महापुरुषों की बात को टालना नहीं चाहिए।
श्री योगवासिष्ठ महारामायण में वसिष्ठजी महाराज कहते हैं : "त्रिभुवन में ऐसा कौन है जो संत की आज्ञा का उल्लंघन करके सुखी रह सके ?"
भगवान शंकर कहते हैं :
गुरुणां सदसद्वापि यदुक्तं तन्न लंघयेत्।
कुर्वन्नाज्ञां दिवारात्रौ दासवन्निवसेद् गुरौ ॥
'गुरुओं की बात सच्ची हो या झूठी परंतु उसका उल्लंघन कभी नहीं करना चाहिए। रात और दिन गुरु की आज्ञा का पालन करते हुए गुरु के सान्निध्य में दास बनकर रहना चाहिए।'
गुरुदेव की कही हुई बात चाहे झूठी दिखती हो फिर भी शिष्य को संदेह नहीं करना चाहिए, उनकी आज्ञा का पालन करने के लिए कूद पड़ना चाहिए।
सौराष्ट्र (गुज.) में रामू नाम के महान गुरुभक्त शिष्य हो गये। लालजी महाराज के नाम उनके खत आते रहते थे। लालजी महाराज ने रामू के जीवन की एक घटना बतायी थी।
एक बार रामू के गुरु ने कहा : "रामू ! जा, घोड़ा-गाड़ी ले आ। भक्त के घर भोजन करने जाना है।”
रामू घोड़ा-गाड़ी ले आया। गुरु नाराज होकर बोले : "अभी सुबह के ७ बजे हैं, भोजन तो ११-१२ बजे होगा, बेवकूफ कहीं का ! १२ बजे भोजन करने जाना है और गाड़ी अभी ले आया ! बेचारा ताँगेवाला बैठा रहेगा।"
रामू गया, ताँगेवाले को छुट्टी देकर आ गया। गुरु ने पूछा : "क्या किया?"
हाथ जोड़ के रामू बोला : ‘‘जी, ताँगा वापस कर दिया।"
"जब जाना ही था तो वापस क्यों किया ? जा, ले आ।" रामू गया, ताँगेवाले को बुला लाया।
"गुरुजी ! ताँगा आ गया।" गुरुजी : ‘“अरे, फिर से ताँगा ले आया ? हमें जाना तो १२ बजे है न ! पहले इतना समझाया लेकिन अभी तक नहीं समझा तो भगवान को क्या समझेगा?’’
ताँगा वापस कर दिया गया। रामू आया तो गुरु गरज उठे : ‘‘वापस कर दिया !... फिर समय पर मिले-न मिले, क्या पता ? जा, ले आ।"
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