ड्रिप लगाने के उपरांत ड्रिप सैट की सांभ-संभाल एवं रखरखाव :
ड्रिप लगाने के उपरांत लेटरल के अंत में बीच वाले एंड कैप को खोल कर पानी 5 से 10 मिनट के लिए खुला चला कर देखना चाहिए जिससे लेटरल में मौजूद कोई गंदगी खुले पानी के साथ बाहर निकल जाये। यदि चलाते समय ड्रिपर या किसी जोड़ से पानी की लीकेज महसूस हो तो उस हिस्से की तुरंत बदली कर दी जानी चाहिए। हर ड्रिपर या इमीटर से यह नोट करें कि पानी बाकी ड्रिपर या इमीटर के बराबर निकले। इसलिए अलग-अलग ड्रिपर के नीचे खुले बर्तन रखकर प्रणाली को 5 मिनट चला कर इन बर्तनों में इकट्ठा हुए पानी को देखकर अनुमान लगायें कि हर बर्तन में पानी एक ही मात्रा में हो। यदि अंतर दिखाई दे तो संबंधित ड्रिपर को बदल दें। इस तरह करने से सभी खेत में एकसमान पानी लगेगा।
ड्रिप व्यवस्था में फिलटरों का रखरखाव :
हाईड्रोसाइक्लोन और डिस्क फिल्टर का प्रयोग ट्यूबवैल के पानी में घुली हुई रेत को साफ करने के लिए सैकेंडरी फिल्टर के तौर पर इस्तेमाल किये जाते हैं। पानी में गन्दगी को साफ करने के लिए बैकवाशिंग की व्यवस्था भी प्रणाली में की जाती है। फिलटरों के प्रवेश और निकासी द्वार पर दबाव प्रतिदिन चैक करते रहो । रेत वाले फिल्टर की बैंक वाशिंग प्रतिदिन करें। सैंड फिल्टर के प्रवेश और निकासी द्वार पर दबाव का अंतर 0.3 किलोग्राम प्रति वर्ग सैंटीमीटर एवं स्क्रीन फिल्टर पर अंतर 0.2 किलोग्राम प्रति वर्ग सैं. मी. से अधिक न हो।
ड्रिपर या इमीटर का बंद होना :
ड्रिपर या इमीटर का बंद या चोक होना सामान्य समस्या है। ड्रिपर चोक होने से पानी एकसमान नहीं लगेगा और उत्पादन प्रभावित होगा। यह देखा गया है कि ड्रिपर आमतौर पर बारिश या बारिश के समय दौरान बंद या चोक हो जाते हैं जब खेतों में बारिश पड़ते समय पानी ठहर जाता है। दूषित पानी ड्रिपर में घुस जाता है और ड्रिपर चोक हो जाते हैं। कई बारी फिल्टर व्यवस्था में नुक्स पड़ने से भी इमीटर चोक हो जाते हैं। परन्तु चोकिंग से निजात पाने के लिए तेजाब और क्लोरीन का प्रयोग किया जाता है। समय- समय पर प्रणाली की फ्लशिंग करते रहने से भी चोकिंग से राहत मिलती है। ड्रिप प्रणाली के सही चलने के लिए समय-समय पर चोकिंग का निरीक्षण करते रहें।
This story is from the 15th May 2024 edition of Modern Kheti - Hindi.
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गोभीवर्गीय सब्जियों के रोग और उनकी रोकथाम
सर्दी में गोभीवर्गीय सब्जियों (फूलगोभी, बंदगोभी व गांठगोभी) का बहुत महत्व है क्योंकि सर्दी में सब्जियों के आधे क्षेत्रफल में यही सब्जियां बोई जाती हैं। इन सब्जियों को कैल्शियम, मैग्नीशियम, फॉस्फोर्स, विटामिन ए एवं सी इत्यादि का अच्छा स्रोत माना जाता है।
हाई-टेक पॉलीहाउस खेती में अधिक उत्पादन के लिए कंप्यूटर की भूमिका
भारत देश में आज के समय जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है जिससे रहने के लिए लगातार कृषि योग्य भूमि का उपयोग कारखाने लगाने, मकान बनाने में हो रहा है। कृषि योग्य भूमि कम होने से जनसंख्या का भेट भरने की समस्या से बचने के लिए सरकार ने विभिन्न योजनाएं चला रखी हैं जिससे किसान कम लागत में अधिक मुनाफा कमा सकें।
सरसों की खेती अधिक उपज के लिए उन्नत शस्य पद्धतियाँ
सरसों (Brassica spp.) एक महत्वपूर्ण तिलहनी फसल है, जो पोषण और व्यवसायिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है। भारत में सरसों का उपयोग मुख्यतः खाद्य तेल, मसाले और औषधि के रूप में किया जाता है।
गेहूं में सूक्ष्म पोषक तत्वों का महत्व
गेहूं में मुख्य पोषक तत्वों का संतुलित प्रयोग अति आवश्यक है। प्रायः किसान भाई उर्वरकों में डी.ए.पी. व यूरिया का अधिक प्रयोग करते हैं और पोटाश का बहुत कम प्रयोग करते हैं।
पॉलीटनल में सब्जी पौध तैयार करना
देश में व्यवसायिक सब्जी उत्पादन को बढ़ावा देने में सब्जियों की स्वस्थ पौध उत्पादन एक महत्वपूर्ण विषय है जिस पर आमतौर से किसान कम ध्यान देते हैं।
क्या है मनरेगा की कृषि में भागेदारी?
ग्रामीण विकास मंत्रालय की ओर से कमियां पूरी करें और गुणवत्ता बढ़ाने के लिए संबंधित विभागों से कनवरजैंस के लिए जोर दिया जाता है। जैसे खेतीबाड़ी, बागवानी, वानिकी, जल संसाधन, सिंचाई, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, नेशनल रूरल लिवलीहुड मिशन और अन्य प्रोग्रामों के सहयोग से जो कि मनरेगा अधीन निर्माण की संपति की क्वालिटी को सुधारना और टिकाऊ बनाया जा सके।
अलसी की फसल के कीट व रोग एवं उनका नियंत्रण
अलसी की फसल को विभिन्न प्रकार के रोग जैसे गेरुआ, उकठा, चूर्णिल आसिता तथा आल्टरनेरिया अंगमारी एवं कीट यथा फली मक्खी, अलसी की इल्ली, अर्धकुण्डलक इल्ली चने की इल्ली द्वारा भारी क्षति पहुंचाई जाती है जिससे अलसी की फसल के उत्पादन में भरी कमी आती है।
मटर की फसल के कीट एवं रोग और उनका नियंत्रण कैसे करें
अच्छी उपज के लिए मटर की फसल के कीट एवं रोग की रोकथाम जरुरी है। मटर की फसल को मुख्य रोग जैसे चूर्णसिता, एसकोकाईटा ब्लाईट, विल्ट, बैक्टीरियल ब्लाईट और भूरा रोग आदि हानी पहुचाते हैं।
कृषि-वानिकी और वनों व वृक्षों का धार्मिक एवं पर्यावरणीय महत्व
कृषि-वानिकी : कृषि वानिकी भू-उपयोग की वह पद्धति है जिसके अंतर्गत सामाजिक तथा पारिस्थितिकीय रुप से उचित वनस्पतियों के साथ-साथ कृषि फसलों या पशुओं को लगातार या क्रमबद्ध ढंग से शामिल किया जाता है। कृषि वानिकी में खेती योग्य भूमि पर फसलों के साथ-साथ वृक्षों को भी उगाया जाता है। इस प्रणाली द्वारा उत्पाद के रुप में ईंधन की लकड़ी, हरा चारा, अन्न, मौसमी फल इत्यादि आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। इस प्रणाली को अपनाने से भूमि की उपयोगिता बढ़ जाती है।
'रिचेस्ट फार्मर ऑफ इंडिया' अवार्ड प्राप्त करने वाली सफल महिला किसान-नीतुबेन पटेल
नीतूबेन पटेल ने जैविक कृषि में उत्कृष्ट योगदान देकर \"सजीवन\" नामक फार्म की स्थापना की, जो 10,000 एकड़ में 250 जैविक उत्पाद उगाता है। उन्होंने 5,000 किसानों और महिलाओं को प्रशिक्षित कर जैविक खेती में प्रेरित किया।