हिन्दुओं में 'राम' नाम अति लोकप्रिय है क्योंकि भगवान श्रीराम को पुरुषों में उत्तम और राजाओं में श्रेष्ठ माना जाता है। यही कारण है कि सनातनियों के हृदय में भगवान श्री राम के प्रति घोर आस्था और विश्वास आज भी जीवित है। पुराणों में भी कहा गया है कि 'राम' नाम के उच्चारण मात्र से व्यक्ति का कल्याण हो जाता है। यहां तक कि हिंदुओं में मृत्यु के समय भी 'राम नाम सत्य है' कहा जाता है, ताकि मृतक व्यक्ति को मोक्ष मिल जाए। अर्थात 'राम' से बड़ा राम का नाम और उनका चरित्र है। रामचरित मानस की कुछ पंक्तियां हैं जहां उनके नाम की महिमा का उल्लेख किया गया है -
उल्टा नाम जपत जगजाना। वाल्मीकि भये ब्रह्मसमाना।
भावकभाव अनख आलस हु।। नाम जपत मंगल दिशि दसहु।
यह कलिकाल न साधन दूजा। रामनाम अवलम्बन एका।।
वाल्मीकि 'मरा... मरा...' कहते 'राम' नाम का जप करने लगे और ब्रह्म समान हो गए। अर्थात भाव या कुभाव में भी यदि रामनाम का उच्चारण किया जाए तो भी सर्व मंगलमय बन जाता है। कहने का तात्पर्य है कि इस कलियुग में रामनाम से उत्तम कोई नाम नहीं है।
निसंदेह प्रभु श्री राम के चरित्र में वो विशेषताएं हैं जो अन्य किसी में नहीं है। अन्यथा राम तो परशुराम भी थे किन्तु हम कौशल्यानंदन श्रीराम की ही जय-जयकार क्यों करते हैं। वास्तव में, भगवान् शिव के फरसा (जिसे परशु भी कहते हैं) को धारण करने के कारण ही परशुराम का नाम 'परशु' राम पड़ा, इससे पहले सतयुग में उन्हें ही राम कहा जाता था। परन्तु त्रेता युग में रामलला के जन्म के बाद 'राम' नाम की परिभाषा ही बदल गई। श्रीराम ने सभी तरह की मर्यादाओं से युक्त होकर जनसाधारण के समक्ष ऐसा उदाहरण प्रस्तुत किया कि वह मनुष्यों में एक आदर्श बन गए। यदि हम भी उनका अनुकरण करें तो अपने जीवन को संतुलित बना सकते हैं।
सच में भगवान श्री राम की मर्यादित कर्त्तव्य-परायणता से भारतीय सनातन संस्कृति गौरवान्वित हुई है। समाज के कमजोर वर्ग के प्रति संवेदनशीलता, वनवासी होकर लोक कल्याण के विषय में सोचना, सनातन संस्कृति के ध्वजवाहक ऋषियोंमुनियों को समुचित सम्मान प्रदान करना, स्त्री के गौरव एवं सम्मान की रक्षा, ये सब प्रभु श्री राम जी की गौरवमयी गाथा के अनुपम उदाहरण हैं।
राम से बड़ा राम का नाम
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