मेरा वो मतलब नहीं था!
Aha Zindagi|September 2024
हमारे शब्द सामने वाले को चोट पहुंचा जाते हैं, फिर हम माफ़ी मांगते हुए सफाई देते हैं कि हमारा वह इरादा नहीं था। सवाल उठता है कि अगर इरादा नहीं था तो फिर वैसे शब्द मुंह से निकले कैसे?
अमृत साधना
मेरा वो मतलब नहीं था!

इस प्रश्न के उत्तर में ही जीवन में शांति और संबंधों में मधुरता की कुंजी छिपी है।

क्या आपने देखा, आप कुछ बोल जाते हैं और बाद में कहते हैं कि मेरा वो मतलब नहीं था। 'वो' मतलब यानी क्या? 'वो' यानी ऐसा भाव जिससे दूसरे को चोट लगे। फिर आप लीपापोती करते हैं, दूसरे को ग़लत ठहराते हैं या ख़ुद झेंपते हैं। फिर ग़लतफहमी की बड़ी लंबी फ़सल उगती है। रिश्ते बिगड़ जाते हैं। देखिए, एक असावधानी के कितने बाल-बच्चे पैदा होते हैं। ओशो की किताबें देखते समय मेरा ध्यान एक पंक्ति पर गया: 'अगर लोग जितनी बातें करते हैं उसका केवल पांच प्रतिशत ही कर रहे होते तो दुनिया अधिक शांत और सुरीली जगह होती। वह पांच प्रतिशत बोलना सबकुछ कह देगा जो आवश्यक है। वस्तुत: आपकी अनकही ज़्यादा समझी जाती है बजाय आपके निरर्थक बोलने के।' क्या बढ़िया अंतर्दृष्टि है!

अपने भाषण को अधिक जीवंत और हार्दिक बनाने के लिए इन ओशो विधियों को आज़माएं

• केवल आवश्यक बोलें, जैसे कि आप टेलीग्राम लिख रहे हों, या जैसे कि आप अपने स्मार्टफोन पर एक टेक्स्ट मैसेज लिख रहे हों। जितने कम शब्द होंगे वे उतने ही अधिक आशयघन होंगे और उतना ही अधिक वे आपका अर्थ दूसरों तक पहुंचाएंगे।

This story is from the September 2024 edition of Aha Zindagi.

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बायो टेक्नोलॉजी चमत्कार कर रही है। सुनने में भारी-भरकम लगने वाली यह तकनीक उन्नत बीजों के विकास और उत्पादों का पोषण बढ़ाने के साथ हमारे आम जीवन में भी रच बस चुकी है। अब यह सटीक दवाओं और असली जैसे कृत्रिम अंगों के निर्माण से लेकर सुपर ह्यूमन विकसित करने सरीखी फंतासियों को साकार करने की दिशा में तेज़ी से बढ़ रही है।

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अब तो खुला खेल फ़र्रुखाबादी है। न तो अश्लील दृश्यों पर कोई लगाम है, न अभद्र भाषा पर। बीप की ध्वनि बीते ज़माने की बात हो गई है। बेलगाम-बेधड़क वेबसीरीज़ ने मूल्यों को इतना गिरा दिया है कि लिहाज़ का कोई मूल्य ही नहीं बचा है।

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क्या कभी ख़याल आया कि 'न्यू यॉर्क' है तो कहीं ओल्ड यॉर्क भी होगा? 1664 में एक अमेरिकी शहर का नाम ड्यूक ऑफ़ यॉर्क के नाम पर न्यू यॉर्क रखा गया। ये ड्यूक यानी शासक थे इंग्लैंड की यॉर्कशायर काउंटी के, जहां एक क़स्बानुमा शहर है- यॉर्क। इसी सदियों पुराने शहर में रेलगाड़ी से उतरते ही लेखिका को लगभग एक दिन में जो कुछ मिला, वह सब उन्होंने बयां कर दिया है। यानी एक मुकम्मल यायावरी!

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भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं को जीवंत करती है पिछवाई कला। पिछवाई शब्द का अर्थ है, पीछे का वस्त्र । श्रीनाथजी की मूर्ति के पीछे टांगे जाने वाले भव्य चित्रपट को यह नाम मिला था। यह केवल कला नहीं, रंगों और कूचियों से ईश्वर की आराधना है। मुग्ध कर देने वाली यह कलाकारी लौकिक होते हुए भी कितनी अलौकिक है, इसकी अनुभूति के लिए चलते हैं गुरु-शिष्य परंपरा वाली कार्यशाला में....

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November 2024
सदा दिवाली आपकी...
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दीपोत्सव के केंद्र में है दीप। अपने बाहरी संसार को जगमग करने के साथ एक दीप अपने अंदर भी जलाना है, ताकि अंतस आलोकित हो। जब भीतर का अंधकार भागेगा तो सारे भ्रम टूट जाएंगे, जागृति का प्रकाश फैलेगा और हर दिन दिवाली हो जाएगी।

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'मां' की गोद भी मिले
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'मां' की गोद भी मिले

बच्चों को जन्मदात्री मां की गोद तो मिल रही है, लेकिन अब वे इतने भाग्यशाली नहीं कि उन्हें प्रकृति मां की गोद भी मिले- वह प्रकृति मां जिसके सान्निध्य में न केवल सुख है, बल्कि भावी जीवन की शांति और संतुष्टि का एक अहम आधार भी वही है। अतः बच्चों को कुदरत से प्रत्यक्ष रूप से जोड़ने के जतन अभिभावकों को करने होंगे। यह बच्चों के ही नहीं, संसार के भी हित में होगा।

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November 2024