हिंदू धर्म में शादी को सबसे बड़ा उत्सव माना जाता है। शादी में कई तरह के रस्में वर-वधू के अलावा परिवार के लोगों को निभाने पड़ते हैं। इन्हीं रस्मों में से एक सबसे महत्वपूर्ण रस्म है, कन्यादान। शास्त्रों में कन्यादान को महादान कहा गया है। इस रस्म का निर्वाह पूरे विधि-विधान से किया जाता है। लड़की के जन्म से ही मां-बाप उसकी शादी के सपने संजोने लगते हैं। अपनी बेटी की शादी को यादगार बनाने के लिए माता-पिता कोई कसर नहीं छोड़ते हैं।
कैसे हुई कन्यादान की शुरुआत
शास्त्र के मुताबिक अर्जुन और सुभद्रा का गंधर्व विवाह कराया गया था। कृष्ण के भाई बलराम ने इस विवाह का ये कहते हुए विरोध किया था कि सुभद्रा का कन्यादान नहीं हुआ है, बिना कन्यादान के विवाह अधूरा होता है। बलराम को समझाते हुए श्रीकृष्ण ने कहा कि, 'मनुष्य का कभी दान नहीं बल्कि आदान किया जाता है।' कन्यादान की शुरुआत सबसे पहले प्रजापति दक्ष ने की थी। राजा दक्ष ने अपनी 27 कन्याओं का विवाह चंद्र देवता से किया था। शास्त्र के मुताबिक ऐसा उन्होंने सृष्टि का सही तरीके से संचालन करने के लिए किया था। उन्होंने अपनी बेटियों का दान नहीं किया था बल्कि उनका आदान किया था। उनका कहना था कि मेरी बेटियों की जिम्मेदारी आज से आपकी है। दक्ष की पुत्रियां ही 27 नक्षत्र है। तब से लेकर अब तक कन्यादान की ये परंपरा हर जगह निभाई जा रही है।
कन्यादान है महादान
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