगा, उससे सातवीं राशि में जाकर वह नीच का हो जायेगा।
This story is from the March 2023 edition of Jyotish Sagar.
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