पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी कहते हैं कि तकनीकी तौर पर तो चुनाव आयोग उपचुनाव की घोषणा कर सकता है, लेकिन अभी आयोग को जल्दबाजी में कोई भी फैसला नहीं करना चाहिए. उनका कहना है कि अगर आयोग उपचुनाव की घोषणा कर देता है और राहुल गांधी को भी ऊपरी अदालत से दोषसिद्धि पर स्टे के रूप में राहत मिल जाती है तो फिर उपचुनाव पर भी स्टे हो जाएगा. अगर अदालत से सिर्फ सजा (2 साल) पर रोक या स्टे लगाया जाता है तो यह काफी नहीं है. वहीं अगर दोषसिद्धि पर रोक लगाई जाती है तो फिर उपचुनाव नहीं हो सकेगा. पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त कहते हैं कि उपचुनाव करवाने के लिए आयोग के पास छह महीने का समय होता है और ऐसा जरूरी नहीं है कि किसी सदस्य की सदस्यता जाने के कुछ दिनों के बाद ही उपचुनाव की घोषणा कर दी जाए. लक्षद्वीप के एक सांसद के मामले में केरल हाई कोर्ट का फैसला आयोग को ध्यान में होगा और अभी आयोग को हर पहलू पर ध्यान देने के बाद ही कोई फैसला लेना चाहिए. ऐसे में चुनाव आयोग को तमाम पक्षों पर विचार करने के बाद ही उपचुनाव को लेकर फैसला लेना चाहिए.
यदि हम केवल नियम कि बात करें तो दरअसल लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 151ए के तहत चुनाव आयोग को संसद और विधानसभाओं में खाली सीटों पर रिक्ती के छह महीने के भीतर उपचुनाव करवाने का अधिकार है. हालांकि इसमें एक शर्त है कि नवनिर्वाचित सदस्य के लिए एक वर्ष या उससे अधिक का कार्यकाल बचा हो. यहां राहुल गांधी की अयोग्यता के बाद वायनाड सीट 23 मार्च को खाली हो गई थी, ऐसे में धारा 151ए के अनुसार चुनाव आयोग के लिए 22 सितंबर, 2023 तक इस निर्वाचन क्षेत्र में उपचुनाव कराना अनिवार्य है. यहां 17वीं लोकसभा का कार्यकाल पूरा होने में अभी एक साल से ज्यादा का समय बचा है, ऐसे उपचुनाव अनिवार्य हो जाता है, भले ही निर्वाचित सांसद को बेहद छोटा कार्यकाल मिले.
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केरल की वायनाड लोकसभा सीट से सदस्य रहे कांग्रेस नेता राहुल गांधी की सदस्यता जाने के बाद अब बड़ा सवाल यह है कि क्या चुनाव आयोग इस सीट पर जल्द ही उपचुनाव करवा सकता है? जानकारों का कहना है कि उपचुनाव की घोषणा से पहले चुनाव आयोग हर कानूनी पहलू को देखेगा और राहुल गांधी के अगले कदम पर भी आयोग की नजर रहेगी. राहुल गांधी की ओर से जल्द ही ऊपरी अदालत में अपील की जा सकती है. वहीं, चुनाव आयोग के सूत्रों के अनुसार राहुल के अयोग्य घोषित होने के बाद वायनाड सीट पर उपचुनाव कराने से पहले तमाम पहलुओं की समीक्षा की जाएगी. आयोग के सूत्रों के अनुसार पहले से तय गाइडलाइंस के अनुरूप जो नियम हैं, उनके तहत आयोग कार्रवाई करेगा. नियम के अनुसार, खाली सीट को 6 महीने के अंदर भरना होता है. सूत्रों के अनुसार, इस बार आयोग कोई फैसला लेने से पहले तमाम कानूनी पहलुओं और घटनाक्रमों की समीक्षा करेगा. दरअसल, इसी साल आयोग अपने ही कुछ फैसलों से कानूनी अड़चनों में फंसा रहा.
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