मां बनने का सफर किसी भी स्त्री के लिए जितना रोमांचकारी होता है। उतना ही मुश्किलों भरा भी. गर्भावस्था के 9 महीने जितने कष्टकारी होते हैं उस से अधिक तकलीफें तो बच्चे के जन्म के बाद आती हैं.
गर्भावस्था में भ्रूण के विकास के साथसाथ एक स्त्री का शरीर बहुत से बदलाव ग्रहण करता है जिस का प्रभाव बच्चे के जन्म के बाद दिखाई पड़ता है.
हर मां बनने वाली औरत को गर्भावस्था के 9 महीने जितनी देखभाल की जरूरत होती है उतनी ही प्रसव के बाद भी होती है क्योंकि बच्चा होने के बाद हुई थोड़ी सी भी लापरवाही बड़ी समस्याओं को जन्म दे सकती है.
गांवदेहातों में अकसर कहा भी जाता है कि औरत मां बनने के बाद दूसरा जन्म लेती है. अतः प्रसव बाद मिली देखभाल व स्नेह नवजात और मां दोनों के आगामी स्वस्थ जीवन की नींव तैयार करते हैं.
प्रेगनेंसी की अंतिम तिमाही में उठने, बैठने, चलने में बहुत से दिक्कतें होने व प्रसववेदना से गुजरने के बाद मां बनी स्त्री का शरीर बेहद थका हुआ होता है जिसे एक लंबे आराम की जरूरत होती है.
चूंकि पहले के समय में परिवार बड़े हुआ करते थे ऐसे में नवजात की संपूर्ण जिम्मेदारी अकेले नई मां के कंधों पर नहीं आती थी. किंतु अब परिवार छोटे हो गए हैं तो बच्चे को संभालने का पूरा उत्तरदायित्व मां पर ही आ जाता है. इस कारण थका हुआ शरीर और अधिक थकने लगता है जो जल्द ही कई तरह की शारीरिक, मानसिक बीमारियों की चपेट में आ जाता है. इसलिए अगर किसी स्त्री को प्रसवोपरांत पूर्ण देखभाल मिले तो बहुत सी बीमारियां आसानी से उस के शरीर में घर बना लेती हैं.
हड्डियों में दर्द : बच्चे को जन्म देने के बाद हर महिला शरीर में हड्डियों के दर्द से गुजरती है विशेषकर पैरों, कमर की हड्डियों में क्योंकि गर्भ में शिशु आहार के लिए मां पर निर्भर होता है और जन्म के बाद भी स्तनपान करवाने के कारण शरीर में कैल्सियम की भारी कमी हो जाती है जिस कारण शरीर के जोड़ जैसे कंधे, घुटने, कमर दर्द करने लगते हैं. उस से बचने के लिए जब तक आप बच्चे को स्तनपान कराएं दिन में 2 बार दूध जरूर लें. घी का सेवन रोटी, सब्जीदाल के साथ मनमुताबिक करें. ये शरीर में कैल्सियम आपूर्ति के बढ़िया स्रोत हैं.
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