साधक अगर श्रद्धा एवं भक्तिभाव से अपने गुरु की सेवा नहीं करेगा तो अंतःकरण की शुद्धि नहीं होगी। अंतःकरण की शुद्धि नहीं होगी तो फिर मन ईश्वर में लगेगा नहीं, इधर-उधर भागेगा।
किसी-न-किसी स्वार्थ से करने की आदत है, अब स्वार्थ छोड़ के ईश्वर के लिए करें तो हो गया निष्काम कर्मयोग! निष्काम कर्मयोग से हृदय शुद्ध होगा और शुद्ध हृदय से किया जप जल्दी सफल होता है। जप से भी हृदय शुद्ध होता है। तो जप भी निष्काम भाव से करें और सेवा भी निष्काम भाव से करें।
जो दिखावे के लिए सेवा करते हैं वे सेवा के हीरे को कीचड़ में डाल देते हैं। सेवा से संसारी चीज जो चाहते हैं वे सेवा को बाजारू वस्तु की नाई बेच देते हैं। परंतु जो ईमानदारी से, निःस्वार्थ भाव से सेवा करते हैं, सेवा से सेव्य को जानना चाहते हैं वे सेवा का अनंत गुना फल पाकर सेव्य से एक हो जाते हैं।
जिनि सेविआ तिनि पाइआ मानु।
जिन्होंने ईमानदारी से, तत्परता से सेवा की उनको लोग मान देते हैं लेकिन मान का भोगी नहीं होना चाहिए। हम मान के लिए सेवा नहीं करते, मान के बदले में सेवा क्यों खोना? मान हो चाहे अपमान हो, तत्परता से सेवा करते रहना चाहिए।
This story is from the June 2024 edition of Rishi Prasad Hindi.
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रूहानी सौदागर संत-फकीर
१५ नवम्बर को गुरु नानकजी की जयंती है। इस अवसर पर पूज्य बापूजी के सत्संग-वचनामृत से हम जानेंगे कि नानकजी जैसे सच्चे सौदागर (ब्रहाज्ञानी महापुरुष) समाज से क्या लेकर समाज को क्या देना चाहते हैं:
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समर्थ साँईं लीलाशाहजी की अद्भुत लीला
साँईं श्री लीलाशाहजी महाराज के महानिर्वाण दिवस पर विशेष
धर्मांतरणग्रस्त क्षेत्रों में की गयी स्वधर्म के प्रति जागृति
ऋषि प्रसाद प्रतिनिधि।