लगातार कृषि लागत में वृद्धि से प्रति इकाई मुनाफा भी घट रहा है। इसके अलावा हमारे देश में कृषि पर निर्वहन करने वाली करोड़ से ज्यादा जनसँख्या लगातार घटी हुई जोत सूखे व बाढ़ का प्रकोप विश्व व्यापारीकरण की चुनौतियां आदि कारकों ने कृषकों व उनका हित सोचने वालों को नवीनतम व उन्नत कृषि तकनीकों के बारे में सोचने पर बाध्य कर दिया है। कम संसाधनों का प्रयोग करके भूमि की उर्वरा शक्ति को बनाये रख कर कम लगत में ज्यादा मुनाफा कमाया जा सके। इन परिस्थितियों में अनाज वाली फसलों के साथ दलहनी फसलों को उगाना लाभदायक है।
धान-गेहूं फसल चक्र में ग्रीष्मकालीन मूंग को सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है क्योंकि गेहूं की कटाई व धान की रोपाई के बीच में दिन तक खेत खाली रहते हैं • जिस दौरान किसान सांठी धान लगाने की कुप्रथा में लिप्त रहते हैं। ग्रीष्मकालीन मूंग की काश्त करने से ना केवल सांठी धान लगाने की कुप्रथा कम होगी बल्कि भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ने के साथ-साथ जल जैसे प्राकृतिक संसाधन को भी बचाया जा सकेगा। ग्रीष्मकालीन मूंग उगाने के कई फायदे हैं :
ग्रीष्म में खरपतवारों का प्रकोप कम होता है
कम आर्द्रता के कारण बीमारियों व कीड़ों का प्रकोप कम होता है
जल्दी पकने से वर्षा आदि से बचाव हो जाता है
प्राकृतिक संसाधनों का सदुपयोग हो जाता है
किसान की अतिरिक्त आय के साथ-साथ देश की विदेशी मुद्रा की बचत होती है व भूमि सुधार होता है।
इस तरह ग्रीष्मकालीन मूंग प्रचलित धान गेहूं के फसल चक्र में मूल्य संवर्धन का कार्य करती है। धान गेहूं कृषि पद्धति के आलावा तोरिया, आलू, सरसों, मटर, गन्ना व कभी-कभी रबी की फसल खराब होने के कारण भी खेत मार्च महीने से अगली खरीफ की फसल लगने तक खाली रहते हैं। ऐसे खेतों में ग्रीष्मकालीन मूंग को उगाकर उनका सदुपयोग किया जा सकता है।
This story is from the 1st March 2023 edition of Modern Kheti - Hindi.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber ? Sign In
This story is from the 1st March 2023 edition of Modern Kheti - Hindi.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber? Sign In
गोभीवर्गीय सब्जियों के रोग और उनकी रोकथाम
सर्दी में गोभीवर्गीय सब्जियों (फूलगोभी, बंदगोभी व गांठगोभी) का बहुत महत्व है क्योंकि सर्दी में सब्जियों के आधे क्षेत्रफल में यही सब्जियां बोई जाती हैं। इन सब्जियों को कैल्शियम, मैग्नीशियम, फॉस्फोर्स, विटामिन ए एवं सी इत्यादि का अच्छा स्रोत माना जाता है।
हाई-टेक पॉलीहाउस खेती में अधिक उत्पादन के लिए कंप्यूटर की भूमिका
भारत देश में आज के समय जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है जिससे रहने के लिए लगातार कृषि योग्य भूमि का उपयोग कारखाने लगाने, मकान बनाने में हो रहा है। कृषि योग्य भूमि कम होने से जनसंख्या का भेट भरने की समस्या से बचने के लिए सरकार ने विभिन्न योजनाएं चला रखी हैं जिससे किसान कम लागत में अधिक मुनाफा कमा सकें।
सरसों की खेती अधिक उपज के लिए उन्नत शस्य पद्धतियाँ
सरसों (Brassica spp.) एक महत्वपूर्ण तिलहनी फसल है, जो पोषण और व्यवसायिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है। भारत में सरसों का उपयोग मुख्यतः खाद्य तेल, मसाले और औषधि के रूप में किया जाता है।
गेहूं में सूक्ष्म पोषक तत्वों का महत्व
गेहूं में मुख्य पोषक तत्वों का संतुलित प्रयोग अति आवश्यक है। प्रायः किसान भाई उर्वरकों में डी.ए.पी. व यूरिया का अधिक प्रयोग करते हैं और पोटाश का बहुत कम प्रयोग करते हैं।
पॉलीटनल में सब्जी पौध तैयार करना
देश में व्यवसायिक सब्जी उत्पादन को बढ़ावा देने में सब्जियों की स्वस्थ पौध उत्पादन एक महत्वपूर्ण विषय है जिस पर आमतौर से किसान कम ध्यान देते हैं।
क्या है मनरेगा की कृषि में भागेदारी?
ग्रामीण विकास मंत्रालय की ओर से कमियां पूरी करें और गुणवत्ता बढ़ाने के लिए संबंधित विभागों से कनवरजैंस के लिए जोर दिया जाता है। जैसे खेतीबाड़ी, बागवानी, वानिकी, जल संसाधन, सिंचाई, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, नेशनल रूरल लिवलीहुड मिशन और अन्य प्रोग्रामों के सहयोग से जो कि मनरेगा अधीन निर्माण की संपति की क्वालिटी को सुधारना और टिकाऊ बनाया जा सके।
अलसी की फसल के कीट व रोग एवं उनका नियंत्रण
अलसी की फसल को विभिन्न प्रकार के रोग जैसे गेरुआ, उकठा, चूर्णिल आसिता तथा आल्टरनेरिया अंगमारी एवं कीट यथा फली मक्खी, अलसी की इल्ली, अर्धकुण्डलक इल्ली चने की इल्ली द्वारा भारी क्षति पहुंचाई जाती है जिससे अलसी की फसल के उत्पादन में भरी कमी आती है।
मटर की फसल के कीट एवं रोग और उनका नियंत्रण कैसे करें
अच्छी उपज के लिए मटर की फसल के कीट एवं रोग की रोकथाम जरुरी है। मटर की फसल को मुख्य रोग जैसे चूर्णसिता, एसकोकाईटा ब्लाईट, विल्ट, बैक्टीरियल ब्लाईट और भूरा रोग आदि हानी पहुचाते हैं।
कृषि-वानिकी और वनों व वृक्षों का धार्मिक एवं पर्यावरणीय महत्व
कृषि-वानिकी : कृषि वानिकी भू-उपयोग की वह पद्धति है जिसके अंतर्गत सामाजिक तथा पारिस्थितिकीय रुप से उचित वनस्पतियों के साथ-साथ कृषि फसलों या पशुओं को लगातार या क्रमबद्ध ढंग से शामिल किया जाता है। कृषि वानिकी में खेती योग्य भूमि पर फसलों के साथ-साथ वृक्षों को भी उगाया जाता है। इस प्रणाली द्वारा उत्पाद के रुप में ईंधन की लकड़ी, हरा चारा, अन्न, मौसमी फल इत्यादि आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। इस प्रणाली को अपनाने से भूमि की उपयोगिता बढ़ जाती है।
'रिचेस्ट फार्मर ऑफ इंडिया' अवार्ड प्राप्त करने वाली सफल महिला किसान-नीतुबेन पटेल
नीतूबेन पटेल ने जैविक कृषि में उत्कृष्ट योगदान देकर \"सजीवन\" नामक फार्म की स्थापना की, जो 10,000 एकड़ में 250 जैविक उत्पाद उगाता है। उन्होंने 5,000 किसानों और महिलाओं को प्रशिक्षित कर जैविक खेती में प्रेरित किया।