भारत में प्रकृति के पूजन की परम्परा अति प्राचीन है। सिन्धु सभ्यता के अध्ययन से ज्ञात होता है कि तत्कालीन समय में पशु पूजा, अग्नि पूजा, सूर्य पूजा, वृक्ष पूजा और जल पूजा का प्रचलन था। इतिहासकार मार्शल के अनुसार सिन्धु घाटी सभ्यता (मोहनजोदड़ो) का विशाल स्नानागार सार्वजनिक, धार्मिक आयोजनों के लिए रहा होगा। वैदिक संस्कृति में भी पंचतत्त्व पूजन का उल्लेख मिलता है। वैदिक संहिताआओं में भी 31 नदियों का उल्लेख प्राप्त होता है, जिनमें से 25 का उल्लेख ऋग्वेद में है। ऋग्वेद के नदी सूक्त में 21 नदियों का उल्लेख प्राप्त होता है।
रामायण एवं अन्य धार्मिक ग्रन्थों में राजा सगर से भगीरथ तक पाँच पीढ़ियों द्वारा गंगा को पृथ्वी पर लाने का वर्णन प्राप्त होता है। राजा दिलीप के पुत्र भगीरथ की तपस्या से गंगा का पृथ्वी पर अवतरण का व्याख्यान उल्लेखनीय है। धर्मशास्त्रों में गंगा को मोक्षदायिनी बताया गया है। गंगा को त्रिपथगा भी कहा गया है, क्योंकि गंगा आकाश, पाताल और पृथ्वी तीनों लोकों में प्रवाहित होती है। भारत में गंगा ही नहीं, वरन् सभी नदियाँ पूजनीय होने के साथ-साथ भारत की जीवनरेखा हैं। इतिहास के अध्ययन से ज्ञात होता है कि विश्व की सभी सभ्यता नदियों के किनारे ही फली-फूलीं।
विष्णु धर्मोत्तर पुराण में कहा गया है कि गंगा और यमुना नदियाँ अपने-अपने वाहनों सहित मानवीय रूप में अंकित की जानी चाहिए। गुप्तकालीन स्थापत्य कला में गंगा-यमुना अपने कर (हाथ) में पूर्ण कुम्भ के स्थान पर चँवर के साथ प्रदर्शित हैं। इन नदी मूर्तियों के चामरधारी मानवीय स्वरूप की कल्पना कुमारसम्भव में भी प्राप्य है। शास्त्रों में उल्लेख है:
सरिता सशरीरराणां वाहनानि प्रदर्शयते।
पर्णकम्भकरा: कार्यास्तथा नमितजानवः॥
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सात धामों में श्रेष्ठ है तीर्थराज गयाजी
गया हिन्दुओं का पवित्र और प्रधान तीर्थ है। मान्यता है कि यहाँ श्रद्धा और पिण्डदान करने से पूर्वजों को मोक्ष प्राप्त होता है, क्योंकि यह सात धामों में से एक धाम है। गया में सभी जगह तीर्थ विराजमान हैं।
सत्साहित्य के पुरोधा हनुमान प्रसाद पोद्दार
प्रसिद्ध धार्मिक सचित्र पत्रिका ‘कल्याण’ एवं ‘गीताप्रेस, गोरखपुर के सत्साहित्य से शायद ही कोई हिन्दू अपरिचित होगा। इस सत्साहित्य के प्रचारप्रसार के मुख्य कर्ता-धर्ता थे श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार, जिन्हें 'भाई जी' के नाम से भी सम्बोधित किया जाता रहा है।
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर अमृत गीत तुम रचो कलानिधि
राष्ट्रकवि स्व. रामधारी सिंह दिनकर को आमतौर पर एक प्रखर राष्ट्रवादी और ओजस्वी कवि के रूप में माना जाता है, लेकिन वस्तुतः दिनकर का व्यक्तित्व बहुआयामी था। कवि के अतिरिक्त वह एक यशस्वी गद्यकार, निर्लिप्त समीक्षक, मौलिक चिन्तक, श्रेष्ठ दार्शनिक, सौम्य विचारक और सबसे बढ़कर बहुत ही संवेदनशील इन्सान भी थे।
सेतुबन्ध और श्रीरामेश्वर धाम की स्थापना
जो मनुष्य मेरे द्वारा स्थापित किए हुए इन रामेश्वर जी के दर्शन करेंगे, वे शरीर छोड़कर मेरे लोक को जाएँगे और जो गंगाजल लाकर इन पर चढ़ाएगा, वह मनुष्य तायुज्य मुक्ति पाएगा अर्थात् मेरे साथ एक हो जाएगा।
वागड़ की स्थापत्य कला में नृत्य-गणपति
प्राचीन काल से ही भारतीय शिक्षा कर्म का क्षेत्र बहुत विस्तृत रहा है। भारतीय शिक्षा में कला की शिक्षा का अपना ही महत्त्व शुक्राचार्य के अनुसार ही कलाओं के भिन्न-भिन्न नाम ही नहीं, अपितु केवल लक्षण ही कहे जा सकते हैं, क्योंकि क्रिया के पार्थक्य से ही कलाओं में भेद होता है। जैसे नृत्य कला को हाव-भाव आदि के साथ ‘गति नृत्य' भी कहा जाता है। नृत्य कला में करण, अंगहार, विभाव, भाव एवं रसों की अभिव्यक्ति की जाती है।
व्यावसायिक वास्तु के अनुसार शोरूम और दूकानें कैसी होनी चाहिए?
ऑफिस के एकदम कॉर्नर का दरवाजा हमेशा बिजनेस में नुकसान देता है। ऐसे ऑफिस में जो वर्कर काम करते हैं, तो उनको स्वास्थ्य से जुड़ी कई परेशानियाँ आती हैं।
श्रीगणेश नाम रहस्य
हिन्दुओं के पंच परमेश्वर में भगवान् गणेश का स्थान प्रथम माना जाता है। शंकराचार्य जी ने के भी पंचायतन पूजा में गणेश पूजन विधान का उल्लेख किया है। गणेश से तात्पर्य गण + ईश अर्थात् गणों का ईश से है। भगवान् गणेश को कई अन्य नामों से भी पूजा जाता है जैसे विघ्न विनाशक, विनायक, लम्बोदर, सिद्धि विनायक आदि।
प्रेम और भक्ति की अनन्य प्रतीक 'श्रीराधा'
कृष्ण चरित के प्रतिनिधि शास्त्र भागवत और महाभारत में राधा का उल्लेख नहीं होने के बावजूद वे लोकमानस में प्रेम और भक्ति की अनन्य प्रतीक के रूप में बसी हुई हैं। सन्त महात्माओं ने उन्हें कृष्णचरित का अभिन्न अंग माना है। उनकी मान्यता है कि प्रेम और भक्ति की जैसे कोई सीमा नहीं है, उसी तरह राधा का चरित, उनकी लीला और स्वरूप भी प्रेमाभक्ति का चरमोत्कर्ष है।
राजस्थान के लोकदेवता और समाज सुधारक बाबा रामदेव
राजस्थान के देवी-देवताओं में बाबा रामदेव का नाम काफी विख्यात है। इनके अनुयायी राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात और सिन्ध (पाकिस्तान) आदि में बड़ी संख्या में हैं।
जन्मपत्रिका में चन्द्रमा और मनुष्य का भावनात्मक जुड़ाव
जिस प्रकार लग्न हमारा शरीर अर्थात् बाहरी व्यक्तित्व है, उसी प्रकार चन्द्रमा हमारा सूक्ष्म व्यक्तित्व है, जो किसी को भी दिखाई नहीं देता, लेकिन महसूस अवश्य होता है।